Skip to main content

Posts

Showing posts from March, 2022

Featured Post

सूर्य का प्यार चांदनी से कहानी

 बात लगभग लगभग पांच साल पुरानी है ऐक दिन मेरी साइट पर मेरा रोलर आपरेटर जों कि कंपनी से दस दिन कि छुट्टी लेकर गया था छुट्टी से आने के बाद मुझे अपने किराए के घर में चाय के लिए बुलाया चलिए पहले में अपना परिचय दे दूं मेरा नाम प्रेम कुमार हैं में मल्टीनेशनल कंटैकसन कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर कार्यरत हूं चूंकि मैं टीम लीडर हूं ऐसे में टीम के सभी सदस्यों से काम के बाद भी उनसे मेल मिलाप उनके दुख सुख का ख्याल रखना मेरी जुम्मे दारी बनतीं है या यूं कहें कि मेरी ड्यूटी हैं  ठंड का समय था वातावरण में सर्द हवाएं के साथ  हल्की हल्की ओस कि बूंदें भी आ रही थी कुलमिलाकर हड्डियों को हिलाने वाली सर्दी थी ऐसे मौसम में भी साइट पर मेहनत कश मजदूर गर्म कपड़े पहनकर काम कर रहे थे में और मेरे मातहत टेक्निकल उनका सहयोग कर रहे थे तभी सूर्य का फोन आया था सर क्या आप साइट पर हैं  मैंने कहा जी  तब सर को आप मेरे घर आ जाईए  चाय पीते हैं  मैंने कहा सूर्य आप कि छुट्टी तों दस दिन कि थी फिर दो दिन पहले  उसने कहा सर मै अपनी पत्नी को लेने गया था जैसे कि हमारे समाज में शादी के चार...

गुलाब का फूल काव्य संग्रह

 ओ गुलाब तुम रह गये  कि में तुम्हें छोड़ आया  यहां बहुत खोजा तुम्हें  पर तुम नहीं मिले तो बहुत पछताया । मैंने सोचा चलो तुम्हारे  अन्य साथियों से मिल कर बात करूं  फूल तुम किसी दूसरे फूल से  तुम्हारी शिकायत करूं  पर यहां न गैंदा न चमेली  न जुटी कोइ भी नजर  नहीं आएं  तब तुम्हारे अभाव में  हम थे घबड़ाया हम चारों तरफ भटक आएं  सरोवर तक गये  पर सरोज भी न नजर आएं  जंगल भी भटके पर  तुम्हारे जैसा कोई नजर नहीं आया  तब मेरी पसंद सुन  मेरा दोस्त भी मुस्कुराता हुआ  बोला कि गुलाब  को तुम इस इलाके में  खिलाओगे  वे शर्म के प्रेमियों को  क्या जीते जी जलाओगे  मेने कहा था वह भी कोई फूल हैं  दोस्त बोला तुम नहीं मानो  पर इस इलाके के लिए  वही अनुकूल है । मेने कहा क्यों  जरा स्पष्ट बताओगे  दोस्त बोला बगैर गमला  बगैर पानी दिए बगैर रखाए  बेसरम चाहे जहां उगाओ  पर मैंने कहां  पर बेसरम का फूल पूजा में शामिल  नहीं होता  दोस्त बोला न जाएं  ...

काला गुलाब अध्यात्म से जोड़ता काव्य संग्रह भाग चार

 ओ मेरे काले ग़ुलाब आज मैं पा गया वह वरदान  जिसकी चर्चा में तुझ से  काफी दिनों से करता था  रोज तेरे सामने  जन्मदाता के सामने कहता था और तू भी तो यही चाहता था  इससे तेरी शुभकामनाएं ही  हमें हमारी मंजिल कि  ओर बड़ा रही  और तू बिछड़ने कि सुन  मुस्कुराता नजर आता है । ओ काले ग़ुलाब  तू कभी कभी  महावीर स्वामी का  सार्थक उपदेश  जैसे कि वर्तमान में ही  खुश रहो  भविष्य कि चिंता मत कर  दुःख सुख को एक मानों  मौत से मत डरो  आत्मा अमर है अजर है  उसे कौन मार सकता है  कौन काट सकता है  कोन जला सकता है  यह तो छोर हैं  जीवन का  इससे ढाल से टूटने के  बाद भी तू अनेकों दिन  माली व्यापारी कि ठोकनी  में भी तू मुस्कुराता नजर आता है । ओ मेरे काले गुलाब तुझे ले  हृदय से भावनाओं के सागर में ज्वार भाटा  सा आ रहा है  लगता है तू  विशाल महासागर है  जिसकि गहराइयों को  विज्ञान भी  नहीं नाप पाया  इसलिए तू तो मुझे  प्रसन्नता बन  मानवत...

काला गुलाब अध्यात्म से जोड़ता काव्य संग्रह भाग चार

 ओ मेरे काले ग़ुलाब आज मैं पा गया वह वरदान  जिसकी चर्चा में तुझ से  काफी दिनों से करता था  रोज तेरे सामने  जन्मदाता के सामने कहता था और तू भी तो यही चाहता था  इससे तेरी शुभकामनाएं ही  हमें हमारी मंजिल कि  ओर बड़ा रही  और तू बिछड़ने कि सुन  मुस्कुराता नजर आता है । ओ काले ग़ुलाब  तू कभी कभी  महावीर स्वामी का  सार्थक उपदेश  जैसे कि वर्तमान में ही  खुश रहो  भविष्य कि चिंता मत कर  दुःख सुख को एक मानों  मौत से मत डरो  आत्मा अमर है अजर है  उसे कौन मार सकता है  कौन काट सकता है  कोन जला सकता है  यह तो छोर हैं  जीवन का  इससे ढाल से टूटने के  बाद भी तू अनेकों दिन  माली व्यापारी कि ठोकनी  में भी तू मुस्कुराता नजर आता है । ओ मेरे काले गुलाब तुझे ले  हृदय से भावनाओं के सागर में ज्वार भाटा  सा आ रहा है  लगता है तू  विशाल महासागर है  जिसकि गहराइयों को  विज्ञान भी  नहीं नाप पाया  इसलिए तू तो मुझे  प्रसन्नता बन  मानवत...

काला गुलाब भाग तीन

 ओ मेरे आत्मिय गुलाब  आपकों संसार के सामने  रखने का फैसला कर चुका हूं  गुलाब तो सभी ने देखा है   के  गुलाबों के बीच  शान से आन से  सम्मान  से खड़े हो  मानवता के प्रति एसा  कह जाओगे  शायद हमें भी  मानव के बीच  कहीं भी हंसाओ गे । ओ काले ग़ुलाब तू सात समंदर पार  करता राजधानी छोड़ता  महानगर व नगर कि सीमाएं  लांघता  अपने सुंदर रूप को छिपाता  चाहे जहां हंसता  इठलाता गांव में  दीन हीन के झोंपड़े में  सामने धूल धुसरित  आंगन में   विकसित हो  खिला नजर आता । ओ काले ग़ुलाब  तुझे भी  कलाकारों कि आराध्या सरस्वती मां के  चरणों पर चढ़ने का । समर्पित होने का सौभाग्य मिला है इससे तू रोज़  उनकि सेवा को  तैयार रहने का  उनकि सेवा को तत्पर रहने का  उनकि चरणों की शोभा बनने  का इशारा सा करता  नजर आता है । ओ सांवले सलोने गुलाब  जिस दिन जिस समय  तू पहली बार  मेरी नजरों के  सामने आया तब रोमांच  हो अनजाने आंनद से...

काला गुलाब भाग तीन

 ओ मेरे आत्मिय गुलाब  आपकों संसार के सामने  रखने का फैसला कर चुका हूं  गुलाब तो सभी ने देखा है   के  गुलाबों के बीच  शान से आन से  सम्मान  से खड़े हो  मानवता के प्रति एसा  कह जाओगे  शायद हमें भी  मानव के बीच  कहीं भी हंसाओ गे । ओ काले ग़ुलाब तू सात समंदर पार  करता राजधानी छोड़ता  महानगर व नगर कि सीमाएं  लांघता  अपने सुंदर रूप को छिपाता  चाहे जहां हंसता  इठलाता गांव में  दीन हीन के झोंपड़े में  सामने धूल धुसरित  आंगन में   विकसित हो  खिला नजर आता । ओ काले ग़ुलाब  तुझे भी  कलाकारों कि आराध्या सरस्वती मां के  चरणों पर चढ़ने का । समर्पित होने का सौभाग्य मिला है इससे तू रोज़  उनकि सेवा को  तैयार रहने का  उनकि सेवा को तत्पर रहने का  उनकि चरणों की शोभा बनने  का इशारा सा करता  नजर आता है । ओ सांवले सलोने गुलाब  जिस दिन जिस समय  तू पहली बार  मेरी नजरों के  सामने आया तब रोमांच  हो अनजाने आंनद से...

" काला गुलाब "भाग एक

ये काले ग़ुलाब   तेरा पौधा कहां है । पत्तियां झाड़ियों में हैं  कि नहीं कौन बताएगा । तेरे संघर्ष का तेरे त्याग का पुरस्कार बना परमात्म का एक लाल रंग से रंगा  अनेकों पंखुड़ियों कि जतन से  एक ऊपर से  गाता सा  इठलाता सा  मुस्कुराता फूल नजर आया । ओ ग़ुलाब के फूल  तुमने हां तुमने  जाने कितनी बातें  जाने कितनी शिकायतें  हमारे हमारे मन कि सुनी  जिन बातों को मेरे दोस्त भी नहीं  मेरे अपने भी नहीं  हमारे हम राज भी नहीं  सुन सके ,पर तुमने सुनीं  फिर मेरी अनगढ़ सी  अटपटी सी , बातों पर  शिकायतों पर विचार किया । मौन हो गम्भीर हों  मुझे था समझा दिया । कहा था उनमें कहना  यदि पूछें कभी   कि कुछ नहीं बोला  हमें देख हंसा  फिर शर्मा दिया । ओ ग़ुलाब के फूल कारण बता समझायो  तब बोला था  जाने कितने एहसान  से में दबा हूं इससे परमेश्वर से बुराई है  अपने आप से लड़ाई  स्वामी को चाहिए  सेवक करें बड़ाई  तब मैंने कहा था  घबराओ नहीं  हमारी उनसे बात  द...

काला गुलाब भाग एक

ये काले ग़ुलाब   तेरा पौधा कहां है । पत्तियां झाड़ियों में हैं  कि नहीं कौन बताएगा । तेरे संघर्ष का तेरे त्याग का पुरस्कार बना परमात्म का एक लाल रंग से रंगा  अनेकों पंखुड़ियों कि जतन से  एक ऊपर से  गाता सा  इठलाता सा  मुस्कुराता फूल नजर आया । ओ ग़ुलाब के फूल  तुमने हां तुमने  जाने कितनी बातें  जाने कितनी शिकायतें  हमारे हमारे मन कि सुनी  जिन बातों को मेरे दोस्त भी नहीं  मेरे अपने भी नहीं  हमारे हम राज भी नहीं  सुन सके ,पर तुमने सुनीं  फिर मेरी अनगढ़ सी  अटपटी सी , बातों पर  शिकायतों पर विचार किया । मौन हो गम्भीर हों  मुझे था समझा दिया । कहा था उनमें कहना  यदि पूछें कभी   कि कुछ नहीं बोला  हमें देख हंसा  फिर शर्मा दिया । ओ ग़ुलाब के फूल कारण बता समझायो  तब बोला था  जाने कितने एहसान  से में दबा हूं इससे परमेश्वर से बुराई है  अपने आप से लड़ाई  स्वामी को चाहिए  सेवक करें बड़ाई  तब मैंने कहा था  घबराओ नहीं  हमारी उनसे बात  द...

लालच बुरी बला पति पत्नी की कहानी

नाथ पेशे से सिविल  इंजीनियर थे हालांकि सिविल इंजीनियरिंग से एम् टेक करने के बाद  उन्होंने सरकारी नौकरी  के लिए अनेकों बार फार्म भरकर परीक्षा दी थी पर हर बार कुछ अंकों से उत्तीर्ण नहीं हो पाए थे कारण आरक्षण था फिर थक हार कर उन्होंने प्राइवेट सेक्टर को अपना जीवन यापन हेतु चयनित किया था  कठोर परिश्रम के साथ  कंपनी  का क्वांटिटी व क्वालिटी का ध्यान रखा था  उच्च अधिकारीयों ने उन्हें जल्दी ही तरक्की पर तरक्की दे कर प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर आसीन कर दिया था।सब कुछ अच्छा चल रहा था पर कलमुंही महामारी ने एक ही झटके से तहस नहस कर दिया था ।  चूंकि महामारी ने मां बाप को भी चपेट में ले लिया था ह उनके इलाज पर वहुत खर्च हो गया था फिर भी यमराज के दूत उनके प्राण ले गए थे , फिर अपने  परिवार का सारा भरण पोषण उनके कंधे पर था जैसे कि  घरेलू खर्च ,  लाइफ इंश्योरेंस कि फीस ,कार कि इ एम आई ,घर कि भी एम आई , आदि कर्ज पर कर्ज  एसे में एकाएक वे रोजगार होना   समझने वाले ही समझ सकते हैं ऐसी ही मुश्किल परिस्थितियों में घिर गए थें बाबू मुक्ति नाथ ! ...

कंटीली राहें काका कि आत्म कथा भाग 02

  पिछले भाग से आगे  बारहवीं का रिजल्ट घोषित5" गया था कलमकार के साथ के लड़के अच्छी डीबिजन से पास हुए थे वहीं वह सैकंड ग्रेड से पास हुआ था उसके रिजल्ट के परिणाम से पूरा परिवार परेशान था दादा ताने पर ताने दे रहे थे फिर उन्होंने मन ही मन विचार किया था लड़का रोज़ साइकिल से पच्चीस किलोमीटर दूर आता जाता है थक जाता होगा क्यों न शहर में ही मकान किराए पर दिला दूं आने जाने का समय का सदुपयोग पड़ने में हों जाएगा फिर क्या था जल्दी ही कमरा किराए से ले लिया गया था उसके अन्दर स्टोव वर्तन बिस्तर खटिया राशन पानी जमा कर दिया गया था अब कलमकार को अकेला छोड़ दिया गया था वह अपने हाथ से खाना पकाता कपड़े धोता था फिर पढ़ाई करता था हां अब वह लाइब्रेरी का सदस्य बन गया था जहां पर विश्व साहित्य कि अनेकों पुस्तकें जमा थीं उन्हें पड़ता विचार कर्ता चिंतन करता उसकि दिनचर्या बदल गयी थी उसका व्यवहार बदल गया था कालेज में सहपाठी के बीच सबसे होनहार कहलाने लगा था वह कालेज में हर प्रकार के कंपटीशन में भाग लेता था जैसे कि लेख , वाद-विवाद प्रतियोगिता , खेलकूद आदि यूं फुटबॉल का अच्छा खिलाड़ी बन गया था उसका सिलेक्शन प्रदे...

कलमकार कि आत्म कथा

  पिछले भाग से आगे  बारहवीं का रिजल्ट घोषित5" गया था कलमकार के साथ के लड़के अच्छी डीबिजन से पास हुए थे वहीं वह सैकंड ग्रेड से पास हुआ था उसके रिजल्ट के परिणाम से पूरा परिवार परेशान था दादा ताने पर ताने दे रहे थे फिर उन्होंने मन ही मन विचार किया था लड़का रोज़ साइकिल से पच्चीस किलोमीटर दूर आता जाता है थक जाता होगा क्यों न शहर में ही मकान किराए पर दिला दूं आने जाने का समय का सदुपयोग पड़ने में हों जाएगा फिर क्या था जल्दी ही कमरा किराए से ले लिया गया था उसके अन्दर स्टोव वर्तन बिस्तर खटिया राशन पानी जमा कर दिया गया था अब कलमकार को अकेला छोड़ दिया गया था वह अपने हाथ से खाना पकाता कपड़े धोता था फिर पढ़ाई करता था हां अब वह लाइब्रेरी का सदस्य बन गया था जहां पर विश्व साहित्य कि अनेकों पुस्तकें जमा थीं उन्हें पड़ता विचार कर्ता चिंतन करता उसकि दिनचर्या बदल गयी थी उसका व्यवहार बदल गया था कालेज में सहपाठी के बीच सबसे होनहार कहलाने लगा था वह कालेज में हर प्रकार के कंपटीशन में भाग लेता था जैसे कि लेख , वाद-विवाद प्रतियोगिता , खेलकूद आदि यूं फुटबॉल का अच्छा खिलाड़ी बन गया था उसका सिलेक्शन प्रदे...