काला गुलाब भाग तीन


 ओ मेरे आत्मिय गुलाब 

आपकों संसार के सामने 
रखने का फैसला कर चुका हूं 
गुलाब तो सभी ने देखा है 
 के 
गुलाबों के बीच 
शान से आन से  सम्मान 
से खड़े हो 
मानवता के प्रति एसा 
कह जाओगे 
शायद हमें भी 
मानव के बीच 
कहीं भी हंसाओ गे ।

ओ काले ग़ुलाब तू सात समंदर पार 
करता राजधानी छोड़ता 
महानगर व नगर कि सीमाएं 
लांघता 
अपने सुंदर रूप को छिपाता 
चाहे जहां हंसता 
इठलाता गांव में 
दीन हीन के झोंपड़े में 
सामने धूल धुसरित 
आंगन में   विकसित हो 
खिला नजर आता ।

ओ काले ग़ुलाब 
तुझे भी 
कलाकारों कि आराध्या
सरस्वती मां के 
चरणों पर चढ़ने का ।
समर्पित होने का सौभाग्य मिला है
इससे तू रोज़ 
उनकि सेवा को 
तैयार रहने का 
उनकि सेवा को तत्पर रहने का 
उनकि चरणों की शोभा बनने 
का इशारा सा करता 
नजर आता है ।

ओ सांवले सलोने गुलाब 
जिस दिन जिस समय 
तू पहली बार 
मेरी नजरों के 
सामने आया तब रोमांच 
हो अनजाने आंनद से भर गया 
और उसी दिन से
मधुमय स्वप्न में खोया 
घर गया क्यों कि 
तू तो उसी समय से रहस्यमय 
नजर आया है ।

ओ सांवले सलोने गुलाब 
अनेकों दिन तेरी सुंदरता पर 
तेरी अलहढता पर 
तेरी मोन खोजती 
निगाहों पर 
जाने किस किस के बीच 
वहस हुई 
पर कोई सार नहीं निकला
क्यों कि तेरी नजरों के 
सामने से गुजरने वाले 
सभी को हराकर 
तू मुझे अपने रंग में रंगा 
नजर आता है ।

ओ सांवले सलोने गुलाब 
तेरा नाम मृदु मधुमय 
जो लेता 
जो याद करता 
जो तुझे याद करता 
जो तुझे आ 
मेरी नजरों से देखता 
वह देखता रह जाता 
क्यों कि तू 
सुन्दरता कि परिभाषा 
परिभाषित करता 
नजर आता है ।

ओ सांवले सलोने 
 गुलाब क्या नहीं मिला तुझे
जवाब नहीं मिला होगा
ना मिलेगा
क्योंकि इस जग में
तू अपने आप में अनूठा है
प्रकृति के बीच 
चाहे शांती वन
चाहे हो उपवन 
जहां तू वहां में 
तेरा रूप तेरा यौवन 
तेरा वैभव 
तेरी मुस्कान 
तेरा सम्मान 
मेरे हृदय में नित 
नूतन उठता नजर आता है ।

ओ सांवले सलोने गुलाब
जरा सुन 
क्या कह रहा है मेरा 
 मन जो कहता है 
बस वहीं चाहता है 
तू कांटों के बीच लगा 
मुस्कुराता है 
जग को नित नूतन 
संघर्ष का स्वागत करने को 
फिर संघर्ष को 
उचित समय पर 
उचित तरीके से 
जीतने का तू संदेश देता 
नजर आता है ।

ओ काले ग़ुलाब 
तू तो शांत हो 
चुपचाप सारे जग को 
आता जाता 
देखा करता 
जन्म में मरण में 
जो तुझसे चाहता 
तू तो उन्हीं के साथ 
चल देता 
सारे जहां से कह देता 
मेरे जैसे अपनी डाली से 
टूटकर अलग हो कर आयो 
यह कहकर तूं 
न जाने कितना खुश नजर आता है ।

ओ काले गुलाब 
तू समझ गया 
ये जग कि राहें कहीं पथरीली हैं 
कहीं कंटीली हैं 
पर मुश्किल नहीं है 
क्यों कि तू अनादि काल से 
नित नूतन 
जन्म लेता मौन का 
आलिंगन करता 
छड भगुरता का 
बोध नजर आता है ।

ओ काले ग़ुलाब 
तेरा अन्तर 
चाहे जब करता 
चीत्कार करता 
सारी मानवता को 
पुकारता कहता 
क्यों भेद करके 
जीती है क्यों 
संदेहों में पल पल 
आंसू बहाती है 
क्यों अपने आप को 
अपनी स्थिति को कोसती हैं ।
तू छाती ठोक कहता 
में लाल नहीं 
रंगीला नहीं 
केवल काला हूं 
पर उसके पति समर्पित हूं 
जिसने फूल बनने का अवसर 
दिया और यही 
इसारा तू रोज़ देता 
नजर आता है ।

ओ काले ग़ुलाब 
तेरी कुछ शिकायतें हैं 
जिन्हें तूं कभी 
किसी से नहीं कहता 
चाहे जब 
सुबह शाम 
लोगों को समान 
आवाज़ नहीं लगाता 
किसी से झगड़
 नहीं करता 
तूं तो अपने आप में 
संतोषी परम सुखी 
बना चाहे जब चाहे जहां खिला नजर आता ।

ओ काले ग़ुलाब 
तेरी आत्मा काली नहीं है 
तेरा दिल धुंधला नहीं है 
तूं तो सारी मानवता के 
सामने मुस्कुराता गाता 
इठलाता चाहे जिस के सुख 
दुःख में शामिल हों 
मिटता नजर आता है ।

ओ काले ग़ुलाब 
तूं चाहें जिसके साथ 
अकेला चल देता 
चाहे जिस के घर में 
तू रह लेता 
चाहे जिस मंजिल पर 
तूं मुस्कुरा लेता 
तूं तो अपनी कालिख को 
अपनी शान को 
अपनी आन को 
चाहे जहां दांव पर 
लगा नजर आता है ।

ओ काले ग़ुलाब 
तुम हिन्दू हो या मुसलमान 
जातियां से मतलब नहीं है निभाता 
तू तो इंसानियत का 
चहेता हैं 
तेरी भावनाएं 
तेरी विचार धाराएं 
मौन बनी 
गंगा सी निर्मल धारा 
अंतर में वहता 
संतापो को भी हरता 
नजर आता है ।

ओ काले ग़ुलाब 
तूं तो 
भटके हुए , हताश
निरास राहगीरों को 
चलने का पाठ पढ़ाता 
कालो को कलूटो को 
गोरों को 
लूले को अपंग को 
नित अल्हड़ मुस्कान विखेर कर
आगे बढ़ हार कर भी 
चलता चल 
मंत्र देता नजर आता है ।

ओ काले ग़ुलाब 
तुम दुनिया में 
निराले हो 
क्यों कि ए दुनिया 
अपनी कालिख से 
अन्तर में छिपा कर 
अपनों को छलती हैं 
बाहर से कुछ 
और ही दिखाई देती है 
पर तूं तो भीतर वाहर एक
सा बना 
सांवले सलोने 
मधुसूदन के 
मनभावन रूप 
कि एक झलक 
दिखता नजर आता है ।

मेरे सांवले सलोने गुलाब 
तेरे लिए ही भरा 
यह भावनाओं का तालाब 
तेरे लिए उठ रहा 
तरंगित हो रहा 
मन से 
तन से 
आत्मा में 
स्नेह का चाह का 
दुलार का एक संगीत 
जिसकि धुन में 
तू मसत हों 
अपने आप को भूलता 
नजर आता है ।

ओ सांवले सलोने गुलाब 
तुम्हें समय नहीं बांधता 
तुम संध्या के साथ 
उषा के साथ 
तुम भरी दोपहरी के
साथ हर पल के साथ 
अल्हड़ बने 
मुस्काते तब प्रतीत होता कि 
तू इस जग को 
तटस्थ वर्तमान में 
जीने का 
पावन संदेश देता है।

ओ मेरे काले ग़ुलाब 
तू जाने कितना रहस्यमय हैं 
समझ में नहीं आता 
तू कभी नेता अभिनेता 
किसी स्वप्न सुंदरी अप्सराओं 
के गले में पड़
 नजर आता 
फिर कभी परमेश्वर के चरणों में 
मुरझाए हुए 
नजर आता 
तूं तो जानें रोज 
कितने मंजिल पार कर 
मुस्कुराता नजर आता है ।

ओ मेरे काले ग़ुलाब 
तुम्हीं मेरे दोस्त हों 
तभी चाहे जब 
अपनी विश्वास भरी 
पोरूस भरी मुस्कान दे 
इसारा कर दूसरे 
कि खातिर 
दूसरों के भले के लिए 
बलिदान होने का 
जिसे सुन रोम रोम में 
रोमांच हो उठें 
तब तू अगाध विश्वास दे 
आत्मा अमर है ऐसा 
संदेश देता नजर आता है ।

ओ मेरे प्यारे काले ग़ुलाब 
तू तो अद्भुत है अद्भुत 
अपने अतीत 
अपने भविष्य को भूल 
वर्तमान में जीवत रह 
मुस्कुराता है 
और यही मुस्कुराना तेरी 
मौत तक 
तेरे साथ जाता है 
तब लगता तू परमहंस 
कि याद कराता 
नजर आता है ।

ओ मेरे काले ग़ुलाब 
तू चाहे जिस जीवन में 
अपना स्थान बना लेता 
पर तू अपनी तरफ से 
नहीं कहता 
चाहत भरी मुस्कान से 
अजीब अदा से 
मुस्कुराता अजीब बादे करता 
चाहे जब चाहे जहां 
नजर आता है ।

ओ मेरे काले गुलाब 
तू बीरो को तू अमीरों को 
तूं गरीबों को 
तू मूर्ख को 
विद्वान को 
सभी को प्यारा लगता 
तेरे को पा  परमेश्वर 
मुस्कुराता है 
तब तू उनके श्रीं चरणों में 
गर्व से पड़
 इठलाता हैं ।

ओ मेरे काले ग़ुलाब 
तुझे खानदान कि 
परम पाए 
परिभाषा तक मालूम नहीं है
क्यों कि तेरा बीज से कोई 
वास्ता नहीं 
तेरी साखाये 
तेरी कलमें बन जाती 
तेरे कुल का नाम हमेशा 
लहराता 
तब तू तेरा कुल विधाता को 
चैलेंज 
देता नजर आता है ।

ओ काले ग़ुलाब 
में जानता हूं 
कि बिना लाएं तू 
मेरे पास नहीं आ सकता 
क्यों कि तेरे पोंधे को 
परमात्मा ने ऐसी शक्ति नहीं दी 
कि तू चलकर मेरे पास 
आ जाएं 
यदि तू चलकर 
आता होता 
तो जग का 
प्रथम आश्चर्य तूं होता 
इस कल्पना को करा
तू बुद्धी
 को नचाता 
नजर आता है ।।।।


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Mahendra Singh s/o shree Babu Singh Kushwaha gram Panchayat chouka DIST chhatarpur m.p India

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