लालच बुरी बला पति पत्नी की कहानी




नाथ पेशे से सिविल  इंजीनियर थे हालांकि सिविल इंजीनियरिंग से एम् टेक करने के बाद  उन्होंने सरकारी नौकरी  के लिए अनेकों बार फार्म भरकर परीक्षा दी थी पर हर बार कुछ अंकों से उत्तीर्ण नहीं हो पाए थे कारण आरक्षण था फिर थक हार कर उन्होंने प्राइवेट सेक्टर को अपना जीवन यापन हेतु चयनित किया था  कठोर परिश्रम के साथ  कंपनी  का क्वांटिटी व क्वालिटी का ध्यान रखा था  उच्च अधिकारीयों ने उन्हें जल्दी ही तरक्की पर तरक्की दे कर प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर आसीन कर दिया था।सब कुछ अच्छा चल रहा था पर कलमुंही महामारी ने एक ही झटके से तहस नहस कर दिया था ।



 चूंकि महामारी ने मां बाप को भी चपेट में ले लिया था ह उनके इलाज पर वहुत खर्च हो गया था फिर भी यमराज के दूत उनके प्राण ले गए थे , फिर अपने  परिवार का सारा भरण पोषण उनके कंधे पर था जैसे कि  घरेलू खर्च ,  लाइफ इंश्योरेंस कि फीस ,कार कि इ एम आई ,घर कि भी एम आई , आदि कर्ज पर कर्ज  एसे में एकाएक वे रोजगार होना   समझने वाले ही समझ सकते हैं ऐसी ही मुश्किल परिस्थितियों में घिर गए थें बाबू मुक्ति नाथ !

कोरोनावायरस ने तबाही मचा दी थी सारे संसार में महामारी का  रौद्र रुप देखने को मिला था श्मशान,  कब्रिस्तानों में अंतिम क्रिया कर्म के लिए जगह नहीं थी टेलीविजन पर लाशों के ढेर दिखाई दे रहे थे जो अपनी वारी का इंतजार कर रहे थे चारों ओर चित्कार ,  रूदन सुनाई दे रहा था सड़कें खाली थीं कहीं कहीं पुलिस विभाग कि गाड़ीयां सायरन बजाती हुई दिखाई देती थीं चारों दिशाओं में भयावह दृश्य दिखाई दे रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे यमराज के दूत अट्टहास कर कर चारों दिशाओं में से असंख्य मानवों के प्राण हर ने के लिए प्रतिबद्ध हों 
खैर महामारी कि पहली लहर निकल गई थी बाजार फिर से गुलजार होने लगें थें गांव से मजदूर वापस शहरों को आ रहें थें फेक्ट्री या चालू हों गई थी कंस्ट्रक्शन साइटों ने अपना काम चालू कर दिया था समाचार पत्र में नौकरियां के विज्ञापन प्रकाशित हो रहें थें मुक्ति नाथ ने भी पांच छः कंपनी में इंटरव्यू दिया था।  पर कहीं से भी ओफर लेटर नहीं मिला था हताश होकर घर पर ही बैठे हुए थे ।
  
                    
                 
                  
               
               जैसा कि बाबू मुक्ति नाथ पर वहुत सारा कर्ज था अब कभी भी कहीं भी  बैक से फोन आ जाता तब कभी कार कि इ एम आई का तब कभी लाइफ इंश्योरेंस वालों का समय को देखते हुए उन्होंने लाइफ इंश्योरेंस कंपनी का कर्ज  दे दिया था पर अन्य बैंकों कि किस्त ,चेक बाउंस हो गई थी  बांऊस  का एक्स्ट्रा चार्ज लग रहा था  घर के खर्चे सम्हाल पाना मुश्किल हो रहा था हालांकि उनके पास कुछ सोना चांदी के गहने भी थें जिन्हें बेचकर बे इस मुश्किल घड़ी से निकल सकते थे पर श्री मती मुक्ति नाथ को गहनों से वहुत लगाव था उसका कारण यह उनके मां बाप ने दिए थें   मुक्ति नाथ ने हर प्रकार से समझाया था अपनी मजबूरी बताई थीं पर कुछ नारियों को सोना ,चांदी ,हीरे, जवाहर,से ज्यादा लगाव है ? ऐसी ही थीं मिसेज मुक्ति नाथ 
एक दिन उनकी बीच बहस चल रही थी जो इस प्रकार से थीं 
मुक्ति नाथ  :-  आप समझती क्यों नहीं  मां बाबूजी के इलाज पर बहुत पैसा खर्च हो गया था फिर भी नहीं बचा पाया  ! देखो पिछले साल  से में वे रोजगार होकर घर बैठा हुआ हूं जो भी जमापूंजी थीं घर के राशन पानी बिजली के बिल को जमा करने में खत्म हो गई है  कुछ हाथ उधारी भी हों गई है बैंक वाले वहुत परेशान कर रहे हैं ।
श्रीं मति मुक्ति नाथ :- कहें देती हूं मुझे मत सुनाओ मैंने कार लेने के लिए मना किया था पर आपको तो कार कि सवारी चाहिए थी जब कि तुम्हें पता भी था कि हमें घर कि किश्तों को जमा करना है ।

मुक्ति नाथ :- हां हां उल्टा चोर कोतवाल को डांटे तुम्हीं तो वार वार कहती थी कि हमारी सभी चचेरी सगी बहनों के पास कार हैं हमारी कब आएगी  ??
मिसेज मुक्ति नाथ :- हां हां  कहती थी पर किसे पता था कि  तुम नोकरी छोड़ कर घर पर बैठ कर मक्खियां मारने लगोगे  ।
मुक्ति नाथ  :-   वाह वाह आपका क्या चित भी आप कि और पट भी  मेरी बात मानो हम जेवर कहीं गिरवी रख देते हैं दो तीन लाख रुपए कोई भी दें देगा इतनी रकम से अभी कि परेशानी खत्म हो जाएगी फिर  नौकरी लगते ही  चार पांच महीने  वाद वापस उठा लेंगे।
मिसेज मुक्ति नाथ:- अब समझी सुनो मेरे पिताजी ने तुम्हारी डिग्री देख कर हमारी शादी कि थी अच्छा खासा दहेज़ दिया था आज जिस पलंग पर तुम आराम फरमा रहे हों वह  भी ? चलिए ठीक है पर जेवर उन्होंने मुझे अलग से दिए थें यह मेरे पिताजी कि यादें हैं कहें देती हूं मेरे जीते जी जेवर कभी भी गिरवी नहीं रखने वाले ।
मुक्ति नाथ:- तुम पूरी तरह से पागल हो अरे भाई कुछ समझ में आता है या नहीं सीजर कभी भी कार खींच लें जाएंगे बैक से कुछ समय कि मोहलत हाथ पैर जोड़कर ली है देखो यह कठिन समय है इस समय से बाहर मिलजुलकर ही निकल सकते हैं ।
 मिसेज मुक्ति नाथ :- हां हां पागल हो गई हूं तुम्हारे साथ व्याह कर मेरी किस्मत ही फूट गई है जब से आई हूं  हमेशा तंगी से गुजरी हूं कभी भी ढंग कि साड़ी भी लाकर नहीं दी मेरी सहेलियां दस दस हजार रुपए कि बनारसी साड़ी पहनती हैं  गले में दस दस तोला सोना पहनती हैं और एक में जो मेरे मां बाप का दिया हुआ है उसी के पीछे पड़े हुए हों।
मुक्ति नाथ  :- हां हां हर महीने साड़ी , जींस,टी शर्ट, मैक्सी 
, नाईट गाऊन, जो तुम खरीद रहीं हों फिर अपने चेहरे को लिपस्टिक पाउडर से पोत कर रखतीं हों वह सब कुछ भी तुम्हारे पिताजी भेज रहे हैं ?
मिसेज मुक्ति नाथ :-  खबरदार मेरे पिताजी का नाम मत लेना कहें देती हूं  वरना मेरे से बुरा कोई नहीं होगा हां भगवान को धन्यवाद दो जो आप  जैसे  इंसान को मेरे जैसी बीबी मिलीं ।
मुक्ति नाथ साधारण कद काठी के व्यक्ति थे रंग सांवला था पर चेहरा लुभावना था उन्हें सुंदर नहीं कह सकते तब बद सूरत भी नहीं वहीं मिसेज मुक्ति नाथ जिनका नाम सरला देवी था उपर वाले ने उन्हें फुर्सत में ही वनाया था उन्नत कंटीली आंख, सुतवा नाक, लम्बी ग्रीवा छरछरा मध्यम कद फिर उनके सीने पर कठोर , विशाल, नुकिले पहाड़,पतली कमर थीं उनकी मदमस्त यौवन पर अनेकों गिद्ध दृष्टि थीं पर बे उस द़ष्टि को पहचान कर हमेशा मीलों दूर रहती थी । बेटा होने के बाद  उनका यौवन सागर लबालब भर गया था, यौवन के अथाह सागर में डुबकी लगाने को नवयुवक, उम्र दराज, हमेशा , तैयार रहते थे पर चूंकि तट बंध का मालिक हमेशा चौकन्ना रहता था उस को यौवन के अथाह सागर कि रखवाली करने का तरीका मालूम था वह वीक एंड पर दिन में बाक़ी समय  रात्रि में सागर के हर कोने में ,उस कि गहराइयों में पहुंच जाता था ।पति पत्नी में अथाह प्रेम था पर इस प्रेम के बीच में  कोरोनावायरस विलेन बन कर आ गया था पति  बे रोजगार होने से , तनाव में रह रहे थे ऐसे में बे रोमांस से दूर हों गए थें । या यूं कहें धूल मिट्टी कि मोटी मोटी परत जमा हो गई थी । मिस्टर मुक्ति नाथ हमेशा तनाव में रहते थे कहते हैं कि तनाव में व्यक्ति मन से मनोवल से विकलांग  हो जाता है इस मेटर पर भी अनेकों बार बार बहस हुई थी सरला हमेशा सज धजकर  पति को रिझाने कि कोशिश करतीं थीं पर बिस्तर पर मुक्ति नाथ उल्टी करवट ले कर सो जाता थें ऐसे में सरला मन मारकर रह जाती थी ।
खैर लम्बी बहस के बाद श्रीं मति मुक्ति नाथ कि आंखों से अश्रु धारा वह निकलीं थीं गुस्से से पैर पटकती हुई अलमारी में से सारा जेवर निकाल कर पति को दे दिया था जो दो लाख रुपए में साहूकार के यहां गिरवी रख दिया था जैसे तैसे अभी तक का कि कार ,घर, आदि कि इ एम आई जमा हो गई थी फिर भी मुक्ति नाथ को कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी चूंकि घर तीन बेडरूम का था तब एक बैडरूम को पेइंग गेस्ट हाउस बनाने का फैसला लिया गया था घर के दरवाजे पर पेइंग गेस्ट का चस्पा खाना , एडवांस का लगा दिया गया था वहुत लोग आएं थें तय राशि देने को भी तैयार थें पर मुक्ति नाथ कुछ न कुछ बहाना कर उन्हें टाल देते थे फिर एक दिन बैंक के रीजनल मैनेजर मिस्टर आलोक नाथ  आएं थें जिनका ट्रांसफर मुंबई से इन्दौर में हुआ था उनके रिटायर मैट के कुछ ही साल बचें हुए थे चेहरे बातचीत के सलीके से अच्छे पुरुष दिखाई दे रहे थे उम्र दराज होने पर भी शारीरिक फिटनेस अच्छी थी चेहरे पर तेज था पत्नी बच्चे मुंबई में ही रहते थे पत्नी प्रोफेसर थीं कभी सप्ताह के अंत में आ जाती थी व कभी कभी आलोक नाथ घर चलें जाते थे   उन्हें किराएदार बना दिया था जल्दी ही मिलनसार स्वभाव के कारण परिवारिक सदस्य जैसे हों गए थे ।
चूंकि बहुराष्ट्रीय बैंक में रीजनल मैनेजिंग डायरेक्टर थे  कंट्रक्शन कंपनी के मालिकों से मिलना जुलना होता था ऐसे में उन्होंने मुक्ति नाथ कि नौकरी हेतु चर्चा कि थीं फिर क्या था अगले ही दिन इंटरव्यू के साथ ओफर लेटर मिल गया था पति पत्नी में खुशी का ठिकाना नहीं था  दोनों के मन में मिस्टर आलोक नाथ के प्रति अपार श्रद्धा मन में समां गई थी शाम को जैसे ही आलोक नाथ दफ्तर से घर आएं थें उनका स्वागत पैर छूकर किया गया था ।🙏🙏
मुक्ति नाथ: - आप कि कृपा से आज नोकरी मिल गई आपकी बड़ी मेहरबानी हुई ।
सरला: - हां सर  यह वहुत परेशान चल रहे थे रातों को नींद नहीं आ रही थी हर समय नौकरी कि टेंशन ही टेंशन ।

मिस्टर आलोक नाथ :- समझ सकता हूं कि वे रोजगार होने पर क्या बीत रही होगी वे रोजगार व्यक्ति हर प्रकार से टूट जाता है अब देखिए हर साल लाखों स्टूडेंट डिग्री लेकर कालेज से वापस आ जाते हैं पहले तो मां बाप कि सारी जमा पूंजी प्राइवेट स्कूलों में खर्च हो जाती है यह सोचकर मन को तसल्ली कर लेते हैं कि औलाद का जीवन अच्छे से निकल जाएगा पर जब कहीं रोजगार नहीं मिलता तब सारा परिवार चिंता में रहता है फिर मुस्कुरा कर कहा था भाई इसमें मेहरबानी वाली बात कहां से आ गई इंसान ही इंसान के काम आता है ।
मुक्ति नाथ:- सर आपको तो मालूम ही है कि महामारी में मेरे माता पिता स्वर्गीय हों गए हैं  बहुत लाड़ प्यार से पाला पोसा था मुझे बिल्कुल आप  जैसे हीं थें में आपमें अपने पिता कि छवि देख रहा हूं भावनाओं में वह गए थें मुक्ति नाथ ।
मिसेज मुक्ति नाथ  :- हां सर मेरे सास ससुर बहुत अच्छे थें मुझे बेटी जैसे रखते थे हमारा परिवार वहुत खुशहाल था पर कलमुंही महामारी ने सब कुछ छीन लिया था सरला के आंख से अश्रु धारा वह निकलीं थीं ।
आलोक नाथ  :- अरे अरे यह क्या आप लोग तो भावुक हो गए हैं उनके जाने के बाद में जो आ गया हूं  तुम्हारे पिताजी जैसे ही हूं । भाई मुक्ति आज खुशी का समय है लम्बे समय बाद तुम्हें नोकरी जो मिलीं हैं चलिए आज इंज्वॉय करते हैं फिर बटुआ में से कुछ रूपए निकाल कर आज कि पार्टी मेरी और से जाइए देशी चिकन , और  अच्छी बांड कि शराब कि बोतल ले आईए ।
मुक्ति नाथ :-  पर सर मैं शराब नहीं पीता पत्नी कि और देख कर कहां था ।
आलोक नाथ  :- अरे भाई कौन से युग में हों यह इक्कसवीं सदी चल रही है इंसान मंगल ग्रह पर बस्ती बसाने चला है  और आप अभी .....भी धरती पर मिट्टी के घरौंदे बनाए जा रहे हों आज कल के युवा तो कालेज लाइफ में ही शराब, सिगरेट  श...का स्वाद ले लेते हैं अपनी हीं बात पर मुस्कुरा दिए थे आलोक नाथ फिर . डाक्टरों के अनुसार कम मात्रा में एल्कोहल का इस्तेमाल करने से दिल से लगाकर बहुत सारी बीमारी दूर होती है , तनाव दूर होता है थकावट दूर होती है नींद अच्छी आती है ।
मुक्ति नाथ धर्म संकट में फंसा हुआ था वार वार सरला कि और देख रहा था सरला ने आंखों आंखों में ही सहमति दे दी थी ।

किचन से भूनें हुए चिकन कि भीनी भीनी खुशबू डाइंग रूम तक आ रही थी सरला कभी बर्फ लाकर देती थी तब कभी सलाद कभी ठंडी पानी कि बोतल तब कभी भुना हुआ चिकन   दोनों हीं पैग पर पैग गटक पी रहे थें  उनके दिमाग पर नशा हावी हो रहा था  बीच बीच में आलोक नाथ मैक्सी के अन्दर के यौवन को पाने के मंसूबे बांध रहा था  उसने चतुर शिकारी जैसा जाल बिछाया था जिसमें पति पत्नी धीरे धीरे उलझ रहे थे ।
अगले दिन ज्वायन करने हेतु मेल आ गया था होम टाउन से पांच सौ किलोमीटर दूर फारेस्ट एरिया से नेशनल हाईवे सड़क का निर्माण कार्य चल रहा था  उस जगह पर ज्वायन करना था पति पत्नी ने घर से इतना दूर जाने पर गहन चिंतन मनन किया था श्री मती मुक्ति नाथ मना कर रही थी तब मुक्ति नाथ ने समझाया था कि देखो बाजार कि हालात ख़राब है हजारों इंजीनियर नौकरी के लिए सारे दिन भटकते हैं जूतें चप्पल घीस जातें हैं जैसे तैसे हमें आलोक चाचा ने काम पर लगाया हैं मेरे विचार से जाना चाहिए । फिर जैसा तुम कहो ?
पति कि बात पर सरला कि आंखों के सामने अपनी आर्थिक स्थिति  दिखाई दे थी न चाहते हुए भी हां कहना पड़ा था ।

 मुक्ति नाथ के घर से बाहर जाने के साथ ही आलोक नाथ का व्यवहार बदल गया था अब वह कभी भी बेरोकटोक घर के किसी भी कोने में पहुंच जाता था कभी बालक को खिलाने के बहाने से तब कभी किचन में रखें फ्रिज में से पानी कि बोतल निकालने के साथ चूंकि मुन्ना उनसे घुल मिल गया था वह भी उनकी आहट पाते ही रोने लगता था जिसे बे लपककर गोद में उठा कर मेरा मुन्ना मेरा बेटा मेरा राजकुमार  रो रहा हैं ......

एक दो बार तो जब मिसेज मुक्ति नाथ अपने कपड़े चेंज कर रहीं थीं तब भी वह यौवन के अथाह सागर को देखने के लिए पहुंच गया था हालांकि उसे सख्त लहजे में डाट डपटते हुए कहा था खबरदार आप को अन्दर दरवाजे पर दस्तक दे कर आना चाहिए था  प्रकृति ने कुछ औरतों को पुरूष कि नजर पहचान करनी कि अद्भुत शक्ति दी है वे पहचान रहीं थीं कि इसके मन में चोर है तभी तो उन्होंने मुक्ति नाथ से शिकायत कि थी जवाव में कहा गया था देखो बे हमारे पिता समान है तुम्हारे मन में वहम बैठ गया हैं वाहर निकाल कर निश्चिंत रहो फिर अगर मैं उनसे इस संबंध में बात करूंगा तब मेरे ख्याल से ठीक नहीं होगा चूंकि नोकरी उनके ही सिफारिश से मिलीं हैं हमें एहसान फरामोश समझेंगे फिर भी तुम दूरी बना कर रहो जल्दी ही तुम्हें अपने पास बुला लूंगा । फिर फोन कट हों गया था ।

पति का आलोक नाथ के प्रति अथाह विश्वास पर सरला ने भी अपनी मन कि धारणा बदल ली थी वह भी लापरवाह हो गई थी एक दिन सुबह सुबह जैसे ही वह आलोक नाथ को बेडरूम में बैड टी लेकर पहुंची थीं हालांकि दरवाजा बंद था तब

 उसने दस्तक दी थी पर अन्दर से कोई भी जवाब नहीं दिया गया था उसने सोचा था हों सकता है कि बाथरूम में फ्रेश हो रहें हों टेबल पर रख दूंगी यह सोचकर वो अन्दर चली गई थी पर शर्म से पानी पानी हो गई थी आलोक नाथ नि..... वस्त्र होकर सीधे खराटे भर रहे थे। उनका तना हुआ कठोर गठीला बदन देख कर चौंक उठी थी जल्दी बाजी हड़बड़ा कर चाय का मग फर्श  पर गिर कर चूर चूर हो गया था उसके टूटने कि आवाज से झटके से आलोक नाथ कि नींद खुल गई थी जल्दी ही उन्होंने कम्बल अपने उपर खींच लिया था उधर सरला उल्टे पांव बैडरूम से वापस लौट गयी थीं । कुछ समय बाद आलोक नाथ लोवर टी शर्ट देह पर डाल कर सरला के पास पहुंच गया था 

आलोक नाथ:-  माफ कीजियेगा जो कुंडी लगाना भूल गया था दरअसल ड्रिंक ज्यादा हों गई थी इसलिए भूल गया था ।

मिसेज मुक्ति नाथ:- फिर से चाय बनाने लगी थी व खामोश थीं। आलोक नाथ :- भाई गलती आपकी हैं आपको नहीं आना चाहिए था मैं दुबारा से माफी मांग रहा हूं ।

मिसेज मुक्ति नाथ:-  छी छी  आप को शर्म नहीं आती ऐसे सोने में ??

 आलोक नाथ  :-  भाई इसमें शर्म काहे कि पश्चिमी देशों में देह के वस्त्र त्याग कर नींद कि देवी के आगोश में समां जातें हैं उन्होंने तर्क दिया था।

मिसेज मुक्ति नाथ बनावटी गुस्से से बोली थी हम विदेश में नहीं अपने देश में हूं खैर गलती हमारी भी हैं मुझे आप के कमरे में नहीं जाना चाहिए था चलिए चाय पीजिए में नाश्ता ,लंच बॉक्स तैयार करतीं हूं क्योंकि मुन्ना जागने वाला है ।

 कहते हैं कि विज्ञान ने मानसिक तनाव कम करने व अच्छी नींद हेतु  अनेकों बार शोध किया है उनके  अनुसार निर्वस्त्र होकर लेटने में अच्छी नींद व तनाव कम होता है शायद यह सही भी है कि पृथ्वी पर अनेकों धर्म को मानने वाले अनुयाई रहते हैं धर्मों में तो साधु सन्यासी हमेशा के लिए अपने वस्त्रों का त्याग कर देते व कठिन साधना करके ईश्वर के पास पहुंच जाते हैं कारण यह है की मन कि भावना कंट्रोल कर लेते हैं ब्रह्मचर्य व्रत का आजीवन पालन करते हैं पर  गृहस्थ आश्रम में यह संभव नहीं है ।

खैर पाप का हवन कुंड तैयार हो रहा था मिसेज मुक्ति नाथ के मनमस्तिष्क में बार बार सुबह का दृश्य दिखाई दे रहा था मन में नाना प्रकार के ख्याल आ रहे थे कभी कभी मन हीं मन कहती तू बहक रहीं हैं सरला सम्हाल अपने आप को तेरा देवता जैसा सीधा साधा पति हैं जो तुझे बहुत प्यार करता हैं तेरा सम्मान करता हैं भला जब उसे मालूम चलेगा तब बेचारे पर क्या गुजरेगी वह अन्दर से टूट जाएगा नहीं नहीं तूं ऐसा नहीं कर सकतीं ....... तुझे अपनी मद भरी भावनाओं को कंट्रोल करना पड़ेगा ।

दफ्तर से वापस आने के साथ आलोक नाथ बाजार से मुन्ना के लिए ढेरों खिलोने कपड़े सरला के लिए नाईट गाऊन,सूट, साड़ी या के साथ ,फल , और सब्जियां के साथ ताजी मछली लेकर आए थे

मिसेज मुक्ति नाथ :- आप यह सब क्यों लाएं हों  मैंने तो नहीं कहां था ।

आलोक नाथ:-  सरला तुम्हरा पेइंग गेस्ट हूं रोज रोज गर्म गर्म खाना खाता हूं  वह बात अलग है कि में भुगतान देता हूं पर मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है ।बस अपना फर्ज पूरा कर रहा हूं और हां अगर कभी लगें तो में इन सब का पैसा किराया मे कटौती कर आपको दे दूंगा ।

मिसेज मुक्ति नाथ :-  मुस्कुरा कर कहा था बातें करना तों कोई आप से सीखें । पाप का हवन कुंड तैयार हो रहा था अब आहुति कि तैयारी हों रहीं थीं ।

बाहर मौसम खराब हो रहा था मेघ गर्जन कर रहे थे कही कहीं दूर बिजली चमक रही थी जिसका प्रकाश खिड़कियां के पर्दों  में से आ रहा था । हालांकि विन  मौसम बारिश हो रहीं थीं  ऐसे ही रंगीन मौसम में आलोक नाथ पैग पर पैग गटक रहें थें मन में उथल पुथल चल रही थी शायद किसी धर्म संकट में फंसे हुए थे या गहन चिंतन मनन कर रहे थे एकाएक तेज बिजली के साथ मेघ गर्ज उठें थे उसी के साथ लाइट बंद हो गई थी चारों ओर घुप अंधेरा हो गया था तेज बिजली गर्जन से मुन्ना जाग कर रोने लगा था सरला ने मोबाइल फोन कि बैटरी जला ली थी फिर मुन्ना को लेकर आलोक नाथ के पास पहुंच कर बोली थी जरा मुन्ना को सम्हाल लेना मछली तों तैयार हैं बस रोटीयां पकाना है ।

आलोक नाथ ने मुन्ना को गोद में ले लिया था वे उसे थपकियां दे रहे थे व लोरी सुना रहे थे मुन्ना मोमबत्ती कि रोशनी में उनका चेहरा देख रहा था फिर लोरी सुनते-सुनते सो गया था ।

सरला खाना कि थाली लेकर आई थी जिसे टेबल पर रख दिया था वह जैसे ही मुन्ना को लेने के लिए पलंग के पास पहुंच  थीं तभी  सरला की कमर में हाथ डालकर  अपनी और खींचा था । प्रति उत्तर में सरला छोड़िए छोड़िए देखो आप मेरे पिता समान हों आप यह क्या कर रहे हों आप शराब में मदहोश हो रहे हों  मेरे पति आप का बहुत सम्मान करते हैं यह गलत है विश्वास घात है ।

आलोक नाथ:- कुछ भी ग़लत नहीं है जमाना बदल गया है हम दोनों ही वयस्क है आज कल तो सरकार ने भी लिव इन रिलेशनशिप कानून को मंजूरी दे दी है  फिर यहां कोन देखने वाला यह बात हमारे तुम्हारे बीच में ही रहेंगी समझी ।

मिसेज मुक्ति नाथ :- हाथ झटकते हुए कहा था खबरदार अपनी सीमा में रहिएगा  नीच इंसान हों आप अभी में मुक्ति को फोन करती हूं ।

आलोक नाथ:- जल्दी किजिए पर यह मत भूलना कि मेरी सिफारिश से ही उसे नोकरी मिलीं थीं  समझी उसकी धमकी पर वह विचार मग्न हो गई थी घर के आर्थिक हालात बिगड़ते दिख रहे थे । आलोक नाथ ने फिर से अपनी और खींच कर कहां था मेरी बात मान लेने से ही भलाई है  समझी मजे लीजिए और दीजिए तूं तों छोरी सुन्दर है जवान हैं पोस्ट ग्रेजुएट हैं  तेरे पास यौवन का अथाह सागर है मुझे भी तैरने दीजिए कसम से । फिर मैं तुम्हें जबरजस्त तरीके से हासिल नहीं करना चाहता तुम्हारी अश्मिता से खिलवाड़ नहीं करना चाहता । न ही में उन पुरुषों में में हूं जो भी पुरुष किसी महिला के साथ उसकी मर्जी के बिना संबंध बनाते हैं वह बलात्कार कहलाता है रही बात तेरे पति कि नौकरी लगाने की तब मैंने उस पर कोई एहसान नहीं किया है उसकी काबिलियत पर उसे प्रोजेक्ट मैनेजर पद कंपनी ने दिया हैं किसी भी प्रोजेक्ट का प्रोजेक्ट मैनेजर कंपनी कि रीढ़ कि हड्डी होता  है उसकी परफार्मेंस से ही कंपनियों को मुनाफा होता है अथवा नुकसान जाइए ठंडे दिमाग से विचार किजिए अगर इच्छा हो तब आ जाना कुंडी खुली मिलेंगी ।

मिसेज मुक्ति नाथ ने हर पहलू पर विचार किया था उसका अंतर्मन सावधान कर रहा था पर अन्दर बैठा शैतान उकसाने लगा था व वार वार तर्क पर तर्क दे रहा था कि आखिर इसमें बुरा क्या है पश्चिम देशों में सेक्स या पर पुरूष से समागम उसकि मर्जी पर बुरा नहीं माना जाता कहते हैं संभोग से ही समाधी मिलती है दो पल कि आनन्द अनुभूति से परमानंद प्राप्त होता है फिर पति भी लम्बे समय से दूर हैं समागम का मन होता है नींद गायब हो जाती है  जा सरला कुंडी खुली हुई है ।

मुन्ना एक और पलंग पर सो रहा था वहीं पलंग पर दो वयस्कों के बीच काम कला कि प्रतियोगिता आयोजित हों रही थी खजुराहो के मंदिरों कि पाषाण मुरती के सभी प्रकार के दृशय  दिखाई दे रहे थे अब सरला शर्म हया को त्यागकर पलंग पर खुलकर कुश्ती लड़ रही थी पलंग से चर चर कि आवाज आ रही थी वातावरण में गर्म सांसें , कामुक चित्कार सुनाई दे रही थी ।और और और तेज हा हा ऐसे ही .....  बस बस छोड़िए पर आलोक नाथ तो डुबकी पर डुबकी लगा रहे थे फिर लम्बी लम्बी सांसें भरकर ढह गए थे तृप्ति से भरा माथे पर चुंबन लिया था मिसेज मुक्ति एक हाथ से छाती के बालों पर हाथ फेर रहीं थीं वहीं दूसरा हाथ कमर के नीचे था इतना लम्बा मोटा मांस का टुकड़ा 

चीख निकल गई थी   तबीयत खुश कर दीं इतना मजा तो मेरे पति ने कभी नहीं दिया  एक बार फिर से .... अब अलग तरीके से जैसे डोंगी...

पाप के हवन कुंड में नित्य प्रति दिन या रात्रि में आहुतियां डाली जा रही थी उधर मुक्ति नाथ अपने काम पर ध्यान दें रहा था दिन में दो-तीन बार विडियो कोल पर पत्नी से बात करता मुन्ना कि किलकारियां सुन कर खुश हों जाता था हालांकि उसने एक हफ्ते कि छुट्टी कि एप्लिकेशन लगाई थी जो मंजूर हो गई थी एकाएक घर आ कर वह सरला को सरप्राइज़ देना चाहता था तभी तो अर्ध रात्रि में पहुंच गया था गेट खोलने हेतु दो तीन बार फोन लगाया था उसने सोचा था कि शायद नींद में होंगी बाहर का गेट लांघ कर मुख्य दरवाजे पर पहुंचा था चूंकि आलोक नाथ का बेडरूम आगे ही था खिड़कियां मे से रंगीन रोशनी वाहर आ रही थी साथ ही कुछ मिली जुली आवाज सुनाई दे रही थी कोतूहल बस खिड़की के पास पहुंच कर अन्दर झांकने लगा था पंखे कि हवा से पर्दे झूल रहे थे यह क्या सरला  निर्वस्त्र होकर मुख.... कर रही थी एक ही झटकें से पांवों के नीचे से धरती खिसक गई थी इतना बड़ा धोखा जिस आदमी में अपने पिता कि छवि देखता था वह इतना नीच निकलेगा शायद उसकी पूरी गलती नहीं क्यों कि एक हाथ से ताली नहीं बजती कुछ देर बाद फिर से अन्दर का दृश्य देखा था अब वह  मोबाइल फोन से विडियो बना रहा था उसकि अर्धांगिनी डोगी स्टाइल में सिसकियां ले रहीं थीं फिर और तेज और तेज हां हा ऐसे ही वहुत मजा आ रहा है कहें जा रही थी  । मुक्ति नाथ यह दृश्य देखकर जैसे आया था उल्टा पैर वापस चला गया था ।

अगले ही दिन अदालत से तलाक लेने का नोटिस आया था व सरला के मोबाइल फोन पर मुक्ति नाथ ने वह विडीयो भेजा था जिसे देखकर सरला बेहोश हो कर गिर गई थी आंखों से अविरल अश्रु धारा वह रहीं थीं मुक्ति नाथ को बार बार फोन लगा रहीं थीं पर मुक्ति नाथ कोल अटेंड नहीं कर रहे थे ।

शाम को आलोक नाथ दफ्तर से वापस आए थे सरला ने सारा बकाया बताया था साथ ही उससे शादी करने का दवाब बनाया था जिसे उन्होंने यो कहकर ठुकरा दिया था देखो मेरे बीबी बच्चे हैं मैं उन्हें नहीं त्याग सकता पर हा तुम पैसा बोलों कितना चाहिए ।

मिसेज मुक्ति नाथ ने चिल्ला कर कहां था में सैक्स वर्कर नहीं थूकती हूं तेरे पर ओर तेरे पैसा पर चल निकल जा मेरे घर से हाय मेरा क्या होगा मेरे बच्चे का क्या होगा गलती मेरी ही हैं जो पाप का हवन कुंड बना कर सब कुछ स्वाह कर दिया है 

एक दिन पता चला था कि मुक्ति नाथ ने घर बैच दिया था नये मकान मालिक ने उसे घर से बाहर कर दिया था अब वह वापस मां बाप के पास आ गई थी या यो कहें उनके ही सहारे पर थी अदालत में तलाक का अलग मुकदमा चल रहा था परेशान थीं कमजोर हो गई थी मुन्ना के भविष्य के प्रति चिंतित थी सहसा मुक्ति नाथ से अदालत में आमने-सामने मिलन हों गया था उसे देख कर रोने लगी थी मुन्ना कभी मां को रोता देखता तब कभी बाप कि और जैसे पूछ  रहा था कि मेरा क्या कसूर था ।

मुक्ति नाथ को दया आ गई थी धीरे से कहा था सरला चलिए नया घर चलते हैं कार का दरवाजा खोलकर  पगली गलती तो इंसान से ही होती है कोई बात नहीं मैं सब कुछ भूल गया हू मुन्ना कि खातिर  पाप के हवन कुंड से मुक्ति नाथ ने सरला को मुक्ति दे दी थी ।।।






 

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Mahendra Singh s/o shree Babu Singh Kushwaha gram Panchayat chouka DIST chhatarpur m.p India

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