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Showing posts from April, 2023

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सूर्य का प्यार चांदनी से कहानी

 बात लगभग लगभग पांच साल पुरानी है ऐक दिन मेरी साइट पर मेरा रोलर आपरेटर जों कि कंपनी से दस दिन कि छुट्टी लेकर गया था छुट्टी से आने के बाद मुझे अपने किराए के घर में चाय के लिए बुलाया चलिए पहले में अपना परिचय दे दूं मेरा नाम प्रेम कुमार हैं में मल्टीनेशनल कंटैकसन कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर कार्यरत हूं चूंकि मैं टीम लीडर हूं ऐसे में टीम के सभी सदस्यों से काम के बाद भी उनसे मेल मिलाप उनके दुख सुख का ख्याल रखना मेरी जुम्मे दारी बनतीं है या यूं कहें कि मेरी ड्यूटी हैं  ठंड का समय था वातावरण में सर्द हवाएं के साथ  हल्की हल्की ओस कि बूंदें भी आ रही थी कुलमिलाकर हड्डियों को हिलाने वाली सर्दी थी ऐसे मौसम में भी साइट पर मेहनत कश मजदूर गर्म कपड़े पहनकर काम कर रहे थे में और मेरे मातहत टेक्निकल उनका सहयोग कर रहे थे तभी सूर्य का फोन आया था सर क्या आप साइट पर हैं  मैंने कहा जी  तब सर को आप मेरे घर आ जाईए  चाय पीते हैं  मैंने कहा सूर्य आप कि छुट्टी तों दस दिन कि थी फिर दो दिन पहले  उसने कहा सर मै अपनी पत्नी को लेने गया था जैसे कि हमारे समाज में शादी के चार...

गायों का झुडं

 गायों का  झुडं  जब   टुन टुन धुन  धुन  किढ किढ   सुन सुन  की अनोखी आवाज   करता  एकाएक सामने आ गया  । तो काफी देर तक   ईस अनोखे समूह को  मे  एकटक   देखता  रह गया  ।। तभी  भोला भाला  बरेदी   अनोखी  आवाजे गायो को  देता   हँसता मुसकुराते चिल्लाता दौडता  पास से  गुजर गया  उसका मुसकुराहट से भरा  चेहरा  उसका संतोष  उसका गायों के प़ति स्नेह  देख में ठगा सा  रह गया  पुनः उसी  अनजाने  संगीत में  ऊनही आवाज में  भागत उछलती  चुपचाप घास  चरती   आपस में  फूसती  सिर लडाती  जुग आली कर रभाती गायों के  झुंड को  देख  कर्मयोगी   कृष्ण कि  याद कर हृदय पुलकित पुलकित हो गया । गायौ के  झुंड को  देख   अचानक गोकुल के गवाल  द्वारका के  राजा  गोपियों के कन्हैया  महाभारत में अर्जुन को कर्म का मरम...

तू अध्यात्म कविता

 तू रोज चाहे जब  क्या बजाता है   कौन सा  राग  छेड देता  कोन से कलाकारों को  ले  मंच पर अवितरित हो नित नुतन  संगीत कि  धुने  बजाता है   कभी भी  तेरे  कलाकार  थकते नहीं   रात दिन  तू  अपने इसारो पर   तू  इनहें  चला रहा   न जाने कितने अकेलो को   तू  अकेला  भरमा  रहा   तेरे ही  स्वर  राग  बन  वह  रहे  हैं  तेरे गीत  हमसे  कुछ कह  रहे है ।।

दादी कि सूझबूझ

  भोर का समय था दूर कहीं मंदिर कि घंटि के साथ शंख कि आवाज आ रही थी उसके कुछ ही देर बाद कहीं दूर मुर्गा बाग लगा रहा था जिसकि आवाज रेल गाडी निकलने कि छप छप अवाज से दब रही थी शायद कोई मालगाड़ी निकली थी ऐसे ही समय में सुरभि पति कि छाती पर सिर रखकर नींद के आगोश मै खोई हुई थी पति कि सासो लेने से उसका सिर भी छाती के साथ उपर नीचे हो रहा था फिर भी वह निश्चित होकर सो रही थी चूंकि सुरभि पुलिस अधिकारी थी डयूटी से देर रात वापिस घर आई थी तभी तो घोड़े बेचकर पति के आगोश के सहारे घोड़े बेचकर सो रही थी तभी मोबाइल फोन कि घंटि बज उठी थी पति ने सिरहाने के पास छोटी सी टेविल थी जिस पर मोबाइल रखा हुआ था हालाकि सुरभि ने पति को निर्देश दे कर रखा था कि संगे संबंधियों का कभी भी ऐसे समय में फोन आऐ तब रिसीव कर लीजिये वरना नही पति ने आंख मिचमिचाते हुऐ नम्बर नाम देखा था फिर हैलो हैलो कह कर जी कहिए सुरभि अभी नींद में हैं ओह हां हां जी मे उसे अभी नहीं कहूंगा हा ठीक हैं आने वाला कॉल सुरभि कि मां का था चूंकि सुरभि कि दादी जिंदगी कि सफल पारी खेलकर अंतिम सफर पर हमेशा हमेशा आसमान में तारो के पास चली गई थी या फिर आत्मा क...

दादीजी का चश्मा

 जब जब दादी ने अपने चश्मे को नाक पर रखा तब परिवार में बड़ा भूचाल आया था उस भूचाल को दादी जी ने अपनी सूझबूझ से हमेशा हमेशा के लिए परिवार से वाहर कर दिया था ठीक हैं कुछ साल से दादी जी ने अपना चश्मा नाक पर नहीं रखा था इसलिए सारा परिवार खुश था परन्तु अभी कुछ दिनों से उनहोंने फिर से चश्मे को नाक के मध्य भाग में रखकर सभी परिवार के सदस्यों को देखना चालु कर दिया था तब से परिवार मे भय का माहोल था हालाकि दादी कि उम़ सौ साल के पास थी इस उम़ में भी दादी जी से सारा परिवार डरता था कारण यह था उनका कठोर अनुसासन जैसे कि भोर के समय पर सभी परिवार के सदस्यों को नित्य कर्म से निर्मित होकर बाहर टहलना ताजी हवा फेफड़ों मे जमा करना और फिर चाय के पहले दूध में बासी रोटी खाना फिर चाय या काफी पीना नहाने के बाद घर के छोटे से मंदिर में सभी को ईश्वर कि आरती करना फिर नाश्ता कर के परिवार के सभी सदस्य अपने से बड़े के पैर छूकर घर से काम पर जाना उनका यह आदेश उनके दोनों पुत्र उनकी पत्नी पिछले चालीश साल से मान रहे थे बडा बेटा अभी 75 साल में था छोटा तीन साल छोटा फिर उनके बच्चे कुलमिलाकर परिवार में बीस सदस्य थे सभी सदस्य ...

डबल बेड

 वह भादो माह कि काली रात्रि थी आसमान में मेघ भीषण गर्जन करते हुए धरती पर कभी तेज तब कभी धीमी गती से पानी कि धारा बूदो के रूप में बिखेर रहे थे कभी कभी हबा भी तेज गति से पेड़ पोधो को परेशान कर रही थी व कही दूर मेंढक, झींगुर कि टर टर सी सी कि आवाज आ रही थी कालोनी के पास कही कुत्ते सामूहिक रुदन कर रहे थे जैसे की मानो बे सब मिलकर कह रहें हो कि हे मानव हमारे पूर्वजों ने तुम्हारे जीवन जीने के लिए अपने पचचीश साल भगवान् से प्रार्थना कर तुम्हे दिए वह इसलिए अपनी आयु से दिए थे कि हे मनुष्यो तुम्हारी बढी हुइ आयु से हम मुक को खाना रहना, मिलता रहेगा अरे अब देखो तुम सब अपने अपने घरों मे पलंग पर रजाइ मे दुबक कर नींद में मस्त हो कर पडे हो और हम ऐसी वारिस में अपने छुपने का स्थान खोज रहे हैं हे मनुष्यो हमे तो तुम्हारे पोर्च में जरा सा जमीं का टुकड़ा चाहिए था बदले में तुम्हारे घर कि रखवाली फ़ी में हो जाती फिर कहते हो इंसान का सबसे अच्छा दोस्त कुत्ता होता हैं अरे भला बताऐंगे हम ने दोस्ती वफादारी निभाने में कहाँ गलती कि थी बेघर कुत्ते सामूहिक रूप से रो कर अपना दर्द बता रहे थे । ऐसे ही मौसम में युवा स्त...

कमली कि व्यथा

 वह एक वर्षांत कि रात्रि थी आसमान में मेघ ढोल नगाड़ों के साथ उत्पाद मचा रहे थे रुक रुक कर बिजली चमक रही थी बादलों के गर्जन से चारों दिशाएं कांप रही थी दूर कहीं बिजली गिरी थी उसी के साथ बिजली चली गई थी शायद कहीं तार फाल्ट हों गये थें तभी तो सारा शहर अंधेरे में डूब गया था ऐसे ही रोमांटिक मौसम में कमली पति के साथ चिपटी हुई थी सांगवान का पलंग थर थर कांपे जा रहा था कमरें के अन्दर के वातावरण में गर्म गर्म सांसें टकरा रहीं थीं कामुक सिसकारियां निकल रही थी वह चरमोत्कर्ष पर पहुंची भी नहीं थीं तभी दरवाजे पर दस्तक हुई थी जो बार बार खोलिए कोई कह रहा था कमली ने पति को अलग किया था फिर दिया सलाई अंधेरे में खोजकर मोमबत्ती जला दी थी देह पर मैक्सी पहन कर दरवाजा खोल दिया था दरवाजा खुलते ही पुलिस एक झटके में ही घर के अंदर दाखिल हो गई थी टार्च कि रोशनी से घर का हर कोना अलमारी संदूक खंगाले जा रहे थे कमली समझ नहीं पा रही थी कि यह सब क्या हो रहा है उसने पुलिस इंस्पेक्टर से पूछा था साहब यह तलाशी क्यों ? तेरे पति ने बैंक में गबन किया हैं ऐसा कहकर वह बैडरूम में दाखिल हो गया था बिस्तर पर लेटा हुआ पति जिसने अप...

वफादार पत्नी

 संध्या का समय था वातावरण में कोहरा छाया हुआ था ठंड में हाथ पैर कंपकंपा रहे थे किसान अपने खेतों के काम निपटा कर मवेशियों को लेकर घर लौट रहे थे गोधूलि आसमान को छू रहीं थीं परन्तु कोहरे के कारण दिखाई नहीं दे रही थी गाएं नवजात बछड़े को दूध पिलाने के लिए व्याकुल होकर आवाजें लगा रही थी ऐसे ही वातावरण में रूपा अपनी मां के साथ खेतों का काम निपटा कर आ रही थी खेतों के नाम पर थोड़ी सी जमीन थी जिसमें सब्जी लगाकर बाजार में बेचकर गुज़र बसर हो रहीं थीं कुछ बकरियां थी एक गाय थी जीनका दूध वेचकर आजिविका के लिए कुछ सहारा मिल जाता था खैर रूपा से उसकी मां ने कहा था वेटी जल्दी जल्दी चल लगता है कि वारिस आएंगी यह बीन मौसम वारिस फ़सल को नुक्सान पहुंचा कर ही दम लेगी वह बड़बड़ाने लगी थी । रूपा बहिन भाई से बढ़ी थी जन्म से ही ग़रीबी उसे उपहार में मिलीं थीं माता पिता ने गांव के ही सरकारी स्कूल से मिडिल क्लास तक पढ़ाई करा दी थी उसके बाद पास के कस्बे में स्कूल था जहां भेजना स्कूल कि फीसें किताब कापी का खर्च उठाना उनकी सामर्थ से बाहर था तब उन्होंने रूपा को घर के काम काज खेती किसानी में हाथ बांटने को कहा था अब वह ...