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सूर्य का प्यार चांदनी से कहानी

 बात लगभग लगभग पांच साल पुरानी है ऐक दिन मेरी साइट पर मेरा रोलर आपरेटर जों कि कंपनी से दस दिन कि छुट्टी लेकर गया था छुट्टी से आने के बाद मुझे अपने किराए के घर में चाय के लिए बुलाया चलिए पहले में अपना परिचय दे दूं मेरा नाम प्रेम कुमार हैं में मल्टीनेशनल कंटैकसन कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर कार्यरत हूं चूंकि मैं टीम लीडर हूं ऐसे में टीम के सभी सदस्यों से काम के बाद भी उनसे मेल मिलाप उनके दुख सुख का ख्याल रखना मेरी जुम्मे दारी बनतीं है या यूं कहें कि मेरी ड्यूटी हैं  ठंड का समय था वातावरण में सर्द हवाएं के साथ  हल्की हल्की ओस कि बूंदें भी आ रही थी कुलमिलाकर हड्डियों को हिलाने वाली सर्दी थी ऐसे मौसम में भी साइट पर मेहनत कश मजदूर गर्म कपड़े पहनकर काम कर रहे थे में और मेरे मातहत टेक्निकल उनका सहयोग कर रहे थे तभी सूर्य का फोन आया था सर क्या आप साइट पर हैं  मैंने कहा जी  तब सर को आप मेरे घर आ जाईए  चाय पीते हैं  मैंने कहा सूर्य आप कि छुट्टी तों दस दिन कि थी फिर दो दिन पहले  उसने कहा सर मै अपनी पत्नी को लेने गया था जैसे कि हमारे समाज में शादी के चार...

मानव इतिहास के वह दिन


 घर बंदी के पहली कोरोनावायरस कि लहर को आज भी भूला नहीं पा रहा हूं शायद यह मानव इतिहास का पहला घर जैल था हालांकि हम मानवों ने अपने निजी हितों के लिए जल जंगल जमीन का दोहन किया जमीन के अंदर से गैस खनिज पदार्थ डीजल पेट्रोल कोयला निकाला, समुद्र के पानी को रीसाइक्लिंग मशीन से अपने पीने के लिए तैयार किया , जंगल के हरे भरे लहलहाते पेड़ों को काटकर अपने लिए फर्नीचर सोफ़ा सेट या फिर घर के लिए दरवाजे खिड़कियां या फिर औषधि के लिए इनका उपयोग किया पहाड़ को काटकर हमने सड़क मार्ग के लिए  घर के भराव के लिए ,या फिर किसी सीमेंट फैक्ट्री , साबुन वगैरह के लिए पथरीली चट्टान को काटकर उसका चूर्ण बनाकर उपयोग किया , जिससे पहाड़ लगभग खत्म होने के कगार पर है , हमारे स्वार्थ ने जंगली जानवर जीवों को भूखों रहने के लिए मोहताज कर दिया यही कारण है कि हाथी ,शेर,चीता , तेंदुआ, भालू,बाघ,कभी कभी अपनी सीमा लांघ कर इंसानी बस्तीयों में आ कर इंसान पर आक्रमण कर रहे हैं क्या हम इसमें दोशी नहीं है ??्

दूसरी ओर हमने अपने अपने देश कि सीमा कि रक्षा के लिए घातक हथियारों का अविष्कार किया जैसे कि जैविक, रसायनिक आदि जो कि पल भर में कई किलोमीटर के दायरे में इंसान के अस्तित्व को खत्म कर सकते हैं हां हमने समय के हिसाब से तरक्की कि हैं हमने प्रकृति का दोहन कर अपनी सुख सुविधा के लिए दबाई, हथियार , हवाई जहाज, लड़ाकू विमान, मंगल ग्रह पर जानें वाले यंत्र का अविष्कार किया , कुछ हद तक यह ठीक है लेकिन हमें पर गृह, या फिर भगवान कि बनाईं हुई रचनाएं कि छेड़छाड़ का कोई अधिकार नहीं , हमने उन्हें चुनौती दी थी तब हमें भी परिणाम के लिए तैयार रहना था और हम तैयार नहीं थें तभी तो नेचर ने भेंट स्वरूप कोरोनावायरस दिया जिससे हमें अपनी औकात पता चल गई थी हमने सभी तरह कि तैयारी कर के भी बहुत बड़ी तादाद में जन हानी देखीं थीं खैर यह तो होना ही था आज नहीं तो कल क्यौ कि प़कृति अपना संतुलन खूद तय करतीं हैं अभी सिर्फ उसने अपना एक छोटा सा उदाहरण हमें दिखाया था वह हमें सचेत कर कह रहीं थीं कि हे मनुष्यो मुझे मत मारो रोको मेरे दोहन को वरना मैं आगे अपना वह रूप दिखाऊंगी जिसकी तुमने कल्पना भी नहीं की होगी ??

अब मेरा घर बंदी का ऐक दिन जैसा कि शीर्षक में लिखा है।

इन्दौर जैसे शहर में जो कि मध्यप्रदेश कि आर्थिक राजधानी है सड़कें खाली पड़ी हुई थी चारों दिशाओं में पुलिस कि कारों जिसमें डरवाने सायरन थें उन कि ध्वनि सुनकर गली के कुत्ते भी दुम दबाकर कहीं छुप जाते थे हालांकि उस पहली लहर में इंसान से ज्यादा तों यह मूक जानवर परेशान हो गए थे क्यों क्योंकि इंसान का पेट भरने कि जुममेदारी तो सरकार ने उठा ली थी परन्तु मूक जानवर तो सिर्फ पानी भगवान् के भरोसे ही जीवित बचे हुए थे यही हालत सारे संसार के थें ।

मेरा चचेरा भाई सूरत में रहकर हीरा फैक्ट्री में काम करता था साथीयों के साथ उसने भी गांव जाने का निर्णय लिया था हालांकि उसका यह निर्णय सही नहीं था जब वह सूरत से एक कंटेनर में छिपकर आ रहा था उसका मेरे पास फोन आया था कि भाई साहब में रास्ते में हूं सुबह तक इन्दौर आ जाऊंगा आप बाईपास पर मुझे लेने आ जाना तय समय पर वह इन्दौर आ गया था मैंने पास लेने कि अपने जान पहचान वालों से बात कि थी परन्तु कहीं से भी पास नहीं मिल पाया था मैं अपने आप को लाचार समझ रहा था  हालांकि पुलिस प्रशासन ने उसे गांव जाने वाले रूट के टृक में बैठाकर अपनी जुममेदारी संबेदना दयालुता का परिचय दिया था उस समय इन्दौर पुलिस का मानवता से भरा हुआ हर जगह भूखे प्यासे मुसाफिरों का सहयोग करने का जो जज्बा देखने को मिला था वह हमेशा ही धन्यवाद के पात्र रहेंगे में उन कर्तव्य वीरों को दिल से सैल्यूट करता हूं ।

उसी दिन दूसरा फोन आया था मेरे मित्र को भी कोरोनावायरस ने अपनी चपेट में लें लिया था स्वास्थ्य विभाग का अमला उन्हें घर से अस्पताल ले गया था उनकी पत्नी का फोन आया था कि भाई साहब पता नहीं चल रहा है कि उन्हें किस अस्पताल में भर्ती कराया है आप पता किजिए और हा कैसे भी करके पास कि व्यवस्था कर मुझे ले चलिए में आपके हाथ जोड़ती हूं में उनके अनुनय विनय पर भी कुछ नहीं कर पाया था में अपने आप को लाचार समझ रहा था हालांकि डाक्टरों कि कुशलता से मित्र स्वस्थ हों कर घर आ गए थे में उन सभी स्वास्थ्य कर्मियों को भी दिल से धन्यवाद देता हू।

घर बंदी का उनतीस वा सबसे कठिन दिन उस दिन राशन खत्म हो गया था हालांकि कुछ घंटे बाद सरकार से मिल गया था यह समस्या तो हल हो गई थी परन्तु गैस कि टंकी खत्म हो गई थी खाना पकाने का कोई भी साधन नज़र नहीं आ रहा था दो तीन पड़ोसी से भी आग्रह किया था परन्तु उन्होंने मना कर दिया था सारे परिवार के पेट में चूहे दौड़ रहें थें सहसा श्रीमती जी को ख्याल आया था कि कुछ पुरानी लकड़ी कि कुर्सियां खस्ताहाल छत पर रखीं हुई थी फिर क्या उन्हें तोड़मरोड़ कर ईंट का चूल्हा बनाया गया था घणै को फोड़कर मिट्टी का तबा बनाया गया था फिर उस पर रोटीयां पकाई गई थी हरी मिर्च धनिया टमाटरों कि चटनी बनाकर सारे परिवार ने खाना खाया था लकड़ी कि आग से पकी रोटीयां खानें का स्वाद ही अलग था वह स्वाद आज भी याद आता है ।

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बड़ा दिन कविता

 आज तो बड़ा दिन था  पर पता नहीं चला बिना हलचल के ही गुजर गया रोज कि भाती सूरज उषा के साथ फाग खेलता आया संध्या के साथ आंख मिचौली करता चला गया चतुर्थी का चंद्रमा उभरा अपना शीतल प्रकाश बिखेर चल दिया तारों कि बारात आकाश में उतर मोन दर्शक बन चहुं ओर बिखर गई रोज कि भाती लोगों कि भीड़ अपना अपना कर्म कर सो गई पंछियों के समूह प्रभात के साथ कलरव का गान कर संध्या आते गुनगुनाते चहचहाते पंखों को फड़फड़ाते घोंसलों में चलें गये  हर दिन बड़ा दिन ऐसा कहते हमें समझाते गये।।

तुम कहां हो

 तुम कहां हो? कहां नहीं हों ? दोनों अनंत काल से चले आ रहें शाश्वत प़शन है इनके उत्तर भी अनंत काल से  शाश्वत हैं। प़भु के बगैर होना तो दूर कल्पना भी संभव नहीं तुम सर्वत्र हो प़भु कण कण में समाए हों प़भु तुम यहां भी हों वहां भी हों आपके बिना कहते हैं कि  पत्ता भी नहीं हिल सकता मंद मंद शीतल पवन नहीं वह सकतीं कल कल करती नदियां नही बह सकतीं हिलोरें मारकर विशाल सागर  अपनी सीमा में नहीं रहता न ही सूर्य अपनी तपिश बिखेर कर हमें रोशनी देता न ही चांद दीए जैसी रोशनी से हमें  शीतलता देता  पूछता हूं प़भु तुम कहां हो। हे प्रभु जब से हम मानव कि अगली पीढ़ी से लेकर  आखिर पीढ़ी तक यह प़शन हमें तबाह किये हुए हैं  बर्बादी के द्वार पर खड़ा किए हुए हैं हे प्रभु प़शन अटपटा सा है पर शब्दों कि गूंज उत्तर के रूप में होती है पर परतीत नहीं होती  हे प्रभु कभी कभी लगता है कि आप हमारे अन्तर मन में हों  तब कभी कभी लगता है कि आप कण कण में हों  तब कभी कभी लगता है कि दीन हीन लाचार अपाहिज मानव  पशु पंछी कि देखभाल करने में  हमें भूल गए हों  लेकिन यह सच है...

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