ठंड का मौसम था लोग घरों के अंदर अलाव जलाकर ताप रहे थे कुछ तो विस्तर में ही कम्बल में लिपटे हुए थे पर ऐसे ठंडे मौसम में बच्चे कहां पीछे रहने वाले थे गली के किशोर पार्क के मैदान में बेट बल्ला गेंद लेकर पहुंच गए थे लकड़ी के स्टंप गाढ़े जा रहे थे टीम बनाई गई थी दोनों टीमों के कप्तान चुनें गये थे एम्पायर का चयन किया गया था टोंस फेंककर दोनों टीमों के योद्धा मैदान में डटकर मुकाबला करने के लिए उतावले हो रहे थे ऐसे रोमांचक मुकाबले में सपोर्ट करने वाले न हो भला ऐसे कैसे हो सकता था छोटे छोटे बच्चे बेरोजगार नौजवान अपनी अपनी टीम के होंसला अफजाई के लिए मैदान में दोनों ओर आमने-सामने बैठकर तालियां बजाने के लिए इंतजार में थे ऐक टीम का कप्तान कमलेश कुमार था दूसरा कासिम कासिम ने पहले फिल्डिंग चुनी कमलेश कुमार के ओपनर बल्लेबाज बेट बल्ला को हवा में घुमाते इतराते हुए अपनी अपनी पोजीशन लेकर तैयार खड़े थे एम्पायर के इशारे पर बोलर ने गेंद डालीं यह क्या पहली ही गेंद पर चौका मैदान में बैठें सपोर्ट करनें वालें बंश मोर बंस मोर चिल्ला कर तालियां बजाने लगे फिर दो तीन ओवर तक चौका छक्के कि वर्षांत होती रही स्कोर बोर्ड लगातार आगे खिसक रहा था विरोधी टीम के सपोर्ट करने वाले मायूस होकर भगवान को स्मरण कर रहे थे तभी कुशल कप्तान का परिचय देते हुए कासिम ने बोलिंग खुद ही करनें का फैसला किया यह क्या ?
पहली में मैदान से बाहर एम्पायर ने झूम कर हाथों को ऊपर उठा कर छ रन का इशारा किया समर्थक कोहली कोहली चिल्ला चिल्ला कर तालियां बजा रहे थे चार गेंदों में चार छक्के दर्शकों का मनोरंजन हो रहा था कुछ तो नाच रहे थे कुछ विरोधी सपोर्ट करने वाले को चिढ़ाने का काम कर रहे थे कासीम ने अपने काबिल बोलर को गेंद दी पहली बोल पर ही कमलेश कुमार का साथी ऐल पी डब्लू आऊट आउट होते ही दूसरे और के प्रशंसक झूम कर नाचने लगे मुकाबला रोचक था उस बोलर ने अपने ओवर में दो बल्लेबाजों को पवेलियन लौटा दिया
अगला ओवर फेंकने की कासिम कि बारी थी सामने कमलेश कुमार दोनों टीमों के दोनों कप्तान अपनी अपनी वि में निपुण कासीम ने गुगली धीमी गति तेज गति सभी का उपयोग किया पर हर गेंद मैदान से बाहर स्कोर बोर्ड लगातार अपडेट हो रहा था दर्शकों का भरपूर मनोरंजन हो रहा था तभी कासीम कि गेंद स्टाम्पों कि गिल्ली उड़ाती हुईं विकेट कीपर के हाथों में कैद हो गई प्रशंसक झूम उठे थे ताली कि गड़गड़ाहट से मैदान गूंज उठा पर एम्पायर ने नो बॉल का इशारा किया था बस फिर क्या था प्रशंसक आमने-सामने डट गए टीमों के योद्धा आपस में तू तू मैं मैं करने लगे थे बच्चों का झगड़ा गुत्थमगुत्था में बदला फिर बढ़े भी मैदान में डट गए थे जमकर लात-घूंसे चलें थे दोनों पक्षों ने रपट दर्ज कि मामला कोर्ट कचहरी में पहुंच गया था मुहल्ले में लकीर खिच गयी दस घर हिन्दू के थे तब पन्द्रह घर मुस्लिम वर्षों का भाईचारा पल में दुश्मनी में बदल गया सरहद खिच गयी ।।
कमलेश कुमार और कासिम के पिता इसी गली में जन्मे थे बचपन से याराना था ऐक ही स्कूल कालेज में शिक्षा ग्रहण कि थीं कासिम के पिता अब्दुल का दो पहिया वाहन सुधरने का गैराज था गैराज के बगल में ही अब्दुल ने कमलेश कुमार के पिता सुरेश को भी आटो पार्टस कि दुकान डलवा कर अपनी यारी सारे जीवन के लिए पक्की रखीं थीं दोनों परिवारों का घर ऐक ही गली में पांच घरों के फासले पर था ईद कि समैया सुरेश के घर आती तब दिपावली की मिठाईयां अब्दुल के घर ऐक ही धंधा में होने के कारण दोनों का चोली-दामन का साथ था पर अब यह साथ दुश्मनी में बदल गई थी जो भी ग्राहक अब्दुल के पास दो पहिया वाहन सुधरने को लाते तब वह कल पुर्जे दूसरी दुकान से मंगवाए जाते थे कमलेश कुमार के पिता सुरेश से कोई अच्छा मिस्त्री का पूछता तब सुरेश दूसरे मिस्त्री का नाम बताकर उसके तारीफों के पुल पर पुल बांध कर उसे वही भेजते थे ऐसे में दोनों के कि आमदनी पर असर पड़ रहा था दोनों समझ भी रहें थे पर मन पर मोटी मोटी बर्फ कि शिलाओं ने कब्जा जमा लिया था !
ऐक दिन अब्दुल मोटरसाइकिल से बाजार से लोट रहे थे पीछे से महिला कार चालक ने टक्कर मार दी थी और अब्दुल का ऐक हाथ पैर फेक्चर हो गया था पैर मैं ज्यादा बढ़ा फेक्चर था आपरेशन कराया गया था जो भी जमा पूंजी थी खर्च हो गयी थी पैरों में नट बोल्ट डालें गये थे कुछ महीनों तक डाक्टर साहब ने पैरों पर लोड देने के लिए सख्ती से मना कर दिया था ऐसे में अब्दुल घर पर बिस्तर पर ही पड़े रहने को मजबूर थे ऊपर से बड़ा परिवार पांच छः बच्चे बिजली पानी का अलग से खर्चा अब खाने के भी लाले पड़ने लगे थे घर कि परस्थितियों को देखकर कासिम पढ़ाई छोड़ कर दुकान पर बैठता था पर गाहकों का काल था जो भी ग्राहक आते सुरेश दूसरी दुकान पर भेज देते थे कासिम को सारे दिन में ऐक दो ग्राहक ही मिल पाते थे उससे रहा नहीं गया सुरेश के पास पहुंच कर बोला चाचाजी आप को तो मालूम ही है घर कि हालात थोड़ा रहम करो ने कासिम पर तिरस्कार पूर्ण नज़र डालकर कहां मियां उस दिन तो बहुत अकड़ दिखा रहे थे बड़े कप्तान बन रहें थे और तुम्हारे अब्बा भी बड़े अकड़ दिखा कर तीस मार खां बन रहें थे
कासिम चाचा जी यह हमारी बच्चों कि लड़ाई थी आप लोगों को नहीं आना चाहिए था
सुरेश मियां कैसे न आता अपने अब्बा को समझाना
था सबसे पहले वहीं पहुंचा था लाठी लेकर झगड़ा उसी का बढ़ाया हुआ था तुम्हारे अब्बा ही थाने रपट दर्ज करने पहले गये थे
कासिम पर चाचा जी में अब्बा को समझाना का प्रयास करूंगा हम भूलकर राजीनामा नहीं कर सकते क्या
राजीनामा का सुनकर सुरेश कि आंखों में चमक आ गई थी कोन बार बार कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाए फिर सहसा ख्याल आया कि कासिम तो अभी बच्चा है क्या पता अब्दुल तैयार हो या न हो नहीं नहीं अभी रहम करनें में नुकसान ही हैं कुछ दिन और रोटी के लाले पड़ने दो अक्ल ठिकाने आ जाएंगी अभी दूध में उबाल है उबलने दो अकड़ कर कहां मियां कासिम मेरा टाइम खोटी मत करो धंधे का टाइम है मुझे धंधा करने दो !
कासिम ने हर तरह से हिलाने डुलाने का प्रयास किया था पर शु के मन पर जमी बर्फ को पिघला नहीं सका ??
शाम सुरेश दुकान से आते-जाते तब अब्दुल पर जरूर निगाह डाल कर निकलते थे अब्दुल घर के बाहर या तो चार पाई पर बैठे दिखते थे या व्हील चेयर पर उनकी दुर्दशा को देखकर सुरेश को परम शांति मिल रही थी कभी कभी ऐसा लगता था कि जैसे जीतें जी ही स्वर्ग मिल गया हो मनुष्य का मन भी बड़ा विचित्र है जिससे प्यार करेगा तब भी अपने आप को स्वर्ग के नजदीक समझेगा और नफ़रत में भी !
कोरोनावायरस यू तो सारे विश्व में उत्पाद मचा रहा था चीन इटली अमेरिका अनेक देशों से मरने वालों के आंकड़े कि मिडिया के हवाले से खबर आ रही थी सरकार ने हर तरह कि सावधानी रखी पर कोरोनावायरस को रोकने में सफलता प्राप्त नहीं हुई भारत में भी प्रवेश कर गया था ऐसे में सरकार को अपने नागरिकों को महामारी से निपटने के लिए लोक डाउन का रास्ता अख्तियार करना पड़ा रेल हवाई जहाज बसों टेक्सी कारें ऑटो यहां तक कि साईकिल मोटरसाइकिल के पहिए भी थम गये थे मिडिया के हवाले से लिपस्टिक पाउडर में पुते हुए चेहरे वाली मोहतरमा आंखें मटका मटका कर नमक मिर्च लगाकर शहर दर शहर राज्य दर राज्य के आंकड़ों को दिखाकर जनता के मन में भय भरने का अभूतपूर्व योगदान दें रही थी दिल्ली कि हालात ज्यादा ख़राब बताई जा रही थी सड़कें सूनी पड़ी थी कहीं कहीं आवारा कुत्तों के झुंड दिखाई दे रहे थे और बिन वजह घरों से बाहर निकल कर तफरी लेने वालों कि पुलिस का लाठीचार्ज का प्रसाद मिलता था !
गरीब परिवार या तो सरकार के भरोसे पर थे या फिर स्वयंसेवी संस्थाओं के रहमो-करम पर सरकार और संगठन घर घर भोजन राशन पहुंचा रही थी पर इतनी बड़ी दिल्ली चाह कर भी राशन पहुंचने में ऐक दो दिन का समय लग जाता था शोशल मिडिया पर बहुत सारे विडियो आ रहें थे कुछ परिवारों को ऐक टाइम का भोजन ही नसीब होता था कुछ परिवारों को ऐक ऐक दिन के फांकें पड़ रहें थे ।
अब्दुल पर एक्सीडेंट होने से पहले ही मुसीबत आन पड़ी थी फिर यह कोरोनावायरस का कठिन समय अब परिवार पूरी तरह से सरकार के भरोसे पर था बढ़ा परिवार होने के कारण राशन जल्दी ही खत्म हो जाता था तब बढ़ो ने ऐक ही समय भोजन ग्रहण करने का फैसला किया था फिर रमजान का पाक महीना भी लग गया था इस महीने का तो बच्चे बुजुर्ग बेसब्री से महीनों पहले से ही इंतजार करने लगते है पर इस बार के कारण त्योहार फीका फीका लग रहा था न तो बच्चों में उत्साह था न ही बढ़ो में मस्जिद बन्द पड़ी थी घर पर ही नमाज़ अदा कर रहे थे शायद इतिहास में पहली बार मंदिर मस्जिद चर्च गुरूद्वारा बंद किया गया था शायद भगवान कोरोनावायरस के बहाने कुछ संदेश दे रहे थे शायद प़कृति मानव को समझा रहीं हैं कि अभी भी वक्त है सम्भल जा वरना अगला झटका तूं सम्हाल नहीं पाऐगा शायद??
कमलेश कुमार के पिता सुरेश दूरदर्शी सोच वाले व्यक्ति थे हम दो हमारे दो का छोटा-सा परिवार था फिर हमेशा दो तीन महीने का राशन सामग्री का कोटा खरीद कर रखते थे कोरोनावायरस कि आहट सुनाई पड़ते ही उन्होंने पांच छः महीने का राशन और खरीद कर रख दिया आस पास के परिवार को भी कभी कभी मददगार बन कर अपना पड़ोसी धर्म का निर्वाह कर रहे थे पर अब्दुल कि स्थिति का पता होने पर भी उस के नाम का ऐक दाना भी देने को तैयार नहीं थे ऐसे कठिन समय में कमलेश कुमार को अपने बचपन के दोस्त कासिम कि मदद करने का बड़ा मन करता पर पिता कि बिना आज्ञा से कैसे उसने वह भी रास्ता निकाल लिया था मकान के पीछे गली थी पहले कासिम को फोन करके बोल देता था मैं पापा के सोने के बाद पिछले दरवाजे से बाहर निकल कर कुछ राशन तुम्हारे दरवाजे पर रख दिया करूंगा कासिम मना भी करता था पर कमलेश कुमार अपनी बचपन कि दोस्ती कि कसम देकर मदद करता रहता ऐसे ही ऐक दिन अर्ध रात्रि को कमलेश कुमार राशन का झोला लेकर जैसे ही पिछले दरवाजे के नजदीक पहुंचा देखा पिता अंधेरे में छुप कर खड़े थे कड़क कर कहा कहां जा रहे हो झोले में क्या है
कमलेश कुमार जी जी कहीं नहीं
पिता फिर तुम्हारी ज़ुबान क्यों लड़खड़ा रही है जवाब दो
कमलेश कुमार घबराहट में कुछ भी ज़बाब नहीं दे पा रहा था शोरगुल सुनकर मां भी जाग गई थी बत्ती जलाई गई देखा झोले में चावल दाल आटा भरा हुआ था
पिता अच्छा तो यह है सच सच बताना किस के लिए लें जा रहे हो
कमलेश कुमार पिता जी कासिम के घर स से उनके घर कुछ भी नहीं बना है कृपया मुझे जाने दो कमलेश कुमार रोने लगा
पिता सुरेश कुछ छड़ विचार मग्न रहे थे फिर उन्होंने कहा ठहरो में भी चलता हूं जरा मास्क लेकर आता हूं
कुछ देर बाद पिता पुत्र दोनों हीं अब्दुल के घर पर थे कमलेश कुमार ने राशन का झोला रखा था और सुरेश जी ने जेब से नोटों कि गड्डी निकाल कर उसी राशन के ऊपर रख दी अब्दुल के आंखों से अश्रु धारा बह रही थी हाथ जोड़कर कहा मैं तो माफ़ी मांगने का अधिकार भी नहीं रखता सारा झगड़े कि जड़ में ही हूं बेवजह बच्चों के झगड़ो में उलझे गया था भाई मुझे माफ़ कर दिजिए ऊपर वाले ने मुझे दंड दे दिया है कोई बात नहीं गलती इन्सान से ही होती है का भूला भटका अगर शाम को घर वापसी कर लें तब भूला नहीं कहलाता और हां इन पैसों से बच्चों के लिए कपड़े खरीद लेना और चिंता मत करना अभी तेरा यार जिंदा है सब कुछ ठीक हो जाएगा जब तक तू दुकान जाने लायक नहीं होगा तेरे परिवार कि जिम्मेदारी मेरी तुझे पहले से ही ईद मुबारक
दोनों परिवारों के मन में जो बर्फ जम गई थी वो पिघल गयी थी !!