ओ मेरे आत्मिय गुलाब
आज तुम्हरा माली नजर
आया था हमें देखते ही मुस्कुराता तेरा रखवाला
मुझे बहुत बहुत भाया
कि तेरी कलम मुझे देगा
उसने था बताया
आज नहीं मौसम
पर विन कहें
विन वोलै
तुम्हारे घर लाएगा
या तू अपने आप मेरे
घर लाएगा
या तू अपने आप मेरे साथ आएगा
बता तू मुझे
कब तक ऊलझाएगा ।
ओ मेरे आत्मिय गुलाब
तुम्हारे अंदर का पराग
केन्द्र गहरा नजर आता है
एक के बाद दूसरा
दूसरे के बाद तीसरा
तीसरे के बाद चोथा
रहस्य नजर आता है
उसकि रचना देख
उसी का रूप तुझ में देख
मन ठगा सा रह जाता है
जब तू जग से निराला
लाल हो या काला
विश्व को नव उत्सव नव संदेश
देता नजर आता है ।
ओ मेरे आत्मिय गुलाब
जब तुम शुभकामनाएं वन
मेरे मित्र कि वेटी कि शादी में
निमंत्रण पत्र के अन्दर आये
मुझे देख मुस्कराए कुछ सकुचाए
वोले क्या दान दोगे तुम
क्या संदेश देना चाहेंगे
उसकि सशुराल वाले को
या फिर उसके पति को
कि दहेज लेना और देना
दोनों पाप है कानूनी अपराध है
समाज के लिए अभिशाप हैं
इस कु प़था से दूर रहो
तभी होगा परिवार का भला
समाज का भला
न होगा कर्ज
न वनोगे घनचक्कर
रहोगे सुखी सुखी सदा सदा
फिर दूसरा मूल मंत्र
हम दो हमारा एक
जो जगत को देगा संदेश
कि देखो हमारे पिताजी माताजी ने
परिवार नियोजन का ख्याल रखा था
मुझे अकेला जना था
अच्छा अच्छा स्कूल कालेज में
पढ़ाया था
फिर बैज्ञानिक वनाया था ।
ओ मेरे आत्मिय गुलाब
जब अचानक राह में शीर्ष आसन
लगाकर में ध्यान में मग्न मिलें थें
मर्यादा को परम्परा को न मान
जब तुम्हें उठाया था
फिर गले लगाया था
तब तुम खिल उठे थें
मे समझ गया था
कि तुम मेरे लिए ही ध्यान
मग्न हो बीच राह में
डाल से अलग हो कर
जाग रहै
न जाने कितने दामन से
अलग हों मुझे
पुकार रहें थे
तुम सहीद हो सकतें थे
पर मौत से तुम्हारा
क्या नाता
तूं तो प़ेम का प़तीक बना
किसी अल्हड़ सुंदरी या
अप्सरा के बालों के जूडे में
सजा नजर आता है
या फिर किसी नेता अभिनेता देवता
के गले में खिलखिलाता
मुस्कुराता कुछ कहता
कुछ गीत गाता सा
नजर आता है ।
ओ मेरे आत्मिय गुलाब
तुम्हें देख बस मन यही चाहा
करता था
तेरे पास रह कर मुस्कुराता करता
तेरी मुस्कान में खुशी के गीत गाया
करता आवारा अनाड़ी वन
में इठलाया करता
तेरी सुगंध में मधुरस पा
मृदुलता वन कर तू
विखर विखर छाया करता ।
ओ मेरे आत्मिय गुलाब
मेरे हाथ में था तेरा गुलाब
खिलखिलाता हुआ कर रहा था आदाव
सब मुझे नहीं
गुलाब को देख रह जातें
बच्चे पास आ गुलाब देख
मेरी आंखों से अपनीअपनी आंखें मिलाते
न जाने कितने मूल प़शन पत्र हल
करने को दे जाते
बच्चे पास आ गुलाब देख
मेरी आंखों से अपनी आंखें मिलाते
फिर दूर जा कर मेरी नादानी
पर खिलखिलाते
फिर हम गुलाब को अपनी अंगुली पर नचाते
तब जानें कितने प़शनो का
उत्तर बच्चे सहज ही पा जाते ।
हम और गुलाब
अपने अतीत से आ
वर्तमान में मन्द मन्द मुस्कुराते ।
तेरे नगर में गुलाब का फूल आया है
तेरी प्रसन्नता कि खबर खूशबू में
भर लाया हैं
तेरी नाजों अदा का नया अंदाज लाया हैं
नीले सुनहरे कांटों से भरा उपर बना मुस्कुराता हैं
तेरा ही गीत गा इसने मुझे दुलारा हैं
मृदुलता बन ये पतझड़ में बहार लाया हैं ।
डाली गुलाब कि उस रोज दुःखी थी
ऊसे पीड़ा रह रह कर उठती
पर मोन थी शांत थीं
भूत वर्तमान और भविष्य को अपने
आगोश में समेट कर बैठी थी
उसने क्या क्या नहीं देखा था
क्या क्या नहीं समझा था
पर समय के समछ नत मस्तिष्क थी
अपने सर को कलम होने कि
वाट जो रहीं थीं दुःखी थी गम में
वेजार थी कि वे फूल
जो भूतकाल में खिले
वर्तमान में नहीं थें
न वह संख्या थीं
न वह मोहक गुलाब धा
जीवन नश्वर है
वह जानती थी
प़ति पल कलम वनने को
तैयार थी ।
फूल ओंठो पर अपनी
पंखुरी लगा बोला चुप रहो
कुछ मत कहो
कुछ मत पूछो
यहीं रूक जायो
यहीं ठहर जायो
मुझे खिलने दो
खिलकर मुरझाने दो
किसी के सर चढ़ जाने दो
तुम केवल देखते रहो
मेरे बाद जो डाली पर कलम
बना खिला
उससे पूछना शायद वह
वर्तमान के ज्यादातर अनुभव
सुना सके उसके लिए
उत्तर सार्थक हो जाएं
एसा कहकर चूंप हो गया
गुलाब का फूल ।
जब कभी दूर से
करीब से
जन्मभूमि से
कर्मभूमि से
काले ग़ुलाब तुमने पुकारा है
कि ललकारा है
अपने आत्मिय रूप रंग से
तुम मोह के बंधनो से
न जाने तुम कितनों को बांधा
मुस्कुराने को
गाने को रिझाने को
आंनद होने को
तुम मेरे काले ग़ुलाब सांवले सलोने, आत्मिय गुलाब
जन्म से लेकर अब शासवता का बोध
कराया है ।।
Tags:
काला गुलाब