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सूर्य का प्यार चांदनी से कहानी

 बात लगभग लगभग पांच साल पुरानी है ऐक दिन मेरी साइट पर मेरा रोलर आपरेटर जों कि कंपनी से दस दिन कि छुट्टी लेकर गया था छुट्टी से आने के बाद मुझे अपने किराए के घर में चाय के लिए बुलाया चलिए पहले में अपना परिचय दे दूं मेरा नाम प्रेम कुमार हैं में मल्टीनेशनल कंटैकसन कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर कार्यरत हूं चूंकि मैं टीम लीडर हूं ऐसे में टीम के सभी सदस्यों से काम के बाद भी उनसे मेल मिलाप उनके दुख सुख का ख्याल रखना मेरी जुम्मे दारी बनतीं है या यूं कहें कि मेरी ड्यूटी हैं  ठंड का समय था वातावरण में सर्द हवाएं के साथ  हल्की हल्की ओस कि बूंदें भी आ रही थी कुलमिलाकर हड्डियों को हिलाने वाली सर्दी थी ऐसे मौसम में भी साइट पर मेहनत कश मजदूर गर्म कपड़े पहनकर काम कर रहे थे में और मेरे मातहत टेक्निकल उनका सहयोग कर रहे थे तभी सूर्य का फोन आया था सर क्या आप साइट पर हैं  मैंने कहा जी  तब सर को आप मेरे घर आ जाईए  चाय पीते हैं  मैंने कहा सूर्य आप कि छुट्टी तों दस दिन कि थी फिर दो दिन पहले  उसने कहा सर मै अपनी पत्नी को लेने गया था जैसे कि हमारे समाज में शादी के चार पांच साल बाद गौना होता है गौने के पहले

दो गज कि दूरी




यूं  सेठ लछमी चंद को रूपयों पैसे कि कोई भी तंगी नहीं थी भगवान का दिया हुआ सब कुछ था दर्जनों  कारे  बंगले थे हजारों  करोड़ रुपए कि (रियल एस्टेट) कम्पनी के मालिक थे  अनेकों शहरों में व्यापार फैला था सेकंडों नोकर चाकर थे पावर इतना कि बढ़े बढ़े मंत्री चाय पीने को आते थे उच्च पदों पर बैठे सरकारी मुलाजिमों से अच्छा यराना था ऐक फ़ोन पर फाइलों में साइन करा लेने का अधिकार रखते थे वो बात अलग थी कि सेठ समय समय पर अपनी यारी नोटों के बंडल भेंट रूप में देकर निभाते रहते थे  खैर पैसे से कैसे पैसे बनाए जाते थे उन्हें हर गुर बखूबी आता था
सेठ जी कि उम्र लगभग साठ साल के आसपास कनपटी पर सफेद बाल थुलथुल शरीर गोरे चिट्टे मध्यम कद चेहरे पर तेज पर शरीर में बहुत सारी बिमारियों ने बसेरा कर रखा था जैसे शुगर ब्लेड प्रेशर गैस आदि आदि फिर भी दिन भर भागदौड़ कर रात्रि  दो बजे तक हिसाब किताब में ऊलछे रहते थे यू तो एकाउंट को सम्हालने वाले सी ऐ भी थे पर उनके ही हिसाब किताब को चेक करते थे विश्वास अपने रोम पर भी नहीं था  अर्धांगिनी कभी कभी टोकती तब यू कहकर टरका देते कि बस अब आख़री साल ही हैं नवनीत बिजनेस में अमेरिका से मास्टर डिग्री लेकर आ जाऐगा उसका विवाह कर के  उसे धीरे धीरे दो तीन सालों में  पूरा व्यापार सोप दुगा फिर आराम ही आराम !
सेठ लछमी चंद को दो औलादें थी बड़ी बेटी मुक्ता जिसकी शादी पांच वर्ष पहले ऐन आर आई अमेरिका में बढ़े बिजनेस मैन से कर दी थी छोटा नवनीत मुक्ता से आठ वर्ष छोटा था अभी अमेरिका के मशहूर  विश्वविद्यालय से बिजनेस कि मास्टर डिग्री के आखिरी साल में था 
कहते हैं कि सेठ लछमी चंद का पहले का नाम लछिया था उन्होंने भी ग़रीबी देखी थी मजदुरी की थीं फल सब्जी का ठेला लगाया था फिर कुछ पैसे इकट्ठा हो जाने पर अपना मकान बनाया उसे बेचा फिर जमीन खरीदी फिर मकान बनाया बस उन्हें जमीन से रुपए कमाने कि मशीन ही मिल गयी रियल एस्टेट का बढ़ा नाम बनकर सेठ लछमी चंद कहलाने लगे थे !
  • कर्म चारीयो से सेठ जी हमेशा दो गज दूर ही रहते थे  कम्पनी का जनरल मैनेजर हो या चपरासी सब को चमका कर रखते  थे भले ही प्रोजेक्ट कि सरकार से दो वर्ष कि पूर्ण करने कि अवधि मिली हो तब भी  डेढ़ साल में ही काम पूरा करने का दबाव  बना कर रखते थे बढ़ी बढ़ी बहुमंजिला इमारतों का दिन रात्रि काम चालू रख कर निर्माण  पूरा कराया जाता था तय समय से पहले गाहकों को उनके घरो कि चाबियां सौंपी जाती  थी  समय अवधि से भी पहले पजेशन  देने पर बजार में अच्छी इज्जत थी   इस इज्जत को पाने के लिए  इंजीनियर सुपरवाइजर मजदूरों का कितना शोषण किया गया था यह सेठ को बखूबी मालूम था कर्म चारीयो को तीस दिन का पैसा पैंतालीस दिनों में मिलता था हां कभी कभी साल दो साल में पांच दस प्रतिशत पगार भी बढ़ा कर अपना बढ़ा दिल दिखाते थे कुल मिलाकर कर्म चारी से काम निकालने कि कला के अच्छे खासे जानकार थै ।

दोपहर का समय था यो दिल्ली ऐन सी आर में मार्च के  महीने में तीसरे सप्ताह से गर्मी शैशव अवस्था से ज़वानी में क़दम रखने लगती  थी सीमेंट कांक्रीट के जंगल में (शहर) सड़कों को चैन नहीं था लोग आटो रिक्शा मोटरसाइकिल साईकिल कारों से भागम भाग कर रहे थे दिल्ली जैसे शहर में अपना परिवार का पालन पोषण करने के लिए तीनों ऋतुओं बरावर रहती थी ऐसे ही समय में सेठ लछमी चंद ऐ सी हाल में मैनेजरों कि मिटंग ले रहे थे गोल टेबल के इर्द-गिर्द बीसो कम्पनी के अधिकारी कुर्सी पर बैठे हुए थे  टेबल पर मोटी मोटी फाइलें रखी थी सभी को कार्य योजना समछा रहें थे कुछ अफसरों का ऐ सी हाल में बैठने के बाद भी चेहरे से पसीना टपक रहा था अंत में
उन्होंने कहा कोई सुछाव और हां मिस्टर खन्ना यह प्रोजेक्ट आप हैंडल करोंगे  यह हाईराइज प्रोजेक्ट ही कंपनी को नम्बर बन पर ले जा सकता है  फिर मुझे अगले वित्तीय वर्ष में कंपनी को नम्बर वन पर चाहिेए??
 मिस्टर खन्ना   जनरल मैनेजर थे उन्होंने कहां सर ढाई महीने बाद वारिस शुरू हो जाऐगी प्लाट का एरिया बढ़ा हैं  अंडर ग्राउंड तीन फ्लोर पार्किंग भी हैं मेरी राय में अभी प्लाट कि खुदाई कराना पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा ?
 मिस्टर खन्ना के कहने पर सेठ का पारा गरम हो गया डाईंग फायल को टेबल पर पटकते हुए कहा मेरे शब्द कोष में  शायद किन्तु परन्तु नहीं के लिए कोई शब्द नहीं मिस्टर खन्ना आप अपना रिजाइन अभी दे
सेठ के ऐसा बोलते ही मिस्टर खन्ना को ऐक बार चक्कर सा आ गया कुछ ही पलो में बच्चों कि फिसे फ्लेट कार कि ई ऐम आई और अनेको प़कार के खर्चे याद आ गये तपाक से कहा सर में  मेहनत से पीछे नहीं हटता यह में आपको सलाह दे रहा था फिर मालिक का मालिक कोन मेरी क्या आपको सलाह देने कि बिशात माफ़ी चाहूंगा अगली बार ऐसा नहीं होगा  !
सेठ जी ने कुछ पल बिचार किया फिर कहां खन्ना आप कम्पनी के पुराने मुलाजिम है आपने कंपनी को ऊंचाई पर ले जाने में कोई कसर नहीं छोड़ी फिर में भी  आपके कार्य कुशलता का कायल हूं इसलिए आप को ऐक मोका देता हूं आप को पता तो है कि बाजार में कितनी प्रतिस्पर्धा है हमारी जरा सी समय पर कम होती पकड़ हमें पीछे ढकेल देगी यह दस हजार करोड़ का प्रोजेक्ट है कम्पनी के ऐक ही विज्ञापन से एडवांस फ्लेट की बुकिंग शुरू हो गई है अगर हमने लेट काम किया तब हमारा प्रोजेक्ट भी लेट लतीफ हो जाऐगा फिर हमारी साख का क्या होगा समछ रहें हो न ।
जी जी सर बिल्कुल बिल्कुल खन्ना ने कहा
तब फिर मुझे ऐक हफ्ते के अंदर काम चालू चाहिए पेटी ठेकेदारों को टेंडर जारी करो दस पांच पर्सेंट रेट ज्यादा दो मेन पावर बडायो ओर हा सभी कर्मचारियों के बीच से कहो कि कम्पनी जल्दी ही काम के हिसाब से पगार बढ़ा रहीं हैं !
जी सर बिल्कुल बिल्कुल हो जाएगा मिस्टर खन्ना ने कहां
सेठ जी ने सभी पर नजर डाल कर कहां आप सभी को वर्क प्लान दे दिया गया है अब मुझे उसी के अंदर काम चाहिए याद रखना लेट लतीफी मुझे मंजूर नहीं गलती पाने  वाले को मैं छोडूंगा नहीं अब आप सभी जा सकते हो।
जनवरी महीने से ही  मिडीया के हवाले से कोरोनावायरस कि मंद मंद बयार बह रही थी पड़ोसी देश चीन के संक्रमित व मरने वालों के आंकड़े दिखाएं जा रहे थे भारत सरकार सभी आंकड़ों पर नजर रख रही थी कब कोरोना भारत में दस्तक देकर तबाही मचाएगा सरकार को यहीं चिंता सता रही थी पर सरकार कि लाख कोशिशों के बाद भी कोरोना दबे पांव भारत में प्रवेश कर गया था तब बाईस मार्च को प़धान मंत्री के आव्हान पर जनता ने खुद कर्फ्यू लगा कर कोरोनावायरस को चुनौती दी थी पर शैतान वायरस कहां मानने वाला था ऐक ही दिन के अंतराल पर बहुत सारे संक्रमण मरीज़ पाऐ गये थे फिर चोबीस मार्च को रात्रि 9:00 बजे सभी टेलीविजन न्यूज़ चैनलों पर एक गंभीर सधी हुई आवाज में
प़धान मंत्री  ने देश को संबोधन किया कि आज रात बारह बजे से संपूर्ण देश में सख्ती से लोक डाउन किया जा रहा है जो जहां पर हो वहीं पर रहे सरकार ख्याल रखेगी यात्री वाहन रेल हवाई सेवाओं को अगले कुछ दिनों के लिए बंद किया जा रहा है धार्मिक स्थल दुकान फैक्टरियां निर्माण कार्य को बंद किया जा रहा है प्रधानमंत्री के उद्वोधन के साथ ही सारे देश  की जनता ने अच्छे राष्ट्र के नागरिक होने का परिचय देकर सरकार का साथ देने का फैसला किया था सेठ लछमी चंद ने भी कम्पनी के व्हाट्सएप ग्रुप पर मैसेज छोड़ा की सरकार के अगले आदेश तक सभी निर्माण कार्य रोक दिए जाएं ?
सभी स्टाफ एवं मजदूरों को मास्क सेनेटाइजर कि व्यवस्था कि जाए वह सभी पेटी ठेकेदारों को मजदूरों का राशन पानी कि व्यवस्था के लिए कहां जाएं सभी दो गज दूरी बनाकर रहें !
अलग अलग शहरों में सभी साइटों पर हजारों कि तादाद में प्रवासी मजदूर थे कुछ समय तक तो पेटी ठेकेदारों ने मजदूरों कि मजबूरी समझ कर मदद कि फिर मजदूरों को उनके हाल पर छोड़कर सभी भूमीगत हो गये थे ऐसे हालात में मजदूरों ने अपने अपने गांव पलायन करने का फैसला किया था पर सेठ ने उन्हें रोकने का प्रयास भी नहीं किया उनकी किसी तरह कि मदद नहीं कि शायद भूल गए थे कि उन्हें अरबपति बनाने में इन तपस्बी मजदूरों ने कितना बरसों से खून पसीना बहाया था  शायद सेठ भूल गए थे कि किसी भी उधोग कि मजदूर ही रीढ़ कि हड्डी होते हैं वहीं राष्ट्र निर्माण में अपनें श्रम से ही राष्ट्र को ऊंचाई पर ले जाते हैं उनके श्रम से ही सढक रेल मार्ग का निर्माण होता है हवाई पट्टी बनती है बांध बनाए जाते हैं पर अफसोस मजदूरों और किसानों कि मजबूरी का फायदा लिया जाता है और शायद आगे भी लिया जाता रहेगा ??

लोक डाऊन के दो सप्ताह बीत गए थे प्रवासी मजदूर कठिन परिस्थितियों में अपने अपने राज्यों गांव शहरों के लिए रेल मार्ग सढक मार्ग से पैदल ही लोट रहे थे कुछ तो बेचारे भूख प्यास से व्याकुल होकर देह त्याग रहें थे कुछ रोड ऐक्सिडेंट से ओर महाराष्ट्र में तो थके हुए मजदूरों ने रेल कि पटरी को ही बिछोना समछ लिया था फिर बे माल गाड़ी से कटकर काल के गाल में समा गए थे अब इस में किसका दोष था सरकार का उधोग पतियों का या फिर ऊनका यह तो समय ही बताएगा वही मूल्यांकन कर इतिहास में दर्ज करेगा ।

कोरोनावायरस ने धीरे-धीरे सारे विश्व को अपनी गिरफ्त में ले लिया था इटली अमेरिका जैसे देशों ने घुटने टेक दिए थे किसी भी देश के पास वैक्सिंग नहीं थी कोई इलाज नहीं था सभी देशों कि सरकारो ने लोक डाउन कर के अपने अपने नागरिकों को बचाने का भरसक प्रयास जारी रखा था सभी देशों ने अपने अपने प्रवासी नागरिकों को बापिस लाने  का फैसला लिया ऐसे में सरकार ने भी प्रवासी भारतीय नागरिकों को बिदेशो से हवाई जहाज़ से बापिस लाने का फैसला लिया सेठ लछमी चंद का पुत्र नवनीत अमेरिका से वापिस आ रहा था ड्राइवर को ई पास के साथ एयरपोर्ट भेज दिया गया था सेठ बार बार घड़ी पर नज़र डालकर टहल रहे थे बार बार ड्राइवर को फोन पर फोन मिला रहे थे उधर सेठानी किचन में उसकी पसंद कि बहुत सारी डिस मिठाईयां वनावा रहीं थीं  कुल मिलाकर पूरे बंगले में उत्सव का माहौल था !
सेठ जी ने फिर ड्राईवर को फोन मिलाया उधर से बताया गया कि फ्लाईट आ गयी हैं यात्रीयो कि थर्मल स्कैनिंग कि जा रहीं हैं टाइम लगेगा साहब सेठ जी ने मन ही मन भगवान को स्मरण कर कहां प़भु दया रखना .....
करीब घंटे भर बाद ड्राईवर का फोन आया साहब बाबा को रोक रखा कोरोना के संदिग्ध पाए गए हैं उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा है इतना सुनते ही उन्हें चक्कर सा आ गया माथा पकड़ कर सोफे पर बैठ गए सेठानी के आंखों से अबरल अश्रु धारा बहने लगी नोकर चाकर  मोन हाथ बांधे खड़े थे पूरे बंगले में सन्नाटा पसर गया था पर न जाने कहां से दो कोऐ बंगले में प्रवेश कर अपनी कर्कश आवाज से कुछ बोल रहे थे पर क्या ??   शायद मानव को समछा रहें थे कि तू कितना भी धनवान बन जा कितना भी शक्ति शाली क्यों ना हो पर हे मानव प्रकृति से बढ़ा नहीं हो सकता देख लिया न ऐक हल्के से छटके ने मानव तुम्हें तुम्हारी औकात समछा दी ....
सेठ जी कि नजर  काग के जोड़ों पर पड़ी चिल्ला कर कहा उन्हें बाहर करो अभी अपशगुन कर रहे हैं फिर क्या था नोकर चाकर कोऔ   को लाठी डंडा लेके भगाने लगें थे कौवा काव काव काव बोलकर फुर्र हो  गए ..

कुछ घंटों बाद सेठ लछमी चंद  ऐक निजी नर्सिंग होम में मुंह नाक पर मास्क लगा कर डाक्टरो के सामने  नतमस्तक हो कर कह रहे थे जितना भी पैसा खर्च हो मैं करूंगा में मंत्रीयो को भी अस्पताल में ऐक फ़ोन पर बुला सकता हूं    मैं पूरे अस्पताल को अभी खरीदने कि दम रखता हुं ऐसे दस बीस और ....
अच्छे डाक्टर को बुलाइए एयर लिफ्ट कर बिदेश को रिफर किजीऐ
डाक्टर  धीरज से काम लिजिए आप इलाज जारी है  हम कोशिश कर रहे हैं अभी बहुत सारे  टेस्ट किए है रिपोर्ट आने में टाइम लगेगा और आप को तो मालूम ही है कि इस वायरस का अभी पुख्ता कोई भी इलाज नहीं आप संसार के किसी भी देश में लें जाए कितना भी बड़ा अस्पताल हो डाक्टर हों   सब हवा में ही हाथ पैर चला रहे हैं !
सेठ  डाक्टरों के समझाने पर निराश हो गए थे फिर उन्होंने कहा  ऐकबार में मिल सकता हूं
डाक्टर जी नहीं आईं सी यूं में एडमिट किया है फिर आप को तो मालूम ही है यह छूत कि बीमारी है रिस्क नहीं लेना चाहता
 सेठ जी ...... पर मे दूर से ही देख लूंगा
डाक्टर.... ठीक है दो गज दूर रहना घंटी बजा कर ... नर्स सेठ जी को सेफ्टी किट पहना कर दो गज दूर से ही उनके बेटे को दिखा दिजियेगा
आई सी यू में नवनीत के पलंग पर हाथ पैर बंधे हुए थे नलीयो का पूरा जाल बिछाया गया था मुंह पर ऑक्सीजन किट लगी हुई थी शरीर को चारों और प्लास्टिक  से लपेटा गया था जिंदा लाश में तब्दील कर दिया गया था !
सेठ जी के आंखों से अबरल अश्रु धारा बहने लगी ईश्वर को बार बार याद करने लगे थे उन्हें अपना रियल एस्टेट का साम्राज्य तुच्छ  नज़र आ रहा था रह रह कर मजबूर मजदूरों के मुरझाए चेहरे याद आ रहे थे उन्हें ऐसा लग रहा था की सड़क पर धूप में पसीना बहाते हुए मजदूर बद दुआ दे रहे हो जैसे कह रहे हो सेठ हमारी हाय व्यर्थ नहीं जाएगी जैसे उन्हें चारों ओर से एक्सीडेंट रेल की पटरियों पर मरे हुए मजदूरों कि आत्माओं का करूढ रूदन कानों में सुनाई दे रहा हो जैसे मजदूरों कि आत्माएं नवनीत के पलंग के चारों ओर नृत्य कर रही हों  सेठ जी आई सी यू से बाहर निकल कर एकांत में आंसू बहाने  लगें थे  बंगले से सेठानी भी आने कि जिद कर रही थी पर अस्पताल प्रशासन इजाजत नहीं दे रहा था !
कुछ दिन बात नवनीत जीवन कि जंग हार गया था (डेथ बोडी) लाश भी नहीं दी गई थी प्रशासन कि देखरेख में पांच लोगों ने अंतिम संस्कार किया था माता-पिता को ऐक बार भी चेहरा देखने को नहीं मिला था बंगले में रोना धोना जारी था मुक्ता बार बार मां बाप को फोन पर  ढांढस बंधा रही थी पड़ोसी चाह कर आ नहीं रहें थे जो भी आते दो गज कि दूरी बनाकर दो शब्द बोलकर अपने घर का रास्ता पकड़ लेते थे !
 बेटे का क्रिया कर्म  निपटाकर कुछ दिन बाद सेठ जी ने फिर मिटीग ली थीं  कंपनी के बकीलो को भी बुलाया था
सेठ जी   आज मे आप सभी को कार्य योजना समछाने नहीं आया आज मे अपनी संपत्तियों में से तीन तिहाई शेयर कंपनी को सोप रहा हूं बकिल साहब कागज़ निकालिए बोर्ड का गठन कर दिया है अब आप लोग ही कंपनी को अपने हिसाब से चलाऐ मिस्टर खन्ना को बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया है में तो बाहरी तौर पर मजदूरों के हितों को देखता रहूगा  ऐसी जगह चिन्हित की जाएं जहां गरीबों की बस्ती हो वहां स्कूल अस्पताल कंपनी के द्वारा खोले जाएं बेसहारा दिव्यांग भाइयों के लिए कंपनी हमेशा भोजन की व्यवस्था रखें वैसे कागजों में सभी कुछ लिखा हुआ है भाई दोलत कि भूख में मैंने आप सभी साथियों के अलावा मजदूरों का बहुत शोषण किया शेष जीवन को अध्यात्म की ओर ले जाकर प्रभु की शरण में जाना चाहता हूं इंसान खाली हाथ आता है और खाली हाथ ही जाता है फिर भगवान ने मुझे सज़ा दे दी है आप सभी से भी छमा चाहूंगा  जो भी मजदूर पलायन कर गए हैं उनके खातों में पैसा डालें जाए ऊनकि पगार में इजाफा किया जाए फिर थके हुए लहज़े से मेने सारे जीवन सभी से दो गज कि दूरी बना कर रखी थीं  इसी दूरी के कारण मुझे बेटे का चेहरा देखने को भी नहीं मिला था फिर अंत समय में दो गज  जमीन कि ही जरूरत पड़ती है भाई जो बोया वही काटा सहसा  खन्ना  मुझे कार तक छोड़ दिजिए सेठ खन्ना के कंधों का सहारा लेकर थके कदमों से मिटिग हाल से बाहर निकल गये थे आज उन्हें परम शांति मिल रही थी  अपने ह़दय परिवर्तन पर ईश्वर की शरण में जाकर ।।






Comments

Unknown said…
कहानी अच्छी लगी।

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बड़ा दिन कविता

 आज तो बड़ा दिन था  पर पता नहीं चला बिना हलचल के ही गुजर गया रोज कि भाती सूरज उषा के साथ फाग खेलता आया संध्या के साथ आंख मिचौली करता चला गया चतुर्थी का चंद्रमा उभरा अपना शीतल प्रकाश बिखेर चल दिया तारों कि बारात आकाश में उतर मोन दर्शक बन चहुं ओर बिखर गई रोज कि भाती लोगों कि भीड़ अपना अपना कर्म कर सो गई पंछियों के समूह प्रभात के साथ कलरव का गान कर संध्या आते गुनगुनाते चहचहाते पंखों को फड़फड़ाते घोंसलों में चलें गये  हर दिन बड़ा दिन ऐसा कहते हमें समझाते गये।।

ससुर जी का दूसरा विवाह समाजिक कहानी

 आजकाल नीता ससुर जी के व्योहार में अलग तरह का परिवर्तन देख रही थी जैसे कि जब वह किचन में खाना पकाने में व्यस्त रहतीं तब अनावश्यक ही वह किसी न किसी बहाने से आ जाते व जब वह बाथरूम में नहाने जाती तब उसे लगता था कि जेसै कोई दरवाजे कै ऊपर लगे रोशन दान से झांकने कि कोशिश कर रहा है व जैसे कि जब वह पति के साथ अंतरंग पलों में होती तब खिड़की के पास कोई खड़ा होकर अन्दर के दृश्य को देखने कि कौशिश कर रहा होता हालांकि उसने यह सब अपने मन का बहम समझ कर दिमाग से निकाल दिया था परन्तु हद तो तब हो गई थी कि वह बेडरूम में कपड़े बदल रही थी तभी ससुर जी ने गेट को हल्का सा धक्का देकर अन्दर झांका था उसने हड़बड़ी में बैड सीट से अपनी देह को ढक लिया था वह कुछ छड़ों के लिए किरतबय मूड होकर खड़ी रह गई थी खैर कुछ देर बाद कपड़े पहन कर वह डाईंग रूम में पहुंची थी ससुर जी टेलीविजन पर समाचार देख रहे थे उसने कहा कि आप को कुछ काम था क्या आप को दरवाजा खटखटा कर आना चाहिए था में कुछ दिनों से आप के अजीब व्यवहार को देख रही हूं छी छी आपकों शर्म भी नहीं आतीं ऐसी छिछोरे पन दिखाने में मैं आपकी बहू हूं और बहू बेटी के समान होती है समझें

तुम कहां हो

 तुम कहां हो? कहां नहीं हों ? दोनों अनंत काल से चले आ रहें शाश्वत प़शन है इनके उत्तर भी अनंत काल से  शाश्वत हैं। प़भु के बगैर होना तो दूर कल्पना भी संभव नहीं तुम सर्वत्र हो प़भु कण कण में समाए हों प़भु तुम यहां भी हों वहां भी हों आपके बिना कहते हैं कि  पत्ता भी नहीं हिल सकता मंद मंद शीतल पवन नहीं वह सकतीं कल कल करती नदियां नही बह सकतीं हिलोरें मारकर विशाल सागर  अपनी सीमा में नहीं रहता न ही सूर्य अपनी तपिश बिखेर कर हमें रोशनी देता न ही चांद दीए जैसी रोशनी से हमें  शीतलता देता  पूछता हूं प़भु तुम कहां हो। हे प्रभु जब से हम मानव कि अगली पीढ़ी से लेकर  आखिर पीढ़ी तक यह प़शन हमें तबाह किये हुए हैं  बर्बादी के द्वार पर खड़ा किए हुए हैं हे प्रभु प़शन अटपटा सा है पर शब्दों कि गूंज उत्तर के रूप में होती है पर परतीत नहीं होती  हे प्रभु कभी कभी लगता है कि आप हमारे अन्तर मन में हों  तब कभी कभी लगता है कि आप कण कण में हों  तब कभी कभी लगता है कि दीन हीन लाचार अपाहिज मानव  पशु पंछी कि देखभाल करने में  हमें भूल गए हों  लेकिन यह सच है कि प़भु आप तो हो  पर आप कहां हो,??

शब्दों का व्यापार लघु कविता

 अब तो बस शब्दों का व्यापार है। सत्य असत्य का शब्द ही आधार है।। शब्दों से भरी हवाएं चारों ओर वह रही है शब्दों से भरे अखबारों कि रद्दी बिक रही है शब्दों से न जाने कितने वादे किए जाते हैं पूरे न किए तब शब्द ही माफी मांगते है शब्दों को ओढ़ अनेकों प्रतिभाएं चल रही है कर्म से नाता तोड फलफूल रही है  शब्दों से लोग अपनी योग्यता बताते हैं दोस्त अपनी दोस्ती शब्दों से आगे बढ़ाते हैं और तो और शब्दों के बल पर प्यार हो जाता है इन्हीं शब्दों से नवयुवक नवयुवती का संसार वस जाता है शब्दों कि संवेदना न जाने कितने को जोड़े हैं  शब्दों कि बरसात न जाने कितने को तोड़ें है शब्दों के बल पर नेता अभिनेता रोजीरोटी धन कमाते हैं पर कवि लेखक शब्दों को लिखकर बेवकूफ कहलाते हैं नेता अभिनेता दो शब्दों को कह गृहप्रवेश दुकान का उद्घाटन करते हैं भाईसाहब दुनिया शब्दों के घेरे में चल रही है। आत्मा को परमात्मा से दूर कर तेरा मेरा संजोए हुए है और तो और धर्म भी शब्दों में कैद हैं  कुछ पाखंडी हर धर्म शास्त्री शब्दों को तोल कर दुकान चला रहे हैं  शब्दों को चांदी विन शब्दों को सोना कहा जाता है परन्तु सोना छोड़ यहां इंसान चांदी अपना

दलदल एक युवा लड़के कि कहानी

वह एक वर्षांत कि रात्रि थी मेघ गर्जन करते हुए कड़कती बिजली के साथ घनघोर वर्षा कर रहे थे ऐसे ही रात्रि में परेश होटल के कमरे में एक युवा शादी शुदा महिला के साथ लिपटा हुआ था  महिला के कठोर नग्न स्तनों का नुकिला हिस्सा उसकी छाती पर गढ़ रहा था वातावरण में गर्म सांसें के साथ तेज सिसकारियां निकल रही थी सांगवान का डबल बैड पलंग पर मोंटे मोंटे गद्दे कांप रहे थे पलंग का शायद किसी हिस्से का नट बोल्ट ढीला था तभी तो कि कुछ चरमरा ने कि आवाज आ रही थी  साथ ही महिला के मुख से और तेज हा ओर तेज शाबाश ऐसे ही ... .. आह आह सी सी बस बस अब नहीं छोड़ो टांग दर्द  कर रही है बस बस  पर परेश  धक्के पर धक्का दे रहा था फिर वह भी थम गया था अपनी उखड़ी सांसों के साथ चूंकि परेश पुरूष वैश्या था उसकी अमीर हर उम्र कि महिला थी वह इस धंधे में नया नया आया था  पर जल्दी ही अमीर महिलाओं के बीच फेमस हो गया था उसका कारण था उसका सुंदर सुडौल शरीर और बात करने का सभ्य।  ढग फिर वह अपने काम को पूरी इमानदारी से निर्वाह करता था मतलब उसकी ग़ाहक को किसी भी प्रकार कि शिक़ायत नहीं रहती थी । खैर सांसें थमते ही दोनों अलग हो गए थे महिला ने मद्धम