भादों कि अंधियारी रात में बादल गरजते हुए चमकते हुए धरती पर मोटी मोटी बूंदें बिखेर रहे थे वातावरण में मेंढक झींगुर कि मिलीं जुली आवाजे सुनाई दे रही थी कहीं कहीं दूर रोने जैसी आवाजें सुनाई दे रही थी शायद कोई कुत्ता रो रहा था ऐसे ही समय में जेल कि चारदीवारी के अन्दर कैदी अपनी अपनी बैरकों में नींद के आगोश में समाए हुए थे कुछ तो सपने में अपने आप को जज साहब के सम्मुख उपस्थित होकर बकिलौ के तर्क वितर्क सुन रहे थे कुछ तो अपने आप को अपनी पत्नी या प्रेमिका से प़ेमलाप में मग्न थे कुछ तो जेल से रिहा होकर घर जा रहे थे कुछ तो उस समय को कोश रहे थे जब उन्होंने जाने अंजाने में अपराध किया था उन्हीं कैदियों के बीच में अपने चट्टे पर कैदी नंबर 376 लेटा हुआ था परन्तु उसकी आंखों से नींद कोसों दूर थी वह बेचैनी से करवट बदल रहा था साथ ही सिसक रहा था क्या था वह और अब क्या से क्या हो गया था वह अतीत में खो गया था ।
वह भी एक वर्षांत कि रात्रि थी कार हाइवे पर अंधेरे को चीरती हुई सरपट दौड़ रही थी सहसा उसे रौशनी में एक तरूणी दिखाई दी थी जो शायद बस का इंतजार कर रही थी उसके हाथ में सूटकेस था देह पर महिलाओं वाला रेनकोट था जो उसे वारिस से बचा रहा था उसने कार धीमी कर के कलाई घड़ी पर नज़र डाली थी रात्रि के बारह बज रहे थे ऐसे समय में हाईवे पर एक अकेली लड़की का खड़ा होना समझ से परे था हालांकि बगल में ही ढाबा था जहां पर बहुत सारी यात्री बसें खड़ी हुई थी मुसाफिर चाय नाश्ता कुछ खाना खा रहे थे शायद वह भी इन्हीं बसों में सफर कर रही थी शायद उसे अन्य शहर जाना था उस रुट पर वह बसे नहीं जा रहीं थीं उसने कार उसके पास खड़ी की थी सीसे नीचे कर दिए थे जिससे से वारिस कि बूंद अन्दर जा रही थी ।
क्या आप मुझे लिपट दें सकतें हैं दरअसल में जिस बस में आई थी वह अगले चौराहे से उज्जैन के लिए मुड़ जाएंगी और मुझे इन्दौर जाना हैं उस युवती ने सुरीली आवाज में कहा था ।
जी बिल्कुल ।
उसने पिछली सीट पर अपना सूटकेस रख दिया था साथ ही जल्दी से रेनकोट उतार कर पीछली सीट पर सलीके से रख दिया था फिर वह उसके बगल में बैठ गई थी उसने कार कि अंदर कि लाइट जला दी थी देखा वह एक खूबसूरत अप्सरा जैसी युवती थी गोरी चिट्ठी सुराहीदार गर्दन बढ़े बड़े कजरारे नैन सूतबा नाक पतले पतले गुलाबी अधर मध्यम कद उम्र के हिसाब से भरा हुआ बदन फिर जींस उसके उपर गुलाबी टी शर्ट जो उसकी खूबसूरती को चार चांद लगा रहे थे
आप सीट बैल्ट लगा लिजिएगा उसने कहा था ।
कार डामर कि सड़क पर सरपट दौड़ रही थी बारिश कि मोटी मोटी बूंदें विंड स्क्रीन से टकरा रही थी उसने म्यूजिक सिस्टम चालू कर दिया था धीमी आवाज में लता मंगेशकर जी का दर्द भरा गीत बज रहा था दोनों ही खामोश थे आखिर उसने क्या मैं जान सकता हूं कि आप इन्दौर क्यों जा रही है ।
जी मेरा पी एस सी का एग्जाम हैं हालांकि परशो हैं फिर भी मैं एक दिन जल्दी जा रही हूं कारण सफर कि थकान भी निकल जाएंगी व सीलेबस को रिपीट कर लूंगी ।
अच्छा अच्छा आप का नाम ।
चांदनी आहूजा खनकाती आवाज में कहा था ।
जी मे पुनीत सिंह राजपूत पेशे से आर्किटेक्ट उम्र चोबीस साल तीन महिना चार दिन एक घंटा तीस मिनट पन्द्रह सैकंड।
उसके एक ही सांस में परिचय देने पर वह खिलखिलाकर हस पड़ी थी फिर उसने कहा था मिस्टर पुनीत आप लाजवाब सखतियत के मालिक हों निश्चय ही आप से आकस्मिक मुलाकात यादगार बन जाएंगी ।
दोनों ही घुल मिल गए थे एक दूसरे के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते थे जैसे कि आप कि कोई गर्लफ्रेंड या फिर .... तीन सो किलोमीटर का सफर बातों बातों में ही खत्म हो रहा था इन्दौर शहर में कार प्रवेश कर गयी थी पुनीत ने कहा कि आप को कहां छोड़ूं तब मिस चांदनी ने कहा यह शहर मेरे लिए अनजान हैं आप किसी अच्छे होटल में छोड़ दिजिएगा तब पुनीत ने सकुचाते हुए कहा था देखिए मिस अगर आप चाहें मेरे फ्लेट में रह सकतीं हैं हालांकि मे अकेला रहता हूं ।
मिस चांदनी ने थोड़ी देर विचार किया था फिर हां कह दी थी डामर कि सड़क मार्ग का सफर तय मंज़िल कि जगह अब फ्लेट के बैडरूम तक पहुंच गया था आलीशान बैड पर दो अनजाने एक होने के लिए संघर्षरत थे बाहर अभी भी जोरदार वारिस हो रही थी खिड़की के बाहर नीम के पेड़ कि पत्तियां कांप रही थी और अंदर बैड भी चर चर कर कांप रहा था फर्श पर देह के कपड़े अस्त व्यस्त बिखरे हुए पड़े थें पुनीत के नथुनों में अजीब सी गंध समां रही थी जो मिस चांदनी कि देह से निकल रही थी जिस गंध मे गती थी कशिश थी समर्पण भाव था प्यार था तृप्ति थी जो गंध कुछ पल के लिए परमानंद के पास पहुंच गयी थी।
मिस चांदनी के मोबाइल फोन पर मेल आया था उसके एग्जाम कि तारीख़ एक सप्ताह आगे हो गई थी उसने घर पर पिता से बात कि थी साथ ही कहा था कि वह होटल में ठहरी हुई है जो कि बहुत ही अच्छा है उस होटल का स्टाफ में अधिकांश महिलाएं ही हैं वह हर प्रकार से सुरक्षित है एग्जाम देने के बाद ही वह आएगी ।
एक सप्ताह जो कि उसके जीवन कि दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला था पुनीत जैसे खूबसूरत लड़के का साथ वह कभी भी किसी समय उससे चिपट जाती थी दैहिक सुख अलग अलग अंदाज से ले रहीं थीं उसका मन मस्तिष्क लगातार उर्जा से परिपूर्ण हो रहा था जो उसे पड़ने में याद करने में मददगार हो रहा था फिर वह एग्जाम देकर वापस अपने शहर निकल गई थी ।
पुनीत को वह गंध परेशान कर रही थी उसके नथुनों के रास्ते से शरीर के रोम रोम से बाहर निकल रही थी हर समय शरीर गर्म रहने लगा था देह हमेशा वहीं सुख हासिल करना चाहती थी कुल मिलाकर वह अर्द्ध विक्षिप्त हालत में पहुंच गया था तभी तो वह मिस चांदनी को बार बार फोन लगा कर अपनी दिमागी दशा का बयां कर रहा था विडीयो कालिंग कर कभी रोता कभी हाथ जोड़कर विनती करता कहता चांदनी मैंने तो तुम्हें अपने दिल दिमाग में बसा लिया में तुमसे ब्याह करना चाहता हूं तुम्हारे साथ जन्मों जन्मों तक रहना चाहता हूं पर चांदनी तो निर्मोही बन गई थी हालांकि उसने समझाया था देखो पुनीत हमारे तुम्हारे बीच जो कुछ भी हुआ वह शरीरों कि आवश्यकता है यानी दैहिक प्यास इसका यह मतलब तो नहीं कि हम एक दूसरे को प्यार करते हैं जी नहीं कभी नहीं मुझे अपना कैरियर बनाना है और हां मेरी सगाई हो गई है मेरा मंगेतर तुम से ज्यादा हाट सुन्दर मजबूत देह कद काठी का मालिक है जो एक पुलिस अधिकारी हैं हमारे बीच पति पत्नी जैसे संबंध पिछले तीन साल से चल रहे हैं हम दोनों खुले आजाद ख्यालों के है मुझे विश्वास है कि मैं पी एस सी क्वालीफाई कर आई ए एस अफसर बनूंगी फिर मैं अपने मंगेतर के साथ ब्याह कर लूंगी मुझे तुमसे कोई लेना देना नहीं उसने मोबाइल नम्बर ब्लेक लिस्ट में शामिल कर दिया था ।
शहर का उभरता हुआ आर्किटेक्ट जो अपने हुनर से खूबसूरत बंगलों कि डिजाइन कंप्यूटर आ कागज़ पर कुछ ही समय में तैयार कर देता था वह खूबसूरत युवती के माया जाल में उलझकर तड़प रहा था उसे हर पल हर समय मिस चांदनी कि मनमोहन छबि उसकि कामुक अदाएं , अंदाज , मचलता योवन दिमाग को झकझोर रहा था तभी तो वह शराब का सहारा लेने लगा था धीरे धीरे उसकी शराब उसके उभरते हुए कैरियर के लिए बीच में दीवार बन कर खड़ी हो गई थी बाजार से उसका नाम गायब हो गया था एक दिन वह शराब में मदहोश होकर मिस चांदनी के गांव जा पहुंचा था फिर क्या उसकी बुरी तरह से ... कि गयी थी मिस चांदनी ने मंगेतर के साथ मिलकर नारी देह शील भंग छेड़छाड़ कि रपट पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई थी वह जैल पहुंच गया था जिसे कैदी नंबर तीन सो ७६ के नाम से जाना जाता है ।
समाप्त
यह कहानी आप को कैसी लगी कमेंट कर बताइएगा आपका दोस्त काका.... नमस्कार धन्यवाद