Skip to main content

Posts

Showing posts from January, 2024

Featured Post

सूर्य का प्यार चांदनी से कहानी

 बात लगभग लगभग पांच साल पुरानी है ऐक दिन मेरी साइट पर मेरा रोलर आपरेटर जों कि कंपनी से दस दिन कि छुट्टी लेकर गया था छुट्टी से आने के बाद मुझे अपने किराए के घर में चाय के लिए बुलाया चलिए पहले में अपना परिचय दे दूं मेरा नाम प्रेम कुमार हैं में मल्टीनेशनल कंटैकसन कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर कार्यरत हूं चूंकि मैं टीम लीडर हूं ऐसे में टीम के सभी सदस्यों से काम के बाद भी उनसे मेल मिलाप उनके दुख सुख का ख्याल रखना मेरी जुम्मे दारी बनतीं है या यूं कहें कि मेरी ड्यूटी हैं  ठंड का समय था वातावरण में सर्द हवाएं के साथ  हल्की हल्की ओस कि बूंदें भी आ रही थी कुलमिलाकर हड्डियों को हिलाने वाली सर्दी थी ऐसे मौसम में भी साइट पर मेहनत कश मजदूर गर्म कपड़े पहनकर काम कर रहे थे में और मेरे मातहत टेक्निकल उनका सहयोग कर रहे थे तभी सूर्य का फोन आया था सर क्या आप साइट पर हैं  मैंने कहा जी  तब सर को आप मेरे घर आ जाईए  चाय पीते हैं  मैंने कहा सूर्य आप कि छुट्टी तों दस दिन कि थी फिर दो दिन पहले  उसने कहा सर मै अपनी पत्नी को लेने गया था जैसे कि हमारे समाज में शादी के चार...

तुम कहां हो

 तुम कहां हो? कहां नहीं हों ? दोनों अनंत काल से चले आ रहें शाश्वत प़शन है इनके उत्तर भी अनंत काल से  शाश्वत हैं। प़भु के बगैर होना तो दूर कल्पना भी संभव नहीं तुम सर्वत्र हो प़भु कण कण में समाए हों प़भु तुम यहां भी हों वहां भी हों आपके बिना कहते हैं कि  पत्ता भी नहीं हिल सकता मंद मंद शीतल पवन नहीं वह सकतीं कल कल करती नदियां नही बह सकतीं हिलोरें मारकर विशाल सागर  अपनी सीमा में नहीं रहता न ही सूर्य अपनी तपिश बिखेर कर हमें रोशनी देता न ही चांद दीए जैसी रोशनी से हमें  शीतलता देता  पूछता हूं प़भु तुम कहां हो। हे प्रभु जब से हम मानव कि अगली पीढ़ी से लेकर  आखिर पीढ़ी तक यह प़शन हमें तबाह किये हुए हैं  बर्बादी के द्वार पर खड़ा किए हुए हैं हे प्रभु प़शन अटपटा सा है पर शब्दों कि गूंज उत्तर के रूप में होती है पर परतीत नहीं होती  हे प्रभु कभी कभी लगता है कि आप हमारे अन्तर मन में हों  तब कभी कभी लगता है कि आप कण कण में हों  तब कभी कभी लगता है कि दीन हीन लाचार अपाहिज मानव  पशु पंछी कि देखभाल करने में  हमें भूल गए हों  लेकिन यह सच है...

अमावस्या और पूर्णिमा

 तारों के धूमिल प़कास में आकाश पूर्णिमा का इंतजार कर रहा था उसी समय अमावस्या आईं सदा कि भाती मुस्कुराई बोले गले में बाहें डाल मेरे कारण तुम परेशान होते रहे  मेरे अंधेरे से तुम बदनाम हो गए इससे मेरी मानो अपनी पूर्णिमा के पास चलें जायौ पर आकाश ऐक शर्त है हमारी आकाश आश्चर्य में डूबा बोला क्या पूर्णिमा के मिलते ही ऐक बार मुझे बुलाना तथा कहना उससे कि अमावस्या ने पूर्णिमा तुमसे मिलने का प्रस्ताव भेजा है। एवं कहा है कि मैं तारों कि रानी अंधियारे कि दीवानी सदियों से बहिन तुम्हारे दर्शन को ललक रहीं  कहती थी कि ऐक बार ही सहीं ज्यादा नहीं छड़ भर को मिलवाना इस विरह के इतिहास में मिलन का ऐक छड़ लिख कर तुम और पूर्णिमा जहां चाहे चलें जाना।।

अल्हड़ प्रेमका के साथ होली कविता

 तेरे सांवले सलोने गाल उन पर लाल गुलाल। गुलाबी चेहरा उलझे बाल नजरे तेरी बनाती है जाल जाने क्यों आत्मा बेचारी लिए मन कि पिचकारी सदियों से देखें राह तुम्हारी मिलन के गीतों कि है वारी । लाज संकोच कर क्या जी सकोगे अनाड़ियों कि क्या परवाह करोगे यह परवाह वे आदर्श रोकेंगे मत करो प्यार रोज कहेंगे कैसे हृदय रूपी कडाव से गंगा सी भावनाओं के रंग से । भर मन कि पिचकारी से  न मिटने वाला रंग डालू कैसे भीड़ में तुम उसी में हम है रंग कि बोछार ज्यादा गुलाब कम हैं सरोवर हो रहा पूरा मौसम है मुस्कुराने का बज रहा सरगम है। क्यों कि चाहत कि पिचकारी भरी भावनाओं से भारी तू खड़ी अपनी अटारी पर निशाना बांधने में भारी बुद्धी भारी तुम अकेले कहा महफ़िल में खड़े हों तेरे जैसे चेहरे जहां रंगे हैं खोजती नजर जहां तुम जाती हो  तब वही पीछे खड़ा पाती हों  देखती प्यार के रंग में।भीगा बदन आपका है तन से लिपट गये कपड़े योवन तुम्हारा हैं । चाहत यही तुम सदा मुस्कुराते रहो  खूब होली खेलों जी भर कर गायो यह भावना से भरी पिचकारी खाली तब होंगी इंतजार मिटेगा तब  जब सामने आप होगी ।।