भोर का समय था मंदिरों में पूजा-अर्चना चल रही थी लाउडस्पीकर पर आरती सुनाई दे रही थी कहीं दूर मुर्ग बाग लगा रहा था पेड़ों पर पंछी चहचहा रहें थे मानों इंसान को जगाने का प्रयास कर रहे हों कि उठो देखो शुवह का सुर्य देव का उदय होने का नजारा कितना सुंदर है लालिमा के साथ कितनी उर्जा लेकर आ रहे हैं ।
ही समय मुन्ना लाल कि नींद खुल गई थी उन्होंने विस्तर पर करवट ले कर धीरे से फुसफुसा कर कहा उठो मनोरमा देखो भोर हो गई है वाहर पंछी चहचहा रहें हैं भाई जल्दी से मुझे चाय बना देना यह बेड टी कि आदत भी है न कितनी ख़राब है अब देखो उसके बिना पेट भी अच्छे से साफ नहीं होता है परंतु उत्तर न मिलने से वह चौंक गए थे फिर खुद ही खीज उठें थे शायद उन्हें अपनी भुलक्कड़ आदतों से चिढ़ उठ रहीं थीं क्योंकि उनकी अर्धांगिनी तो पिछले छः महीने पहले ही दिल कि बीमारी से भगवान के पास चली गई थी उसकी यादों में कुछ पल खोए हुए थे आंखों से कुछ अश्रुपूर्ण बूंद गालों पर लुढ़क गई थी खैर मन मारकर विस्तर छोड़ दिया था फिर किचन में जाकर चाय बना ने लगें थे पर चाय कि पते ली हाथ से छिटक कर नीचे फर्श पर गिर पड़ी थीं जिससे धड़ाम कि आवाज ने बहू बेटा को जगा दिया था बहू बेडरूम में से अस्त-व्यस्त कपड़ों में ही किचन में पांव पटकती हुई आयी थी क्या बाबूजी आप को जरा सा भी धैर्य नहीं सात बजे वाइ आ जाती है न वह चाय बना देती अब देखिए पांच भी नहीं बजें है जगा दिया सारे दिन आफिस मे काम करें और फिर घर पर आप कि खटर पटर सुन कर नींद भी पूरी नहीं हो पाती अतुल अतुल पति का नाम लेकर वह भी आ गया था देखो बाबूजी को समझा दिजिए सुबह सात बजे से पहले हमें डिस्टर्ब न करें ।
बाबूजी प्रतिज्ञा ठीक कह रही है मेरे ख्याल से आपको सात बजे चाय पीने कि आदत डाल लेनी चाहिए देखिए हम दोनों पर वर्क लोड बहुत ज्यादा रहता है ऐसे में हमें पूर्ण नींद चाहिए समझें आप बेटा यह बोलकर बहू के साथ बेडरूम में समां गया था फिर अंदर से हंसने कि मिलीं जुली आवाज आ रही थी जो छोड़ो न बेबी फिर चालू हो ...
बेबसी अपमान का घूंट पीकर रह गए थे मुन्ना लाल जी मनोरमा के जाने के बाद ..... यह तो शुरुआत थी ।
यो तो अधिकांश समय मुन्ना लाल फ्लेट में अकेले ही रहते थे चूंकि बेटा बहू दोनों ही काम पर जाते थे फिर मुम्बई जैसा व्यस्त ट्राफिक जाम सिग्नल कि दहलीज को पार करते करते दस ग्यारह बजे तक ही वापस आते थे और फिर डिनर के समय पर ही थोड़ी बहुत बात चीत होती थी मुन्ना लाल जी का सारा समय टेलीविजन पर या फिर समाचार पत्र , साहित्य रचनाएं पढ़ने में ही बीतता था चूंकि ऐतवार के दिन छुट्टी रहती थी तब उन्हें उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता था कारण उन्हें बेटा बहू से बात करना फिर उनकी मम्मी मनोरमा कि यादें ताजा कर लेते थे जैसे कि देख बेटा जब तूं छोटा-सा था तब तेरी मां तुझे काजुओं पिस्ता बादाम का दुध पिलाती थी और तूं बहुत रूठता था बहू से बेटी मनोरमा ने तेरे लिए पहले से ही जेवर तैयार कर रखें थे जैसे कि सोने का दस तोला का मंगल सूत्र पचास तोला कि करधनी ,नथ , कानों के लिए करण फूल , झुमके, हाथों कि अंगुलियों में हीरे कि अंगूठी कुल मिलाकर 100 तोला सोना पांच किलो चांदी , करोड़ों के हीरे जड़ित आभूषण पहले ही तैयार कर लिए थे पर विधाता पर किसी का बस नहीं तुम्हारी शादी से पहले ही चल बसीं आज अगर तेरी सास होती तब खुशी से फूली नहीं समाती क्यों कि बेटी भी तूं ही थीं और वहू ?
बहू प्रतिज्ञा :- पापाजी ठीक है आप लोगों ने अपनी बहू के लिए इतना सोचा खासकर मेरी सास ने पर पहले तो में जेवर ,सोना चांदी, हीरे-जवाहरात , कि , गुलामी कि जंजीर पहनना पसंद नहीं करतीं , फिर यह इक्कीसवीं सदी चल रही है यह जमाना विज्ञान का हैं शिक्षा का हैं हमारे वनाए हुए उपग्रह हमें पल पल कि फ़ोटो सहित आकाशगंगा कि भेज रहें हैं हम जल्दी ही अन्य ग्रहों पर बसने जा रहै है आज आप गूगल को तो जानते ही होंगे किसी भी खोज के लिए गूगल पर सर्च किजिए तुरंत उत्तर मिलेगा बुरा नहीं मानिए में पड़ी लिखी आधुनिक समय कि नारी हूं अच्छा कमा रहीं हूं उच्च पद पर हूं आपके हीरे जवाहरात सोना चांदी देखकर मैंने तुम्हारे लड़के से शादी नहीं कि मैंने उसके हुनर को देखकर व्याह किया हैं यानि जैसे कि कम्प्यूटर के अनेकों प्रोगाम, साफ्टवेयर, एप्लिकेशन , कुछ ही समय में तैयार कर लेता है ।
न्ना लाल जी :- बेटी में कोई अपनें धन का वखान नहीं कर्ता में पुश्तैनी जायदाद वाला था फिर तुम्हें तो मालूम ही है कि में सरकार कि प्रशासनिक सेवा में उच्च पद पर आसीन रहा था जैसे कि कलेक्टर , उप सचिव, सचिव , फिर शासन कि सेवा कि उम्र से पहले मैंने सास के गुजर जाने के कारण पांच साल पहले ही कंपल्सरी रिटायर मैट ले लिया था अभी में पचास साल से कुछ वर्ष ऊपर का हूं सोचा था कि जीवन का बाकी समय बेटा बहू नाती पोतों के बीच हंसी खुशी से व्यतीत हो ?
अच्छा तूं मुझे खुशखबरी कब दें रहीं हैं
बहू:- कौन सी पापाजी ।
मुन्ना लाल :- अरे भाई दादा बनने वाली ।
बहू :- पापा जी हम जिस प्रोजेक्ट को तैयार कर रहे हैं अगर वह सम्मिलित किया जाता है तब हमारा प्रमोशन पक्का हो जाएगा फिर हम भारत से अमेरिका चलें जायेंगे अगर सबकुछ ठीक ठाक रहा तब वहीं कि नागरिकता मिल जायेगी फिर अभी अगले कुछ वर्षों तक हमनें बच्चों के लिए कोई प्लानिंग नहीं कि इस बीच बेटा भी आ गया था उसने भी हां में हां मिला दी थी ।
मुन्ना लाल जी को पूरी-पूरी तस्वीर साफ नजर आ रही थी कि जीवन कि कश्ती इन सब के बीच पार नहीं होने वाली फिर भी मन मारकर हां में हां मिलाते रहते थे कभी कभी तो टेलीविजन कि ऊंची आवाज पर वहू टोंक देती ,कभी किसी दूसरे वहाने से जलील कर देती थीं बेटा सब जानते हुए भी अनजान बन कर रह गया था ।
बेटा तुझको तों पता ही है इंदौर में हमारा बंगले में ताला डला हुआ है सोचता हूं कि वापस चला जाऊं उस कि दीवारें गार्डन सभी में तेरी मां कि यादें छुपी हुई है ।
बहू:- हां हां पापा जी जाइए बिल्कुल जाइए ।
मुन्ना लाल जी वापस इन्दौर आ गये थे बड़ घर कारें सब कुछ था माली था चौकिदार था ड्राइवर भी था खाना पकाते के लिए नोकरानी भी थी जो दोनों ही समय का खाना पका कर रख जाती थी जिसे से वे गर्म करके पेट भर लेते थे पर अकेलापन उन्हें खाने को दोडता था स्त्री के बिना जीवन अधूरा है शरीर कि वासनाएं भी तंग करने लगीं थी पर कैसे शांत करें ?
चूंकि समाज में इज्जत थीं बाजारू औरत घर में नहीं लाना चाहते थे दूसरी शादी भी नहीं करना चाहते थे क्योंकि बेटा बहू दोनों ही तो थे जो बंश वेला को आगे बढ़ाने का काम करेंगे उन्होंने अपने परिचितों से घर के लिए शालीन नोकरानी को खोजने के लिए कहां जो हर समय घर पर ही रहें ।
जल्दी ही उनकि खोज पूरी हो गई थी एक मित्र नवयुवती के साथ आएं थे जिसकी गोद में दो वर्ष कि गोल-मटोल सुन्दर कन्या थी नव युवती के चेहरे मोहरे से लगता था कि किसी अच्छे खानदान से ताल्लुक रखती थी, देखने में सुंदर थी चेहरे पर तेज था, आंखें बड़ी बड़ी थीं, अधर गुलाबी थे, सुराहीदार गर्दन थीं, कसा हुआ बदन था , सिंपल परिधान था ,उसे देख कर चौंक गए थें मुन्ना लाल जी ।
भाई यह कोन हैं उन्होंने मित्र से कहा था ।
यह शालिनी है बेचारी का पति छोड़ कर भाग गया था मेरे दोस्त के घर पर काम करतीं थी जिसकी पत्नी इस पर शक करतीं थी रोज झगड़ा हो रहा था मेरा दोस्त शरीफ़ था उसने दया धर्म देखकर घर में शरण दी थी पर ... उसका फोन आया था कि भाई इस को किसी अच्छे घर में काम दिला दिजिए जहां यह सैफ रहें ।
मुन्ना लाल जी ने कुछ शर्तों के साथ उसे काम पर रख लिया था जैसे कि सुबह बैड टी, और कब नाश्ता, दोपहर का भोजन, शाम का भोजन , आदि कागज़ पर उसका नाम पता आधार कार्ड, सब कुछ लिखा लिया था ।
फिर पोर्च का बगल वाला कमरा आरक्षित कर उसे दे दिया था ।
शालिनी ने अपनी शालीनता से मुन्ना लाल जी को प्रभावित कर लिया था वे उसकि बच्ची को गोद में खिलाने लगें थे कभी कभी तो बच्चे बन जाते कभी कभी घोड़ा बन कर उसे पीठ पर बैठा लेते थे तोतली बोली से मुन्ना लाल जी हंस हंस कर लोटपोट हो जातें थे पर शालिनी ने अपने इर्द-गिर्द एक दायरा बना लिया था मृदुभाषी होकर कम ही बात करतीं थी सेवा भाव में कोई भी कमी नहीं रखतीं थीं ।
शालिनी अंग्रेजी अखबार पढ़ रहीं थी उस को अंग्रेजी अखबार पढ़ते देख कर चौंक गए थें मुन्ना लाल जी उन्होंने कहा था ।
मुन्ना लाल जी:- तूं पड़ी लिखी है।
शालिनी:- जी इंग्लिश मीडियम से बारहवीं पास हूं ।
मुन्ना लाल जी :- क्या कह रही हों ऐसे कैसे हों सकता है फिर तुम तो ......
शालिनी:- छोड़िए ना साहब सब किस्मत के खेल हैं उदाश लहजे से कहां था ।
मुन्ना लाल जी:- हां ला कि मुझे तुम्हारी व्यक्ति गत समस्याओं को पूछने का हक नहीं फिर भी मेरी पारखी नज़र कह रहीं हैं कि किसी अच्छे खानदान से ताल्लुक रखती थी, कुछ अपने बारे में जानकारी दोगी क्या?
शालिनी बात को टाल गयी थी ।
मुन्ना लाल जी का उसके प़ति रवैया बदल गया था बाजार से महंगे कपड़े लाएं थे जो उसने बहुत मुश्किल से स्वीकार किए थे उसके लिए स्कूटी खरीद दी थी कभी कभी कार से पर्यटन स्थल पर घुमाने ले जाते थे पर हां अब वह बात चीत करनी शुरु कर दी थीं ।
उसने अपनी कहानी बताई थी कि उसके पिता सरकारी शिक्षण संस्थान में प्राचार्य पद पर कार्यरत थे मां फ़ोफेसर थीं भाइ नेवी में अफसर हैं और वह अच्छे स्कूल में बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण कि थीं पर अपनी उफनती जवानी को सम्हाल नहीं पाई थीं पहली बार घर के नौकर से फिजिकल रिलेशन बनाएं थें फिर वह उसकि आदि हों गयी थी , घर से , रूपए, पैसा,लेकर, भाग गई थी , नोकर , उसके, साथ,हर, प्रकार, से मनमानी, करता,था, शराब,भी, पीने,लगा, था जिससे दोनों में खटपट होने लगीं थीं , ऐसे ही माहोल में वह बच्ची कि मां बन गई थी, फिर पता चला था,कि वह पहले से शादीशुदा हैं धरती,से जमीं खिसकने लगी थीं एक दिन वह हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर अपनी बीवी के पास चला गया था ।
शालिनी कि आंखों से अश्रु धारा वह रहीं थीं मुन्ना लाल ने खींचकर उसे छाती से चिपका लिया था वह बोली में आगे पढ़ना चाहतीं हूं में पढ़ाऊंगा !
मनोरमा के गुजर जाने के अनेकों वर्ष बाद आज मुन्ना लाल जी को स्त्री देह का शुख मिल रहा था पंलग अखाड़ा बना हुआ था वासना कि सिसकारियां , वातावरण में समां रहीं थीं, गर्म सांसें टकरा रहीं थीं आधा घंटा बाद तूफान थमा था फिर प्यार से शालिनी ने छाती पर हल्के हल्के मुक्के मार कर कहां था तूम न तों कमाल कर दिया साहब पूरा थका दिया तबियत मस्त कर दीं सच कहूं शालिनी आज से तुम्हारी हुई अब आप जैसा भी रखें कैसा भी इस्तेमाल करें ।
मुन्ना लाल जी कि जवानी लोट आई थी कनपटी पर सफेद हो रहे बाल काले हो गए थे चाल ढाल बदल गयी थी पहनवा बदल गया थीं शरीर के निष्क्रिय अंग में जान आ गई थी।
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