बारह सो स्क्वायर फिट का प्लाट


 अगहन माघ का तीसरा सप्ताह था सांध्य काल में ठंडी महसूस होने लगी थी हालांकि शहर के सीमेंट कांक्रीट के जंगल में ठंडी का एहसास इस माह न के बराबर होता था परन्तु शहर के बाहर सांध्य समय मे ठंडी जोर पकड़ रही थी मोटरसाइकिल सवार गर्म कपड़े पहनने लगें थें कानों कि ठंड को हेलमेट बचा रहा था ऐसे ही सांध्य कालीन समय में नरेंद्र ड्यूटी से घर आया था मोटरसाइकिल बाहर रोड पर पार्क कर जैसे ही किराए के घर के अंदर गया पत्नी उसे देखकर तमतमा उठी थी उसके तेवर बदले हुए थें नरेंद्र निढाल होकर सोफे पर बैठ गए थे लम्बी सी जम्हाई लेते हुए उन्होंने पत्नी से कहा बहुत थका हुआ हूं रचना एक कप गर्मागर्म चाय मिल जाती तब हरारत कम महसूस होती परन्तु सरकार के तेवर बदले हुए हैं ।

रचना पांव पटकते हुए किचन में चली गई थी थोड़ी देर बाद दो कप चाय लेकर आ गई थी उसने नरेंद्र को मग दें दिया था पास ही बैठकर खुद चाय पीने लगी थी परन्तु बात नहीं कर रही थी नरेंद्र से रहा नहीं गया तब उन्होंने कहा रचना क्या कारण है जो आप गुस्से में हों लगता है कि बच्चों ने परेशान कर दिया अरे भाई बच्चे तों बच्चे हैं अभी मस्ती नहीं करेंगे तब फिर कब करेंगे हा गूललू जरा ज्यादा ही नटखट है मैं उसे डांट दूंगा बस अब तो सरकार मुस्कुरा दीजिए ।

दंपति के दो बच्चे थे बड़ा बेटा गूललू जो पांच साल का था बड़ा ही शरारती नटखट उससे छोटी बेटी मोहिनी तीन साल कि थी शांत सरल शुशील समझदार दंपति का परिचय देकर हम दो हमारे दो का फैमिली प्लानिंग कर नरेंद्र ने अपनी नसबंदी करा ली थी खैर छोटा परिवार सुखी था नरेंद्र प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में सिविल इंजीनियर थे तनख्वाह भी ठीक थी मासिक खर्च कर कुछ वचत हों जाती थी  वहीं पत्नी घरेलू महिला थी सारे दिन घर बच्चों कि देखरेख पति की सेवा में ही व्यतीत रहतीं थीं ज्यादा पढ़ी लिखी नही थी।

कुछ देर तक दोनों के बीच खामोशी छाई रही थी फिर रचना ने कहा कि आज मकान मालकिन आई थी दस बातें सुनाकर गई जैसे कि यह टाइल्स चमचमाती हुई क्यों नहीं दिख रही दीवार पर बच्चों ने पेंसिल से स्केच क्यों बना दिए गार्डन कि घास क्यों नहीं कटाई पौधों में पानी क्यों नहीं दिया आप को तो पता ही है कि माली कल ही घास काटकर गया तीन हजार रूपए दिए इतना सब करने के बाद भी वह कुछ न कुछ सुनाकर जाती है में कहें देती हूं मुझे अपना खुद का मकान चाहिए समझें ।

रचना कि जिद करने पर नरेंद्र ने समझाया कि प्राइवेट नौकरी का कोई भरोसा नहीं चार पैसे वचत के आड़े समय में काम आएंगे हम कुछ साल और बचत कर सकते हैं फिर मकान खरीदने का सोचेंगे तुम्हें तो पता ही है कि प्राइवेट स्कूलों कि मोटी मोटी फीस हैं हमें बच्चों को भी अच्छे स्कूलों में भर्ती करवाना है उनका भविष्य हमारे हाथ में हैं में अभी कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहता पतिदेव के लाख समझाने पर भी रचना बहसबाजी करने लगी थी मजबूर होकर नरेंद्र ने प्लाट लेने का आश्वासन दिया था तब मामला शांत हुआ था ।

ऐतवार के दिन पति पत्नी बच्चों सहित आस पास कि कालोनी में प्लाट देखने के लिए भटकने लगे थें उन्हें किसी कालोनी कि लोकेशन अच्छी नहीं लगती तब किसी कालोनी के जमीन के भाव आसमान छू रहे थे जो कि बजट से बाहर थें प्रोपर्टी डीलर बढ़े बढ़े शब्द बाग दिखाते थें आखर उन्हें शहर से बाहर मनोरम स्थल पर बारह सो स्क्वायर फिट का प्लाट मिल गया था कुछ नगद राशि बाकि बैंक से लोन हों गया था जो कि सात साल में अदा करना था जिसकि इस एम् आईं तनख्वाह से आधी थीं उसे हर हाल में जमा करना ही था मध्यम वर्ग के लिए प्लाट खरीदना स्वप्न जैसा होता है खैर अब यह सच हों गया था ।

सब कुछ ठीक चल रहा था नरेंद्र ने अपने निजी खर्च में कटौती कर दी थी फिर भी बैंक कि हर महीने कि किस्त बच्चों कि फीसें मकान किराया सब कुछ जोड़कर कुछ भी पैसा कि बचत नहीं हो रहीं थीं ऐक दिन साईट पर हाईराइज विल्डिंग का काम चल रहा था चूंकि गवर्मेंट का काम था समय सीमा तय थी इसलिए कंपनी दिन रात काम करा रही थी लेवर स्टाफ को घंटे के हिसाब से अतिरिक्त ओवर टाइम का कंपनी पैसा दे रहीं थीं नरेंद्र पहले ही आर्थिक परेशानी का सामना कर रहा था ऐसे में उन्होंने ओवर टाइम काम करने का फैसला लिया था लगातार महीनों काम कर न ही अच्छी नींद लें पा रहा था और न ही समय से घर पहुंच पाता था हालांकि पत्नी जल्दी बाज़ी में ऐक तरफा निर्णय लेने से पछता रही थी पतिदेव कि गिरती सेहत से चिंतित थी परन्तु अब पछताने से कुछ हासिल होने वाला नहीं था ऐसे ही तीन साल व्यतीत हो गये थें 

हाईराइज विल्डिंग के बहुत सारे फ्लोर पर स्लेव डल गई थी वर्षांत कि ऋतु आ गई थी तब कंपनी ने अपनी पोलिसी में बदलाव कर दिया था अब विल्डिंग के अंदर चोबीस घंटे प्लास्टर टाइल्स कलर आदि का काम चालू कर दिया था इस काम के लिए जनरेटर भी रख दिए थे नरेंद्र लगातार ओवर टाइम कर रहा था ऐसे ही बारिश कि रात्रि में वह अपनी ड्यूटी खत्म कर वापस घर आ रहा था चारपहिया वाहन दस पहिया वाहन या और सभी के विंडस्क्रीन पर वाइपर्स वारिस कि मोटी मोटी बूंदें को साफ कर अपनी अपनी मंजिल कि और जा रहे थे नरेंद्र कि मंज़िल घर थी रेनकोट हैल्मेट पहन कर वह साईट से घर के लिए निकला था परन्तु एक तेज रफ्तार ट्रक ने उसे अपने अपने आगोश में ले लिया था वह हमेशा के लिए चिर निद्रा में सो गया था वह परमात्मा में विलीन हो गया था ।

पुलिस ने मोबाइल आई डी कार्ड से पत्नी को फोन किया था ख़बर सुनते ही रचना बेहोश हो गई थी होश आते ही हाय मे ही उनके पीछे पड़ी थी मुझे तो जल्दी ही अपना निजी घर चाहिए था मैंने ही उन्हें मजबूर किया था हाय में ही दोषी हु मे भूल गयी थी कि बढ़ती जनसंख्या सरकार के टैक्स कोलोनाइजर कि फायदा बैंक का व्याज सख्ती मेरे पति को लील गई में भुल गयी थी कि मध्यम गरीब परिवार को अपना प्लाट घर बनाने का अधिकार नहीं  हाय हाय यह जमीन कि बारह सो स्क्वायर फिट का टुकड़ा मेरा सुहाग उजाड़ गया हाय हाय...

कहानी का सार सारे संसार में जनसंख्या वृद्धि दर बढ़ रही है साथ ही महंगाई ऐसे में गरीब, मध्यम परिवार जो कि अधिकांश किराए के मकान में अपना जीवन व्यतीत कर रहा है और करता रहेगा नरेंद्र जैसे ईमानदार मेहनत कस मध्यम वर्ग के कर्मचारी रिस्क लेकर प्लाट खरीद लेते हैं  उनका खुद का जीवन खराब हो जाता है कि।

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