भादों कि अंधियारी रात में बादल गरजते हुए चमकते हुए धरती पर मोटी मोटी बूंदें बिखेर रहे थे वातावरण में मेंढक झींगुर कि मिलीं जुली आवाजे सुनाई दे रही थी कहीं कहीं दूर रोने जैसी आवाजें सुनाई दे रही थी शायद कोई कुत्ता रो रहा था ऐसे ही समय में जेल कि चारदीवारी के अन्दर कैदी अपनी अपनी बैरकों में नींद के आगोश में समाए हुए थे कुछ तो सपने में अपने आप को जज साहब के सम्मुख उपस्थित कर के तर्क वितर्क सुन रहे थे कुछ तो अपने आप को अपनी पत्नी या प्रेमिका स में मग्न थे कुछ तो जेल से रिहा होकर घर जा रहे थे कुछ तो उस समय को कोश रहे थे जब उन्होंने जाने अंजाने में अपराध किया था उन्हीं कैदियों के बीच में अपने चट्टे पर कैदी नंबर 376 लेटा हुआ था परन्तु उसकी आंखों से नींद कोसों दूर थी वह बेचैनी से करवट बदल रहा था साथ ही सिसक रहा था क्या था वह और अब क्या से क्या हो गया था वह अतीत में खो गया था । वह भी एक वर्षांत कि रात्रि थी कार हाइवे पर अंधेरे को चीरती हुई सरपट दौड़ रही थी सहसा उसे रौशनी में एक तरूणी दिखाई दी थी जो शायद बस का इंतजार कर रही थी उसके हाथ में सूटकेस था देह पर महिलाओं वाला रेनकोट था जो उसे वारि...
अपनी सी कहानियां का पिटारा