में ऐक आधुनिक युग कि नारी हूं
में अबला नहीं सबला कहलाती हूं
मे उड़ाती हूं फाइटर प्लेन और चलातीं हूं
पानी के जहाज !
ट्रेनिंग लेकर थामती हूं हाथों में हथियार
करतीं हूं देश कि सीमाओं पर
दुश्मन का संहार
रखतीं हूं मां भारती कि लाज
क्यों कि मैं ऐक नारी हूं ।
सदियों पहले जन्म लेकर
कहलाती थी अभिशाप
मां को मिलते थे ताने और उलहाने
फल स्वरूप मिलता था तिरस्कार !
फिर भी मे मां कि रहतीं थीं लाडली
पिता कि कहलाती थी लछमी
त्योंहार पर पूजकर पांव
खिलाते था अच्छे अच्छे व्यंजन
यहीं तो दोहरा मापदंड का
समाज
क्यों कि मैं ऐक नारी हूं ।
स्कूल जाना था मुश्किल काम
पढ़ कर क्या करोगी करना
पड़ेगा
रोटी चूल्हा जलाना सीखो रोटी बनाना सीखों
यही आएगा जीवन में काम
क्यों कि मैं ऐक नारी हूं।
नाबालिग में रचते थे अधेड़ से शादी
जो रोज करता था मनमानी फिर बालात्कार
कहीं चढ़ती थी दहेज़ कि वली
कहीं बेच देते थे मां बाप
किसी रहीश को कुछ रूपए में हजार
फिर वह नोंचता रहता था देह
हजारों हजार बार !
आत्म सम्मान का नहीं मिलता था भाव
कोख में बच्चा ठहरता था
करा देते थे आपरेशन क्यों कि मैं
ऐक देह थी विस्तर कि शोभा थी
कयो कि में ऐक नारी थी ।
समय बदला समाज वहीं था विचार बदलें
बदल गया है युग
आज है आधुनिक युग
न मै बोझ हूं न
ही अभिषप्त हूं
मे हू मां बाप कि लाडली
पति कि दुलारी
सास ससुर जी को प्यारी
परिवार के सदस्य देते हैं इज्जत
क्यों कि में एक नारी हूं
पति कि दुलारी हूं !
देश कि बेटी हूं
क्यों कि मैं राष्ट्र के प्रति
जाती हूं सेना मे
देती हूं प्राणों कि आहुति
बैठती हू मंत्री बनकर
विदेश सचिव
चुटकियों में सुलझाइए मसले
भले ही देश के आंतरिक मामले हो
या विदेश कि खाद्य सुरक्षा
या महामारी हो क्यों कि
में एक नारी हूं
जिससे होता है मानव का भला
नही होता कहीं भी बुरा
में मां भारती कि खुबसूरत परी हू
क्यों कि मैं ऐक नारी हूं ।।
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