अगहन माघ का तीसरा सप्ताह था सांध्य काल में ठंडी महसूस होने लगी थी हालांकि शहर के सीमेंट कांक्रीट के जंगल में ठंडी का एहसास इस माह न के बराबर होता था परन्तु शहर के बाहर सांध्य समय मे ठंडी जोर पकड़ रही थी मोटरसाइकिल सवार गर्म कपड़े पहनने लगें थें कानों कि ठंड को हेलमेट बचा रहा था ऐसे ही सांध्य कालीन समय में नरेंद्र ड्यूटी से घर आया था मोटरसाइकिल बाहर रोड पर पार्क कर जैसे ही किराए के घर के अंदर गया पत्नी उसे देखकर तमतमा उठी थी उसके तेवर बदले हुए थें नरेंद्र निढाल होकर सोफे पर बैठ गए थे लम्बी सी जम्हाई लेते हुए उन्होंने पत्नी से कहा बहुत थका हुआ हूं रचना एक कप गर्मागर्म चाय मिल जाती तब हरारत कम महसूस होती परन्तु सरकार के तेवर बदले हुए हैं । रचना पांव पटकते हुए किचन में चली गई थी थोड़ी देर बाद दो कप चाय लेकर आ गई थी उसने नरेंद्र को मग दें दिया था पास ही बैठकर खुद चाय पीने लगी थी परन्तु बात नहीं कर रही थी नरेंद्र से रहा नहीं गया तब उन्होंने कहा रचना क्या कारण है जो आप गुस्से में हों लगता है कि बच्चों ने परेशान कर दिया अरे भाई बच्चे तों बच्चे हैं अभी मस्ती नहीं करेंगे तब फिर कब करेंगे हा...
अपनी सी कहानियां का पिटारा