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सेठजी यूं तो पचपन साल कि उम्र के थें दांडी बाल सब सफेद हो गये थें फिर भी वे काली डाई कर कर बाल काले रखतें थें और नियमित योगासन करके या फिर जिम में जाकर अपने आप को फिट रखने को तत्पर रहते थे हालांकि लाख कोशिश के बाद भी उनका पेट बड़ा हुआ ही था कर्मचारियों से मित्रों से अपने शरीर के फिटनेस के लिए पूछते तब मुस्कुरा कर उन्हें जबाब मिलता था कि अजी आप तो अभी जवान हैं इस उम्र में एसी फिटनेस हजारों में से एक ही व्यक्ति को मिलती हैं भाई साहब इस समय में अनाज और सब्जियां कहां असली खाने को मिलती हैं आप के पास तो सैकड़ों एकड़ जमीन हैं आम अमरूद जामुन के बाग हैं और कुछ एकड़ में तों देशी गोबर डालकर खेती करवाते हैं साथ ही आर्गेनिक सब्जियां भी उगाते हैं सबसे बढ़िया खुद और अपने आस पास के रिश्तेदार मित्रों को भी भेंट करते हैं इसलिए आप इस उम्र में भी एकदम जवान लगते हैं कुछ चाटुकार कहते सेठजी कसम से अभी भी आप से कोई भी वयस्क लड़की खुशी-खुशी शादी करने के लिए हामी भर देगी और कुछ चाटुकार कहते क्यों नहीं क्यों नहीं यह गोरा रंग लाल गुलाब के फूल जैसा मुंह और लम्बा कसरती शरीर ऐसे शरीर को देखकर अप्सराओं का भी मन डोल

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ही समय मुन्ना लाल कि नींद खुल गई थी उन्होंने विस्तर पर करवट ले कर धीरे से फुसफुसा कर कहा उठो मनोरमा देखो भोर हो गई है वाहर पंछी चहचहा रहें हैं भाई जल्दी से मुझे चाय बना देना यह बेड टी कि आदत भी है न कितनी ख़राब है अब देखो उसके बिना पेट भी अच्छे से साफ नहीं होता है परंतु उत्तर न मिलने से वह चौंक गए थे फिर खुद ही खीज उठें थे शायद उन्हें अपनी भुलक्कड़ आदतों से चिढ़ उठ रहीं थीं क्योंकि उनकी अर्धांगिनी तो पिछले छः महीने पहले ही  दिल कि बीमारी से भगवान के पास चली गई थी उसकी यादों में कुछ पल खोए हुए थे आंखों से कुछ अश्रुपूर्ण बूंद गालों पर लुढ़क गई थी खैर मन मारकर विस्तर छोड़ दिया था फिर किचन में जाकर चाय बना ने लगें थे  पर चाय कि पते ली हाथ से छिटक कर नीचे फर्श पर गिर पड़ी थीं जिससे धड़ाम कि आवाज ने बहू बेटा को जगा दिया था बहू बेडरूम में से अस्त-व्यस्त कपड़ों में ही किचन में पांव पटकती हुई आयी थी क्या बाबूजी आप को जरा सा भी धैर्य नहीं सात बजे वाइ आ जाती है न वह चाय बना देती अब देखिए पांच भी नहीं बजें है जगा दिया सारे दिन आफिस मे काम करें  और फिर घर पर आप कि खटर पटर सुन कर नींद भी पूरी नहीं हो पाती अतुल अतुल पति का नाम लेकर वह भी आ गया था देखो बाबूजी को समझा दिजिए सुबह सात बजे से पहले हमें डिस्टर्ब न करें ।



बाबूजी प्रतिज्ञा ठीक कह रही है मेरे ख्याल से आपको सात बजे चाय पीने कि आदत डाल लेनी चाहिए देखिए हम दोनों पर वर्क लोड बहुत ज्यादा रहता है ऐसे में हमें पूर्ण नींद चाहिए समझें आप बेटा यह बोलकर बहू के साथ बेडरूम में समां गया था फिर अंदर से हंसने कि मिलीं जुली आवाज आ रही थी जो छोड़ो न बेबी फिर चालू हो ...

बेबसी अपमान का घूंट पीकर रह गए थे मुन्ना लाल जी मनोरमा के जाने के बाद  ..... यह तो शुरुआत थी ।

यो तो अधिकांश समय मुन्ना लाल फ्लेट में अकेले ही रहते थे चूंकि बेटा बहू दोनों ही काम पर जाते थे फिर मुम्बई जैसा व्यस्त ट्राफिक जाम सिग्नल कि दहलीज  को पार करते करते दस ग्यारह बजे तक ही वापस आते थे  और फिर डिनर के समय पर ही थोड़ी बहुत बात चीत होती थी मुन्ना लाल जी का सारा समय टेलीविजन पर या फिर समाचार पत्र , साहित्य  रचनाएं पढ़ने में ही बीतता था चूंकि ऐतवार के दिन छुट्टी रहती थी तब उन्हें उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता था कारण उन्हें बेटा बहू से बात करना फिर उनकी मम्मी मनोरमा कि यादें ताजा कर लेते थे जैसे कि देख बेटा जब तूं छोटा-सा था तब तेरी मां तुझे काजुओं पिस्ता बादाम का दुध पिलाती थी और तूं बहुत रूठता था  बहू से बेटी मनोरमा ने तेरे लिए पहले से ही जेवर तैयार कर रखें थे जैसे कि सोने का दस तोला का मंगल सूत्र पचास तोला कि करधनी ,नथ , कानों के लिए करण फूल , झुमके, हाथों कि अंगुलियों में हीरे कि अंगूठी  कुल मिलाकर 100 तोला सोना पांच किलो चांदी , करोड़ों के हीरे जड़ित आभूषण पहले ही तैयार कर लिए थे पर विधाता पर किसी का बस नहीं तुम्हारी शादी से पहले ही चल बसीं आज अगर तेरी सास होती तब खुशी से फूली नहीं समाती क्यों कि बेटी भी तूं ही थीं और वहू ?

बहू प्रतिज्ञा :- पापाजी ठीक है आप लोगों ने अपनी बहू के लिए इतना सोचा खासकर मेरी सास ने पर पहले तो में जेवर ,सोना चांदी, हीरे-जवाहरात , कि , गुलामी कि जंजीर पहनना पसंद नहीं करतीं , फिर यह इक्कीसवीं सदी चल रही है यह जमाना विज्ञान का हैं शिक्षा का हैं हमारे वनाए हुए उपग्रह हमें पल पल कि फ़ोटो सहित आकाशगंगा कि भेज रहें हैं हम जल्दी ही अन्य ग्रहों पर बसने जा रहै है आज आप गूगल को तो जानते ही होंगे किसी भी खोज के लिए गूगल पर सर्च किजिए तुरंत उत्तर मिलेगा बुरा नहीं मानिए में पड़ी लिखी आधुनिक समय कि नारी हूं अच्छा कमा रहीं हूं उच्च पद पर हूं  आपके हीरे जवाहरात सोना चांदी देखकर मैंने तुम्हारे लड़के से शादी नहीं कि मैंने  उसके हुनर को देखकर व्याह किया हैं यानि जैसे कि कम्प्यूटर के अनेकों प्रोगाम, साफ्टवेयर, एप्लिकेशन , कुछ ही समय में तैयार कर लेता है ।

न्ना लाल जी :- बेटी में कोई अपनें धन का वखान नहीं कर्ता में पुश्तैनी जायदाद वाला था फिर तुम्हें तो मालूम ही है कि में सरकार कि प्रशासनिक सेवा में उच्च पद पर आसीन रहा था जैसे कि कलेक्टर , उप सचिव, सचिव , फिर शासन कि सेवा कि उम्र से पहले मैंने  सास के गुजर जाने के कारण  पांच साल पहले ही कंपल्सरी  रिटायर मैट ले लिया था अभी में पचास साल से कुछ वर्ष ऊपर  का हूं सोचा था कि जीवन का बाकी समय बेटा बहू नाती पोतों के बीच हंसी खुशी से व्यतीत हो ?

अच्छा तूं मुझे खुशखबरी कब दें रहीं हैं 

बहू:- कौन सी पापाजी ।

मुन्ना लाल :-  अरे भाई दादा बनने वाली ।

बहू :- पापा जी हम जिस प्रोजेक्ट को तैयार कर रहे हैं अगर वह सम्मिलित किया जाता है तब हमारा प्रमोशन पक्का हो जाएगा फिर हम भारत से अमेरिका चलें जायेंगे अगर सबकुछ ठीक ठाक रहा तब वहीं कि नागरिकता मिल जायेगी फिर अभी अगले कुछ वर्षों तक हमनें बच्चों के लिए कोई प्लानिंग नहीं कि इस बीच बेटा भी आ गया था उसने भी हां में हां मिला दी थी ।

मुन्ना लाल जी को पूरी-पूरी तस्वीर साफ नजर आ रही थी कि जीवन कि कश्ती इन सब के बीच पार नहीं होने वाली फिर भी मन मारकर हां में हां मिलाते रहते थे कभी कभी तो टेलीविजन कि ऊंची आवाज पर वहू टोंक देती ,कभी किसी दूसरे वहाने से जलील कर देती थीं बेटा सब जानते हुए भी अनजान बन कर रह गया था ।

बेटा तुझको तों पता ही है इंदौर में हमारा बंगले में ताला डला हुआ है सोचता हूं कि वापस चला जाऊं उस कि दीवारें गार्डन सभी में तेरी मां कि यादें छुपी हुई है ।

बहू:- हां हां पापा जी जाइए बिल्कुल जाइए ।

मुन्ना लाल जी वापस इन्दौर आ गये थे बड़ घर कारें सब कुछ था माली था चौकिदार था ड्राइवर भी था खाना पकाते के लिए नोकरानी भी थी जो दोनों ही समय का खाना पका कर रख जाती थी जिसे से वे गर्म करके पेट भर लेते थे पर अकेलापन उन्हें खाने को दोडता था  स्त्री के बिना जीवन अधूरा है शरीर कि वासनाएं भी तंग करने लगीं थी पर कैसे शांत करें ?

चूंकि समाज में इज्जत थीं बाजारू औरत घर में नहीं लाना चाहते थे  दूसरी शादी भी नहीं करना चाहते थे  क्योंकि बेटा बहू दोनों ही तो थे जो बंश वेला को आगे बढ़ाने का काम करेंगे उन्होंने अपने परिचितों से घर के लिए शालीन नोकरानी को खोजने के लिए कहां जो हर समय घर पर ही रहें  ।

जल्दी ही उनकि खोज पूरी हो गई थी एक मित्र नवयुवती के साथ आएं थे जिसकी गोद में दो वर्ष कि गोल-मटोल सुन्दर कन्या थी  नव युवती के चेहरे मोहरे से लगता था कि किसी अच्छे खानदान से ताल्लुक रखती थी, देखने में सुंदर थी चेहरे पर तेज था, आंखें बड़ी बड़ी थीं, अधर गुलाबी थे, सुराहीदार गर्दन थीं, कसा हुआ बदन था , सिंपल परिधान था ,उसे देख कर चौंक गए थें मुन्ना लाल जी ।

भाई यह कोन हैं उन्होंने मित्र से कहा था ।

यह शालिनी है बेचारी का पति छोड़ कर भाग गया था मेरे दोस्त के घर पर काम करतीं थी जिसकी पत्नी इस पर शक करतीं थी  रोज झगड़ा हो रहा था मेरा दोस्त शरीफ़ था उसने दया धर्म देखकर घर में शरण दी थी पर ... उसका फोन आया था कि भाई इस को किसी अच्छे घर में काम दिला दिजिए जहां यह सैफ रहें  ।

मुन्ना लाल जी ने कुछ शर्तों के साथ उसे काम पर रख लिया था जैसे कि सुबह बैड टी, और कब नाश्ता, दोपहर का भोजन, शाम का भोजन , आदि कागज़ पर उसका नाम पता आधार कार्ड, सब कुछ लिखा लिया था ।

फिर पोर्च का बगल वाला कमरा आरक्षित कर उसे दे दिया था ।

शालिनी ने अपनी शालीनता से मुन्ना लाल जी को प्रभावित कर लिया था वे उसकि बच्ची को गोद में खिलाने लगें थे कभी कभी तो बच्चे बन जाते कभी कभी घोड़ा बन कर उसे पीठ पर बैठा लेते थे तोतली बोली से मुन्ना लाल जी हंस हंस कर लोटपोट हो जातें थे पर शालिनी ने अपने इर्द-गिर्द एक दायरा बना लिया था मृदुभाषी होकर कम ही बात करतीं थी सेवा भाव में कोई भी कमी नहीं रखतीं थीं ।

शालिनी अंग्रेजी अखबार पढ़ रहीं थी उस को अंग्रेजी अखबार पढ़ते देख कर चौंक गए थें मुन्ना लाल जी उन्होंने कहा था ।

मुन्ना लाल जी:- तूं पड़ी लिखी है।

शालिनी:- जी इंग्लिश मीडियम से बारहवीं पास हूं । 

मुन्ना लाल जी :- क्या कह रही हों ऐसे कैसे हों सकता है फिर तुम तो ......

शालिनी:- छोड़िए ना साहब सब किस्मत के खेल हैं उदाश लहजे से कहां था ।

मुन्ना लाल जी:- हां ला कि मुझे तुम्हारी व्यक्ति गत समस्याओं को पूछने का हक नहीं फिर भी मेरी पारखी नज़र कह रहीं हैं कि किसी अच्छे खानदान से ताल्लुक रखती थी, कुछ अपने बारे में जानकारी दोगी क्या?

शालिनी बात को टाल गयी थी ।

मुन्ना लाल जी का उसके प़ति रवैया बदल गया था बाजार से महंगे कपड़े लाएं थे  जो उसने बहुत मुश्किल से स्वीकार किए थे उसके लिए स्कूटी खरीद दी थी कभी कभी कार से पर्यटन स्थल पर घुमाने ले जाते थे पर हां अब वह बात चीत करनी शुरु कर दी थीं ।

उसने अपनी कहानी बताई थी कि उसके पिता सरकारी शिक्षण संस्थान में प्राचार्य पद पर कार्यरत थे मां फ़ोफेसर थीं भाइ नेवी में अफसर हैं और वह अच्छे स्कूल में बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण कि थीं पर अपनी उफनती जवानी को सम्हाल नहीं पाई थीं पहली बार घर के नौकर से फिजिकल रिलेशन बनाएं थें फिर वह उसकि आदि हों गयी थी , घर से , रूपए, पैसा,लेकर, भाग गई थी , नोकर , उसके, साथ,हर, प्रकार, से मनमानी, करता,था, शराब,भी, पीने,लगा, था जिससे दोनों में खटपट होने लगीं थीं , ऐसे ही माहोल में वह बच्ची कि मां बन गई थी, फिर पता चला था,कि वह पहले से शादीशुदा हैं  धरती,से जमीं खिसकने लगी थीं एक दिन वह हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर अपनी बीवी के पास चला गया था ।

शालिनी कि आंखों से अश्रु धारा वह रहीं थीं मुन्ना लाल ने खींचकर उसे छाती से चिपका लिया था वह बोली में आगे पढ़ना चाहतीं हूं में पढ़ाऊंगा !

मनोरमा के गुजर जाने के अनेकों वर्ष बाद आज मुन्ना लाल जी को स्त्री देह का शुख मिल रहा था पंलग अखाड़ा बना हुआ था वासना कि सिसकारियां , वातावरण में समां रहीं थीं, गर्म सांसें टकरा रहीं थीं आधा घंटा बाद तूफान थमा था फिर प्यार से शालिनी ने छाती पर हल्के हल्के मुक्के मार  कर कहां था तूम न तों कमाल कर दिया साहब पूरा थका दिया तबियत मस्त कर दीं सच कहूं   शालिनी आज से तुम्हारी हुई अब आप जैसा भी रखें कैसा भी इस्तेमाल करें ।

मुन्ना लाल जी कि जवानी लोट आई थी कनपटी पर सफेद हो रहे बाल काले हो गए थे चाल ढाल बदल गयी थी पहनवा बदल गया थीं शरीर के निष्क्रिय अंग में जान आ गई थी।

इंसान मन वचन कर्म सै स्वार्थी हैं यह कथन मुन्ना लाल जी पर बरावर फिट बैठता था जिस पत्नी को याद कर रोते थें अब नवयुवती को पाकर उसे भूल गए थे  कारण शालिनी ने अपने रूप-रंग योवन के अथाह सागर में उन्हें जब भी मन चाहे गोते लगाने कि परमीशन दे दीं थीं अधिकांश समय बेडरूम में धमाल मचाने में लगें रहते थे पर हां उन्होंने शालिनी का कालेज में एडमिशन करा दिया था पड़ोस में लोग बाग़ सवाल करते तब बे गांव में रिश्ते के भाई कि बेटी है जैसे कि भतीजी पर उन्हें बेटी कि उम्र कि विन व्याह कि पत्नी मिल गई थी । 
इस बीच बेटा बहू  का अनेकों बार फोन आया था सिर्फ हालचाल पूछने कि औपचारिकता पूरी हुई थी फिर अगले पांच साल के लिए विदेश चलें गए थे ।
 बेटा बहू का विदेश जाने से मुन्ना लाल जी ख़ुश थें साथ ही अंदर अंदर मन में डर समाया हुआ था कारण उनके पास करोड़ों कि संपत्ति थीं जो कानूनी रूप से बेटे बहू कि थीं शालिनी के साथ शादी भी नहीं करना चाहते थे कारण उम्र का लम्बा फेसला था हालांकि बे दिन हों या रात्रि चरम सुख लेते हीं थें सबसे अच्छी बात यह थीं कि शालिनी उनसे शारीरिक संबंध बनाने में हर प्रकार से खुशहाल थी उसने अनेकों बार गुजारिश कि थीं कि  हम कानून समाज कि नज़र से व्याह के बंधन में बंध जाएं ।
पर मुन्ना लाल के मन में कहीं न कहीं बेटे को संपत्ति देना चाहते थे ऐसे में   विभाजित करने का  उन्हें ख्याल भी नहीं आता था इंसान जन्म से ही स्वार्थी हैं ??
पर कभी कभी आत्मा उन्हें धिक्कार रहीं थीं कि तूं समाज पड़ोसी के सामने अपनी भतीजी बताता है और उस भोली भाली लड़की का दैहिक शोषण कर रहा है हालांकि  शालिनी कि शिक्षा पूरी हो गई थी चूंकि उसे धन के साथ रोज़ शारीरिक सुख हासिल हों रहा था फिर वह पहले से ही कुशाग्र बुद्धि कि थीं फिर मन वचन कर्म से शुद्ध थीं इस बीच के सालों में पर पुरुष कि ओर नज़र भी नहीं डालीं थीं!
मुन्ना लाल जी उसकी वफादारी सेवा से प्रसन्न थें उन्हें आगे आने वाले तूफान का एहसास था तभी तो उन्होंने वसियत तैयार कर ली थी ।
फिर पांच साल बाद बेटा बहू विदेश से वापस आ गए थे घर पर आकर कोहराम मचाया था बहू बार बार शालिनी को गालियां दे रही थी बेटा कह रहा था आपकी बेटी कि उम्र कि हैं आपको शर्म नहीं आई बुढ़ापा में जवानी का रस लेना चाहतें हों धिक्कार है तुम्हें बाप कहने में भी शर्म आ रही है कलह ज्यादा बढ़ गया था शालिनी को उनकी बहू ने बेटी के साथ घर से बाहर कर दिया था मुन्ना लाल जी बहुत दुखी थें फिर एक दिन वह गायब हो गए थे उन्होंने दो पत्र पोस्ट किए थे 
पहला बेटे के नाम 
जिसमें उसके लिए ढेरों शुभकामनाएं आशिर्वाद 
 थें साथ ही संपत्ति का   लेखा जोखा था ।
दूसरा शालिनी के नाम से था जिसमें लिखा गया था कि मैं उन लोगों में से नहीं कि जो लिव इन रिलेशनशिप के नाम पर स्त्री  का दैहिक शोषण कर के उसे धोखा देते हैं मैंने अपनी संपत्ति का एक तिहाई भाग तुम्हारे नाम कर दिया है ताकि तुम्हें  फिर कहीं मेरे जैसे आदमी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहना ना पड़े  तेरी उम्र अभी कम हैं किसी अच्छे लड़के से शादी कर लेना हमेशा खुश रहना में अपना शेष जीवन भगवान कि ख़ोज में व्यतीत कर रहा हूं में हिमालय पर्वत पर साधना करूंगा ।
शालिनी कि आंखों से अश्रु धारा वह रहीं थीं दूसरी ओर बेटा बहू संपत्ति पाकर खुश थे ।
समाप्त ..!








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लिव इन रिलेशनशिप के नाम पर पुरुष व महिला एक दूसरे का इस्तेमाल करते हैं जैसा कि समाचार पत्र , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर बहुत ही दुखद खबरें प्रसारित होती है कि हमारा शौषण कर हमें मझधार में छोड़ दिया कुछ लोग स्त्री कि देह को भोगने का ही साधन मानते हैं फिर उसे धोका दे कर छोड़ देते हैं इसी विषय पर आधारित है यह कहानी

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तुम कहां हो

 तुम कहां हो? कहां नहीं हों ? दोनों अनंत काल से चले आ रहें शाश्वत प़शन है इनके उत्तर भी अनंत काल से  शाश्वत हैं। प़भु के बगैर होना तो दूर कल्पना भी संभव नहीं तुम सर्वत्र हो प़भु कण कण में समाए हों प़भु तुम यहां भी हों वहां भी हों आपके बिना कहते हैं कि  पत्ता भी नहीं हिल सकता मंद मंद शीतल पवन नहीं वह सकतीं कल कल करती नदियां नही बह सकतीं हिलोरें मारकर विशाल सागर  अपनी सीमा में नहीं रहता न ही सूर्य अपनी तपिश बिखेर कर हमें रोशनी देता न ही चांद दीए जैसी रोशनी से हमें  शीतलता देता  पूछता हूं प़भु तुम कहां हो। हे प्रभु जब से हम मानव कि अगली पीढ़ी से लेकर  आखिर पीढ़ी तक यह प़शन हमें तबाह किये हुए हैं  बर्बादी के द्वार पर खड़ा किए हुए हैं हे प्रभु प़शन अटपटा सा है पर शब्दों कि गूंज उत्तर के रूप में होती है पर परतीत नहीं होती  हे प्रभु कभी कभी लगता है कि आप हमारे अन्तर मन में हों  तब कभी कभी लगता है कि आप कण कण में हों  तब कभी कभी लगता है कि दीन हीन लाचार अपाहिज मानव  पशु पंछी कि देखभाल करने में  हमें भूल गए हों  लेकिन यह सच है कि प़भु आप तो हो  पर आप कहां हो,??

बड़ा दिन कविता

 आज तो बड़ा दिन था  पर पता नहीं चला बिना हलचल के ही गुजर गया रोज कि भाती सूरज उषा के साथ फाग खेलता आया संध्या के साथ आंख मिचौली करता चला गया चतुर्थी का चंद्रमा उभरा अपना शीतल प्रकाश बिखेर चल दिया तारों कि बारात आकाश में उतर मोन दर्शक बन चहुं ओर बिखर गई रोज कि भाती लोगों कि भीड़ अपना अपना कर्म कर सो गई पंछियों के समूह प्रभात के साथ कलरव का गान कर संध्या आते गुनगुनाते चहचहाते पंखों को फड़फड़ाते घोंसलों में चलें गये  हर दिन बड़ा दिन ऐसा कहते हमें समझाते गये।।

दलदल एक युवा लड़के कि कहानी

वह एक वर्षांत कि रात्रि थी मेघ गर्जन करते हुए कड़कती बिजली के साथ घनघोर वर्षा कर रहे थे ऐसे ही रात्रि में परेश होटल के कमरे में एक युवा शादी शुदा महिला के साथ लिपटा हुआ था  महिला के कठोर नग्न स्तनों का नुकिला हिस्सा उसकी छाती पर गढ़ रहा था वातावरण में गर्म सांसें के साथ तेज सिसकारियां निकल रही थी सांगवान का डबल बैड पलंग पर मोंटे मोंटे गद्दे कांप रहे थे पलंग का शायद किसी हिस्से का नट बोल्ट ढीला था तभी तो कि कुछ चरमरा ने कि आवाज आ रही थी  साथ ही महिला के मुख से और तेज हा ओर तेज शाबाश ऐसे ही ... .. आह आह सी सी बस बस अब नहीं छोड़ो टांग दर्द  कर रही है बस बस  पर परेश  धक्के पर धक्का दे रहा था फिर वह भी थम गया था अपनी उखड़ी सांसों के साथ चूंकि परेश पुरूष वैश्या था उसकी अमीर हर उम्र कि महिला थी वह इस धंधे में नया नया आया था  पर जल्दी ही अमीर महिलाओं के बीच फेमस हो गया था उसका कारण था उसका सुंदर सुडौल शरीर और बात करने का सभ्य।  ढग फिर वह अपने काम को पूरी इमानदारी से निर्वाह करता था मतलब उसकी ग़ाहक को किसी भी प्रकार कि शिक़ायत नहीं रहती थी । खैर सांसें थमते ही दोनों अलग हो गए थे महिला ने मद्धम