कड़वा सच लोक कथा


     
     
 ऐक था राजा उसका ऐक राजकुमार था राज्य में सब कूशल मंगल था ऐक दिन राजा राजकुमार को राज सौंप कर तीर्थ यात्रा को निकल गया राजा के जाने के बाद राजकुमार अपनी सूझबूझ से राज्य चलाने लगा था चारो ओर शांति समृद्धि कायम हो रही थी जो कुछ चाटूकारों को अच्छी नही लगती थी 

ऐक दिन ऐक गरीब ब्राह्मण राज दरबार में आया था उसे अपनी पुत्री का विवाह करना जा चूकि गरीब होने के कारण धन नहीं था पत्नी के बार बार कहने पर वह आया था पर ब्राह्मण सिद्धांत का पक्का था बिना कुछ दिए हुए भिक्षा भी नहीं लेता था खैर राज दरबार में ऊसका यथोचित सत्कार किया गया था राजकुमार ने आने का कारण पूछा तब ब्राह्मण ने कहा हे राजन मुझे अपनी कन्या का विवाह करना है मेरे पास धन की कमी है अतः मुझे आपसे आर्थिक मदद चाहिए

तब राजकुमार ने कहा हे ब्राह्मण आपके लिए रात को खोल देता हूं आपको जितना भी लगे आप ले जा सकते हैं तब ब्राह्मण बोला नहीं नहीं राजन मैं फ्री में किसी से दान भी नहीं लेता मैं आपको एक कागज दे रहा हूं वक्त आने पर इसे पढ़िए गा बहुत काम आएगा खैर ब्राह्मण कागज दे कर धन लेकर अपने घर रवाना हो गया कुछ दिन बाद राजा तीर्थ यात्रा से वापस आया चाटुकारों ने राजा को बड़ा चढ़ाकर कहां हे राजन अगर आप नहीं रहोगे तब राजकुमार राज्य का सारा खजाना खाली कर देंगे इनमें राज्य चलाने का कोई भी गुण नहीं है 

ऐसा सुनते ही राजा को गुस्सा आया राजकुमार को बुला कर उसे देश निकाला दे दिया अब राजकुमार को ब्राह्मण के कागज की याद आई उसमें लिखा था

ममता की मां दौलत का पिता बनी की बहन संकट का मित्र गांठ के दाम आंखों की तिरया (पत्नी) जो जागे सो पाबे जो सोवे  सो खोबे वरना बात कर मर जाए उसमें कोई दोष नहीं

ब्राह्मण की पहली पंक्ति के अनुसार राजकुमार अपनी मां के पास गया मां का रो रो कर बुरा हाल था उसने बहुत मना किया पर राजकुमार ने पता किया क्या का सम्मान करते हुए कहां हे माता मुझे जाने दो अब आशीर्वाद दीजिए तब माता ने उसे संकट के समय के लिए कुछ धन दिया और राजकुमार राज की सीमा से बाहर चला गया ब्राह्मण की 2 पंक्तियां सही साबित हो रही थी जैसे कि ममता की मां दौलत का पिता अब तीसरी पंक्ति का परीक्षण बाकी था चलते चलते वह अपनी बहन के राज्य की सीमा के पास पहुंच गया उसने चरवाहों से खबर भिजवाई की तुम्हारा भाई आया है जो कि राज्य से निष्कासित है क्योंकि बहनोई भी राजा था खैर बहन को संदेश मिला उसने चरवाहों से बोला कहना मेरा कोई भाई नहीं मेरा भाई तो एक राजकुमार है भिकारी नहीं राजकुमार ने फिर वह कागज पड़ा बनी की बहन अर्थात धन सही साबित निकला 

अब राजकुमार को चौथी पंक्ति याद आई संकट का मित्र उसका मित्र एक राज्य का राजा था दोनों एक ही गुरुकुल में अध्ययनरत थे राजकुमार ने उसकी परीक्षा लेने की सूची उसकी राज्य की सीमा के बाहर उसने राहगीरों से संदेश भिजवाया की राजा से कहना तुम्हारा मित्र फटे हाल हालत में राज्य की सीमा के बाहर खड़ा हुआ है क्या तुम मिलने आओगे राजा को जैसे ही पता चला वह है राजश्री वेशभूषा हाथी घोड़ा पालकी सेना को लेकर राज्य की सीमा अपने मित्र से मिलने के लिए चला दोनों गले मिले फटे कपड़े एक तरफ उतार कर एक पेड़ पर लटका दिए गए थे बराबर सम्मान देकर राजा अपने राजमहल मित्र को लेकर आया था ब्राह्मण की चौथी पंक्ति भी सही साबित हुई संकट का मित्र 

कुछ समय राजकुमार ने राजा का आतिथ्य स्वीकार किया फिर उसने अपने मित्र से कहा मुझे आगे जाना चाहिए अब मैं नहीं रुक सकता और मित्र ने कहा हे दोस्त मैं अपना आधा राज-पाट तुम्हें देता हूं यहीं पर शांतिपूर्वक रहो और राज्य करो पर राजकुमार कहां मानने वाला था उसे तो अभी और पंक्तियों का परीक्षण करना था बहुत समझाने के बाद भी राजकुमार नहीं माना और आगे की यात्रा के लिए चल दिया था 

चलते चलते चलते जंगलों में भटकते हुए वे अपने ससुराल पहुंचा था भिखारी की वेशभूषा में था जाखड़ ससुराल राजमहल के सामने एक पेड़ के नीचे अपना आसरा बना लिया था 1 दिन रात्रि में  वह देखता है कि उसकी पत्नी अर्ध रात्रि को सोलह सिंगार कर कहीं जा रही थी राजकुमार ने पीछा किया आगे जाकर पत्नी एक मकान में प्रवेश कर गई जो राज्य के सेनापति का था राजकुमार भी उसी मकान के सामने बैठ गया था पत्नी ने सेनापति से कहा मुझे पान  चाहिए सेनापति ने बाहर निकल कर देखा फिर भिखारी रूपी राजकुमार से कहा तुम जाकर पान लेकर आओ जल्दी आना वरना मार मार कर तेरी खाल उधेड़  दूंगा  राजकुमार पान लाया दोनों पान खा कर पलंग तोड़ प्यार करने लगे थे पलंग का ऐक पाया टूट गया था सेनापति ने  राजकुमार की पीठ को पाया बनाया था फिर दोनों कामातुर होकर बासना का खेल खेलने लगे थे खैर कुछ घंटों बाद पत्नी जैसी आई थी वैसे ही चुपचाप महल में जा पहुंची थी 

ब्राह्मण का यह पंक्ति भी सही साबित हुई की आंखों की पत्नी अब आगे की पंक्तियों का भी परीक्षण था राजकुमार फिर चल दिया था चलते चलते एक गांव  में पहुंच गया था उस दिन कहीं से भिक्षा भी नहीं मिली थी तब मां के दिए हुए पैसे से अपने लिए कुछ राशन पाने का सामान लिया और एक बाग में खाना पकाने लगा था उसी बाग में माली का घर था उस घर में चीख-पुकार मची हुई थी राजकुमार से रहा नहीं गया वह उस घर में पहुंच गया कारण पता चला की राज्य की राजकुमारी के शयन कक्ष में हर रात एक नौजवान की ड्यूटी लगाई जाती है जो सुबह मृतक मिलता है राजकुमार ने उस परिवार से कहा अगर आप लोग मुझे आज्ञा दें तब मैं तुम्हारी लड़के के बदले पहरा देने चला जाऊं उस परिवार को तो अपना बेटा बचाना था उन्होंने परमिशन दे दी थी राजकुमार जैसे ही राजकुमारी के शयन कक्ष में पहुंचा तब उसने उस ब्राह्मण का कागज निकालकर पड़ा जो सोवे सो खोवे अर्थात जागने का समय है राजकुमार नंगी तलवार हाथ में लेकर पहरे पर बैठ गया था उसने स्वयं की एक उंगली में घाव कर लिया कि कहीं नींद नहीं आ जाए अर्ध रात्रि को वह देखता है कि राजकुमारी की नाक में से एक काली नागिन निकलती है जो उसकी तरफ डसने के लिए आ रही है फिर क्या था राजकुमार ने नागिन के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे सुबह हुई अर्थी तैयार थी जैसे ही सैनिकों ने दरवाजा खुला तब राजकुमार को जिंदा देखकर सभी आश्रय चकित थे राजा के पास खबर भेजी गई थी  थोड़ी देर में राजा आ पहुंचा था राजा ने सारा वृत्तांत जाना समझा राजा बड़ा खुश हुआ राज्य में मुनादी पीटी गई चारों तरफ हर्षोल्लास का समय था खुश होकर राजा ने राजकुमारी का विवाह राजकुमार से कर दिया था राजकुमार रानी के साथ अनेकों महीने  शुख विलास भोक्ता रहा फिर उसने अपने ससुर से आज्ञा मांगी और वापस उसी मार्ग से सेना सहित राजसी ठाठ वाट के साथ वापस चला पहले वह अपनी ससुराल पूछा पत्नी बड़ी खुश हुई ससुराल में बड़ा स्वागत सत्कार किया गया फिर पत्नी को विदा कर आगे की यात्रा के निकल गया अब दो रानियां थी आगे मित्र के पास पहुंचा मित्र जैसे पहले था उसने वैसे ही आदर सत्कार किया उसके बाद वह अपनी बहन के पास पहुंचा बहन ने धन राजसी ठाट बाट हाथी घोड़ा सैनिक सब साथ में देखकर भैया भैया कर गले लग गई उसके बाद वह वापस अपने नगर की सीमा के पास पहुंचा जैसे ही उसके पिता को पता चला की बेटा तो धन्य धान सेना सहित एक राज्य का राजा बनकर लौटा है वह सीमा पर पहुंचा और मेरा बेटा मेरा बेटा कहकर गले लगा लिया राजमहल में जाकर देखा मां का रो-रोकर बुरा हाल था आंखों की रोशनी कम हो गई थी बेटे पाकर खूब प्रसन्न हुई ढेर सारे आशीर्वाद दीऐ जैसा कि रिवाज था नई रानी के लिए नेगचार का कार्यक्रम रखा गया पहली पत्नी बहुत लाड प्यार दिखा रही थी राजकुमार से रहा नहीं गया उसने सेनापति की सारी कहानी बयां कर दी फिर क्या बात सुनते ही रानी के प्राण निकल गए थे ब्राह्मण की अंतिम पंक्ति भी सही साबित हुई कुल मिलाकर कहानी का सार यह है की सारे नाते रिश्ते धन के बल पर हैं सभी एक दूसरे को छल रहे हैं सब अपना अपना स्वारथ सिद्ध कर रहे हैं एक सच्चा रिश्ता सिर्फ मां का है 






Kakakikalamse.com

Mahendra Singh s/o shree Babu Singh Kushwaha gram Panchayat chouka DIST chhatarpur m.p India

1 Comments

Please Select Embedded Mode To Show The Comment System.*

Previous Post Next Post