Skip to main content

Featured Post

सूर्य का प्यार चांदनी से कहानी

 बात लगभग लगभग पांच साल पुरानी है ऐक दिन मेरी साइट पर मेरा रोलर आपरेटर जों कि कंपनी से दस दिन कि छुट्टी लेकर गया था छुट्टी से आने के बाद मुझे अपने किराए के घर में चाय के लिए बुलाया चलिए पहले में अपना परिचय दे दूं मेरा नाम प्रेम कुमार हैं में मल्टीनेशनल कंटैकसन कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर कार्यरत हूं चूंकि मैं टीम लीडर हूं ऐसे में टीम के सभी सदस्यों से काम के बाद भी उनसे मेल मिलाप उनके दुख सुख का ख्याल रखना मेरी जुम्मे दारी बनतीं है या यूं कहें कि मेरी ड्यूटी हैं  ठंड का समय था वातावरण में सर्द हवाएं के साथ  हल्की हल्की ओस कि बूंदें भी आ रही थी कुलमिलाकर हड्डियों को हिलाने वाली सर्दी थी ऐसे मौसम में भी साइट पर मेहनत कश मजदूर गर्म कपड़े पहनकर काम कर रहे थे में और मेरे मातहत टेक्निकल उनका सहयोग कर रहे थे तभी सूर्य का फोन आया था सर क्या आप साइट पर हैं  मैंने कहा जी  तब सर को आप मेरे घर आ जाईए  चाय पीते हैं  मैंने कहा सूर्य आप कि छुट्टी तों दस दिन कि थी फिर दो दिन पहले  उसने कहा सर मै अपनी पत्नी को लेने गया था जैसे कि हमारे समाज में शादी के चार...

"में लेखक हूं";कविता

 जी हां मैं लेखक हूं 

में  हू कल्पना लोक में 

पहुंच जाता हूं बिन प्लेन मंगल ग्रह 

रचाता हूं चांद पर बस्तियां 

खोजता हूं ओक्सीजन ओर पानी 

क्यों कि मैं ऐक लेखक हूं ।।

मेरे पास है संवेदना

कोमल हृदय 

जो गड़ता रहता है नित नए 

विचार और अविष्कार 

शब्द है अपरम्पार 

क्यों कि मैं ऐक लेखक हूं।।

मैंने ही लिखें है बेद पुरान और गीता 

जो दिखाते हैं मानव को राह 

मेरा ही है रामचरितमानस महाकाव्य 

मे सूरदास भी हू https://www.kakakikalamse.com/2020/12/blog-post_81.html


 

टालस्टाय 

गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर हूं 

मुंशी प्रेमचंद का कथा संसार 

क्यों कि मैं ऐक लेखक हूं ।।

में ऐक शिल्पी हूं 

हू शब्दों का आर्किटेक्ट 

में ही हूं महान विज्ञानिको 

न्यूटन का सिद्धांत 

में समय हूं 

क्यों कि में ऐक लेखक हूं ।।

मैंने ही कि थी खोज 

बिजली और परमाणु बम 

मैंने ही कि थी सो

सौरमंडल

के नव गृह 

जो देते है हमें नयी ऊर्जा 

बताते है जीवन मंत्र।।

मेरी नजर में है राम बुद्ध महावीर जीसस और अल्लाह

ऐक समान!

क्यों कि मेरी रंगों में दौड़ता है खून 

जिसका है रंग  लाल

भला कोई अलग कर बताएं 

उसे देता हूं चैलेंज बार बार 

मेरी नज़र में सब मज़हब ऐक है 

सभी हैं ऐक पिता कि संतान 

हां कुछ पैदा कि गयी गलतफहमियां 

यह है कुछ तथाकथित मानव का षड्यंत्र

क्यों कि मैं ऐक लेखक हूं ।।

मेरा जीवन है फक्कड़ 

तन पर रहते हैं वस्त्र

चिथड़े-चिथड़े 

कोई कहता है गरीब 

कोई पागल 

कोई कहता है किस्मत का मारा बेचारा 

कोई रखता है रहम 

कोई मारता है पत्थर 

घर परिवार कि नज़र में हूं 

हूं काम चोर 

मिलते है उलाहने 

होता हूं बेइज्जत 

क्यों कि मैं ऐक लेखक हूं ।।

फिर भी रहता हूं मस्त  मस्त !

लिखता हूं सत्य 

क्यों कि मैं ऐक लेखक हूं ।।






Comments

कहते हैं कि जहां न पहुंचे रवि वहां पर पहुंचे कवि, कविताएं में कवि अपनी कल्पनाओं से शब्दों को गढ़ता है उन्हें पढ़कर जिससे मन मस्तिष्क को उर्जा, शीतलता मिलती है ।

Popular posts from this blog

बड़ा दिन कविता

 आज तो बड़ा दिन था  पर पता नहीं चला बिना हलचल के ही गुजर गया रोज कि भाती सूरज उषा के साथ फाग खेलता आया संध्या के साथ आंख मिचौली करता चला गया चतुर्थी का चंद्रमा उभरा अपना शीतल प्रकाश बिखेर चल दिया तारों कि बारात आकाश में उतर मोन दर्शक बन चहुं ओर बिखर गई रोज कि भाती लोगों कि भीड़ अपना अपना कर्म कर सो गई पंछियों के समूह प्रभात के साथ कलरव का गान कर संध्या आते गुनगुनाते चहचहाते पंखों को फड़फड़ाते घोंसलों में चलें गये  हर दिन बड़ा दिन ऐसा कहते हमें समझाते गये।।

तुम कहां हो

 तुम कहां हो? कहां नहीं हों ? दोनों अनंत काल से चले आ रहें शाश्वत प़शन है इनके उत्तर भी अनंत काल से  शाश्वत हैं। प़भु के बगैर होना तो दूर कल्पना भी संभव नहीं तुम सर्वत्र हो प़भु कण कण में समाए हों प़भु तुम यहां भी हों वहां भी हों आपके बिना कहते हैं कि  पत्ता भी नहीं हिल सकता मंद मंद शीतल पवन नहीं वह सकतीं कल कल करती नदियां नही बह सकतीं हिलोरें मारकर विशाल सागर  अपनी सीमा में नहीं रहता न ही सूर्य अपनी तपिश बिखेर कर हमें रोशनी देता न ही चांद दीए जैसी रोशनी से हमें  शीतलता देता  पूछता हूं प़भु तुम कहां हो। हे प्रभु जब से हम मानव कि अगली पीढ़ी से लेकर  आखिर पीढ़ी तक यह प़शन हमें तबाह किये हुए हैं  बर्बादी के द्वार पर खड़ा किए हुए हैं हे प्रभु प़शन अटपटा सा है पर शब्दों कि गूंज उत्तर के रूप में होती है पर परतीत नहीं होती  हे प्रभु कभी कभी लगता है कि आप हमारे अन्तर मन में हों  तब कभी कभी लगता है कि आप कण कण में हों  तब कभी कभी लगता है कि दीन हीन लाचार अपाहिज मानव  पशु पंछी कि देखभाल करने में  हमें भूल गए हों  लेकिन यह सच है...

दलदल एक युवा लड़के कि कहानी

वह एक वर्षांत कि रात्रि थी मेघ गर्जन करते हुए कड़कती बिजली के साथ घनघोर वर्षा कर रहे थे ऐसे ही रात्रि में परेश होटल के कमरे में एक युवा शादी शुदा महिला के साथ लिपटा हुआ था  महिला के कठोर नग्न स्तनों का नुकिला हिस्सा उसकी छाती पर गढ़ रहा था वातावरण में गर्म सांसें के साथ तेज सिसकारियां निकल रही थी सांगवान का डबल बैड पलंग पर मोंटे मोंटे गद्दे कांप रहे थे पलंग का शायद किसी हिस्से का नट बोल्ट ढीला था तभी तो कि कुछ चरमरा ने कि आवाज आ रही थी  साथ ही महिला के मुख से और तेज हा ओर तेज शाबाश ऐसे ही ... .. आह आह सी सी बस बस अब नहीं छोड़ो टांग दर्द  कर रही है बस बस  पर परेश  धक्के पर धक्का दे रहा था फिर वह भी थम गया था अपनी उखड़ी सांसों के साथ चूंकि परेश पुरूष वैश्या था उसकी अमीर हर उम्र कि महिला थी वह इस धंधे में नया नया आया था  पर जल्दी ही अमीर महिलाओं के बीच फेमस हो गया था उसका कारण था उसका सुंदर सुडौल शरीर और बात करने का सभ्य।  ढग फिर वह अपने काम को पूरी इमानदारी से निर्वाह करता था मतलब उसकी ग़ाहक को किसी भी प्रकार कि शिक़ायत नहीं रहती थी । खैर सांसें थमते ही ...