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Showing posts from November, 2021

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सूर्य का प्यार चांदनी से कहानी

 बात लगभग लगभग पांच साल पुरानी है ऐक दिन मेरी साइट पर मेरा रोलर आपरेटर जों कि कंपनी से दस दिन कि छुट्टी लेकर गया था छुट्टी से आने के बाद मुझे अपने किराए के घर में चाय के लिए बुलाया चलिए पहले में अपना परिचय दे दूं मेरा नाम प्रेम कुमार हैं में मल्टीनेशनल कंटैकसन कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर कार्यरत हूं चूंकि मैं टीम लीडर हूं ऐसे में टीम के सभी सदस्यों से काम के बाद भी उनसे मेल मिलाप उनके दुख सुख का ख्याल रखना मेरी जुम्मे दारी बनतीं है या यूं कहें कि मेरी ड्यूटी हैं  ठंड का समय था वातावरण में सर्द हवाएं के साथ  हल्की हल्की ओस कि बूंदें भी आ रही थी कुलमिलाकर हड्डियों को हिलाने वाली सर्दी थी ऐसे मौसम में भी साइट पर मेहनत कश मजदूर गर्म कपड़े पहनकर काम कर रहे थे में और मेरे मातहत टेक्निकल उनका सहयोग कर रहे थे तभी सूर्य का फोन आया था सर क्या आप साइट पर हैं  मैंने कहा जी  तब सर को आप मेरे घर आ जाईए  चाय पीते हैं  मैंने कहा सूर्य आप कि छुट्टी तों दस दिन कि थी फिर दो दिन पहले  उसने कहा सर मै अपनी पत्नी को लेने गया था जैसे कि हमारे समाज में शादी के चार...

लिव इन रिलेशनशिप कहानी

      भोर का समय था मंदिरों में पूजा-अर्चना चल रही थी लाउडस्पीकर पर आरती सुनाई दे रही थी कहीं दूर मुर्ग बाग लगा रहा था पेड़ों पर पंछी चहचहा रहें थे मानों इंसान को जगाने का प्रयास कर रहे हों कि उठो देखो शुवह का सुर्य देव का उदय होने का नजारा कितना सुंदर है लालिमा के साथ कितनी उर्जा लेकर आ रहे हैं । ही समय मुन्ना लाल कि नींद खुल गई थी उन्होंने विस्तर पर करवट ले कर धीरे से फुसफुसा कर कहा उठो मनोरमा देखो भोर हो गई है वाहर पंछी चहचहा रहें हैं भाई जल्दी से मुझे चाय बना देना यह बेड टी कि आदत भी है न कितनी ख़राब है अब देखो उसके बिना पेट भी अच्छे से साफ नहीं होता है परंतु उत्तर न मिलने से वह चौंक गए थे फिर खुद ही खीज उठें थे शायद उन्हें अपनी भुलक्कड़ आदतों से चिढ़ उठ रहीं थीं क्योंकि उनकी अर्धांगिनी तो पिछले छः महीने पहले ही  दिल कि बीमारी से भगवान के पास चली गई थी उसकी यादों में कुछ पल खोए हुए थे आंखों से कुछ अश्रुपूर्ण बूंद गालों पर लुढ़क गई थी खैर मन मारकर विस्तर छोड़ दिया था फिर किचन में जाकर चाय बना ने लगें थे  पर चाय कि पते ली हाथ से छिटक कर नीचे फर्श पर गिर पड़ी थ...

लिव इन रिलेशनशिप जज़्बात कि कहानी

      भोर का समय था मंदिरों में पूजा-अर्चना चल रही थी लाउडस्पीकर पर आरती सुनाई दे रही थी कहीं दूर मुर्ग बाग लगा रहा था पेड़ों पर पंछी चहचहा रहें थे मानों इंसान को जगाने का प्रयास कर रहे हों कि उठो देखो शुवह का सुर्य देव का उदय होने का नजारा कितना सुंदर है लालिमा के साथ कितनी उर्जा लेकर आ रहे हैं । ही समय मुन्ना लाल कि नींद खुल गई थी उन्होंने विस्तर पर करवट ले कर धीरे से फुसफुसा कर कहा उठो मनोरमा देखो भोर हो गई है वाहर पंछी चहचहा रहें हैं भाई जल्दी से मुझे चाय बना देना यह बेड टी कि आदत भी है न कितनी ख़राब है अब देखो उसके बिना पेट भी अच्छे से साफ नहीं होता है परंतु उत्तर न मिलने से वह चौंक गए थे फिर खुद ही खीज उठें थे शायद उन्हें अपनी भुलक्कड़ आदतों से चिढ़ उठ रहीं थीं क्योंकि उनकी अर्धांगिनी तो पिछले छः महीने पहले ही  दिल कि बीमारी से भगवान के पास चली गई थी उसकी यादों में कुछ पल खोए हुए थे आंखों से कुछ अश्रुपूर्ण बूंद गालों पर लुढ़क गई थी खैर मन मारकर विस्तर छोड़ दिया था फिर किचन में जाकर चाय बना ने लगें थे  पर चाय कि पते ली हाथ से छिटक कर नीचे फर्श पर गिर पड़ी थ...

सेठ लछमी चंद को रूपयों पैसे कि कोई भी तंगी नहीं थी

 यूं तो सेठ लछमी चंद को रूपयों पैसे कि कोई भी तंगी नहीं थी भगवान का दिया हुआ सब कुछ था दर्जनों  कारे  बंगले थे हजारों  करोड़ रुपए कि (रियल एस्टेट) कम्पनी के मालिक थे  अनेकों शहरों में व्यापार फैला था सेकंडों नोकर चाकर थे पावर इतना कि बढ़े बढ़े मंत्री चाय पीने को आते थे उच्च पदों पर बैठे सरकारी मुलाजिमों से अच्छा यराना था ऐक फ़ोन पर फाइलों में साइन करा लेने का अधिकार रखते थे वो बात अलग थी कि सेठ समय समय पर         " अपनी यारी नोटों के बंडल भेंट रूप में देकर निभाते रहते थे  खैर पैसे से कैसे पैसे बनाए जाते थे उन्हें हर गुर बखूबी आता था  यूं तो सेठ लछमी चंद को रूपयों पैसे कि कोई भी तंगी नहीं थी भगवान का दिया हुआ सब कुछ था दर्जनों  कारे  बंगले थे हजारों  करोड़ रुपए कि (रियल एस्टेट) कम्पनी के मालिक थे  अनेकों शहरों में व्यापार फैला था सेकंडों नोकर चाकर थे पावर इतना कि बढ़े बढ़े मंत्री चाय पीने को आते थे उच्च पदों पर बैठे सरकारी मुलाजिमों से अच्छा यराना था ऐक फ़ोन पर फाइलों में साइन करा लेने का अधिकार रखते थे वो बात अल...

सेठ लछमी चंद को रूपयों पैसे कि कोई भी तंगी नहीं थी

 यूं तो सेठ लछमी चंद को रूपयों पैसे कि कोई भी तंगी नहीं थी भगवान का दिया हुआ सब कुछ था दर्जनों  कारे  बंगले थे हजारों  करोड़ रुपए कि (रियल एस्टेट) कम्पनी के मालिक थे  अनेकों शहरों में व्यापार फैला था सेकंडों नोकर चाकर थे पावर इतना कि बढ़े बढ़े मंत्री चाय पीने को आते थे उच्च पदों पर बैठे सरकारी मुलाजिमों से अच्छा यराना था ऐक फ़ोन पर फाइलों में साइन करा लेने का अधिकार रखते थे वो बात अलग थी कि सेठ समय समय पर         " अपनी यारी नोटों के बंडल भेंट रूप में देकर निभाते रहते थे  खैर पैसे से कैसे पैसे बनाए जाते थे उन्हें हर गुर बखूबी आता था  यूं तो सेठ लछमी चंद को रूपयों पैसे कि कोई भी तंगी नहीं थी भगवान का दिया हुआ सब कुछ था दर्जनों  कारे  बंगले थे हजारों  करोड़ रुपए कि (रियल एस्टेट) कम्पनी के मालिक थे  अनेकों शहरों में व्यापार फैला था सेकंडों नोकर चाकर थे पावर इतना कि बढ़े बढ़े मंत्री चाय पीने को आते थे उच्च पदों पर बैठे सरकारी मुलाजिमों से अच्छा यराना था ऐक फ़ोन पर फाइलों में साइन करा लेने का अधिकार रखते थे वो बात अल...

." 1921 से आज तक" लेख

सौ( 100)साल पहले हम  कहां पर  थे  और अब हम कहां हैं इस बीच के अंतर का सही अर्थों में तुलनात्मक समीक्षा करें तब हमने प्रकृति से क्या पाया और क्या खोया इस सवाल का जवाब शायद हमारे पास हैं या नहीं ?? फिर भी चलिए एक बार समय के बीच के अंतर समझने का प्रयास कर्ता हूं । लगभग १०० साल पहले । (१) हमारे पास पहाड़ थे  / जो अभी भी हैं ।   (२) हमारे पास जंगल थे/ जो अभी भी हैं । ( ३) हमारे पास नदी भी थीं / जो अभी भी हैं । (४) हमारे पास मीठे-मीठे पानी के झरने थे / जो अभी भी हैं। ( ५) हमारे पास सरोवर थे  जिनसे नदी वारह मांस वहती रहतीं थीं / पर अब बड़े  बड़े बांध है । (६) हमारे पास कुएं थे जिनसे हमें मीठा जल पीने को मिलता था व खेती होती थी / पर अब बोर हैं । (७) हमारे पास हल थे जो खेत के सीने को फ़ाड़ कर खेत में अनाजों के बीजों को बोने में सहयोग करते थे जिनसे हमारे-आपके अन्न भंडार भरे पड़े रहते थे /पर अब टैक्टर है जिनके मदद से हमारे अन्न भंडार भरे पड़े हैं। (८) कुओं से खेती-बाड़ी हेतु रहट थे जिन्हें हम बैलों कि मदद से चलाते थे  जिनसे न ही बिजली कंपनियों को बिल देना पड...

." 1921 से आज तक" लेख

सौ( 100)साल पहले हम  कहां पर  थे  और अब हम कहां हैं इस बीच के अंतर का सही अर्थों में तुलनात्मक समीक्षा करें तब हमने प्रकृति से क्या पाया और क्या खोया इस सवाल का जवाब शायद हमारे पास हैं या नहीं ?? फिर भी चलिए एक बार समय के बीच के अंतर समझने का प्रयास कर्ता हूं । लगभग १०० साल पहले । (१) हमारे पास पहाड़ थे  / जो अभी भी हैं ।   (२) हमारे पास जंगल थे/ जो अभी भी हैं । ( ३) हमारे पास नदी भी थीं / जो अभी भी हैं । (४) हमारे पास मीठे-मीठे पानी के झरने थे / जो अभी भी हैं। ( ५) हमारे पास सरोवर थे  जिनसे नदी वारह मांस वहती रहतीं थीं / पर अब बड़े  बड़े बांध है । (६) हमारे पास कुएं थे जिनसे हमें मीठा जल पीने को मिलता था व खेती होती थी / पर अब बोर हैं । (७) हमारे पास हल थे जो खेत के सीने को फ़ाड़ कर खेत में अनाजों के बीजों को बोने में सहयोग करते थे जिनसे हमारे-आपके अन्न भंडार भरे पड़े रहते थे /पर अब टैक्टर है जिनके मदद से हमारे अन्न भंडार भरे पड़े हैं। (८) कुओं से खेती-बाड़ी हेतु रहट थे जिन्हें हम बैलों कि मदद से चलाते थे  जिनसे न ही बिजली कंपनियों को बिल देना पड...

"कंटीली राहें " एक लेखक कि आत्म कथा भाग एक

 का जन्म संवत् 1971 माह 06 तारीख   30 को हुआ था ईश्वर ने धरती पर दो माह पहले ही भेज दिया था  हां उस समय देश  का पड़ोसी  देशों से युद्ध चल रहा था सीमा के आर पार बम धमाके हो रहै थे दोनों और भय का माहौल था ऐसे ही समय सावन कि घनघोर वारिस गरज चमक के साथ  एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे थे कलमकार खैर जन्म होने कि अगले सुबह ठीक ठाक रात्रि पहर को याद कर घर के बड़े मुखिया जो रिश्ते में दादा लगते थे सुबह ही पंडित जी के पास नामकरण संस्कार के लिए पहुंच गए थे  पंडित मुरलीधर नित्य कर्म से निवृत्त होकर चबूतरे पर लोटा में जल भरकर नीम कि दातुन से अपने तम्बाकू से मैले दांतों को माज रहें थै सहसा नजर घुमाकर  पंडितजी,‌‌:-  सुबह-सुबह से कैसे आना हुआ दाए जू बुन्देलखण्ड कि ग्रामीण संस्कृति मे ठाकुर समाज के बड़े बुजुर्गो को दाऊ जू कहकर आज भी संबोधित करते हैं । दाऊ जू जिनका शुभ नाम ठाकुर सुमर सिंह था मजबूत कद काठी गोरा चिट्ठा कसरती बदन   के ऊपर सफेद  सफेद रोबदार मूंछ फिर सफेद ही दाढ़ी लगभग सत्तर साल कि उम्र होने के बाद भी किसी पहलवान से कम नहीं थे...

कंटीली राहें एक लेखक कि आत्म कथा भाग एक

 का जन्म संवत् 1971 माह 06 तारीख   30 को हुआ था ईश्वर ने धरती पर दो माह पहले ही भेज दिया था  हां उस समय देश  का पड़ोसी  देशों से युद्ध चल रहा था सीमा के आर पार बम धमाके हो रहै थे दोनों और भय का माहौल था ऐसे ही समय सावन कि घनघोर वारिस गरज चमक के साथ  एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे थे कलमकार खैर जन्म होने कि अगले सुबह ठीक ठाक रात्रि पहर को याद कर घर के बड़े मुखिया जो रिश्ते में दादा लगते थे सुबह ही पंडित जी के पास नामकरण संस्कार के लिए पहुंच गए थे  पंडित मुरलीधर नित्य कर्म से निवृत्त होकर चबूतरे पर लोटा में जल भरकर नीम कि दातुन से अपने तम्बाकू से मैले दांतों को माज रहें थै सहसा नजर घुमाकर  पंडितजी,‌‌:-  सुबह-सुबह से कैसे आना हुआ दाए जू बुन्देलखण्ड कि ग्रामीण संस्कृति मे ठाकुर समाज के बड़े बुजुर्गो को दाऊ जू कहकर आज भी संबोधित करते हैं । दाऊ जू जिनका शुभ नाम ठाकुर सुमर सिंह था मजबूत कद काठी गोरा चिट्ठा कसरती बदन   के ऊपर सफेद  सफेद रोबदार मूंछ फिर सफेद ही दाढ़ी लगभग सत्तर साल कि उम्र होने के बाद भी किसी पहलवान से कम नहीं थे...