मिस्टर आ के पास भगवान का दिया हुआ सब कुछ था दो बेटे थै दोनों ही सरकारी नौकरी में उच्च पद पर कार्यरत थें दोनों का व्याह कर दिया था बहूएं भी सरकार के उच्च पद पर कार्यरत थी हालांकि वह आई ए एस अफसर पद से रिटायर हो गए थे परन्तु श्री मती आ अभी भी प्राध्यापक पद पर कार्यरत थीं कुल मिलाकर धन दौलत परिवार सब तरफ से खुशहाल थें इतना सब कुछ होने पर भी वह अन्दर ही अन्दर कुछ खिन्न से रहते थे कारण तो पता नहीं परन्तु महिलाओं के आधुनिक परिधान से वह खुश नहीं थे उन्हें कुछ न कुछ खोट नजर आता था या यूं कहें कि उनके मन से शांति भंग हो जाती थी ।
इस विषय पर उन्होंने कुछ मित्रों से चर्चा भी कि थी परन्तु सभी के अलग अलग विचार थें कुछ को तो कोई भी समस्या नज़र नहीं आती थी कुछ तो निजता का अधिकार का हवाला देकर अपना तर्क देते थे कुछ तो भौतिक वादी युग में बदलते सामाजिक मूल्यों का हवाला देते थे तब कुछ तो कुछ महिलाएं जान बूझ कर अपने निजी अंगों का प्रदर्शन करती है ऐसी ही महिलाएं पुरुषों को रिझा कर उनके धन का हरण कर उन्हें छोड़ देती है ऐसे पुरुषों के पास पछताने के अलावा कुछ भी नहीं रहता है कुछ मित्रों के अनुसार हमें अपने नज़र को एसी अर्धनग्न प्रदर्शन करने वालीं लड़कियों पर नजर नहीं डालनी चाहिए यह दृष्टी दोष पैदा करता है ।
मिस्टर आ ने इस विषय पर अपनी प्रोफेसर पत्नी से भी तर्क वितर्क किया था उन्होंने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया था कि आप रिटायर हो चुके हैं आप के पास जो भी उम्र रह गई है उसे प्रभु परमेश्वर कि आराधना में गुजारें व अपना परलोक सुधारें कहीं से भी समस्या का सही समाधान नहीं मिलने पर उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लम्बे लम्बे लेख डालें थें उन लेखों में समाज धर्म हजारों साल का इतिहास का हवाला दिया गया था उन्हें पढ़कर महिलाओं ने कुंवारी लड़की, कालेज गर्ल ऐसे ही पुरुष वर्ग ने अलग अलग कमेंट दिए थे कुछ लोगों ने तो उन्हें मानसिक रोगी कुछ लोगों ने अतृप्त आत्मा तब कुछ लोगों ने अंकल सठिया गया है तब कुछ लोगों ने श्री मान आप अपनी उम्र का ख्याल कर लेख लिखे तब कुछ लोगों ने आप को टेलीविजन पर इस विषय पर डिबेट में शामिल होना चाहिए आदि ।
मिस्टर आ अब ज्यादा ही परेशान हो गए थे उन्हें इस समस्या का कोई निदान नहीं मिल रहा था एक दिन वारिस का समय था मेघ गर्जन करते हुए ढोल नगाड़ों के साथ अपनी अनमोल बूंदें धरती पर बिखेर रहे थे ऐसे ही मौसम में छोटी बहू चूंकि ऐतवार का दिन था प्रशासनिक छुट्टी थी स्कूटी से बाजार से आईं थीं उसकी देह पर जो भी कपड़े थे शरीर से चिपट गये थें जिससे निजी अंग दिखाई दे रहे थे बहू ने जैसे ही इस हालत में घर के अंदर प्रवेश किया था उसे देखकर मिस्टर आ से रहा नहीं गया था तपाक से कहा बहू आप को हमारी अपनी इज्जत का जरा सा भी ख्याल नहीं देख ऐसे कपड़ों से तुम्हारी देह कितनी फूहड़ दिख रही है तुम्हारे अंतर्वस्त्र साफ साफ दिखाई दे रहे हैं बहू कुछ देर खामोश रह गई थी फिर उसने कहा था पापा जी में आगे से ख्याल रखूंगी परन्तु जरा आप भी अपनी चड्डी पर ध्यान देना देखिए उसके अंदर कुछ लम्बा सा लोहे का टुकड़ा तना हुआ खड़ा हैं छी आपकी नजर में ही खोट है जो कि अपनी बहू के यौवन को देखकर अपनी चड्डी भी सम्हाल नहीं पाए छी छी मिस्टर आ को अब अपनी समस्या का निदान मिल गया था उन्हें लगा कि बहू ने चार पांच चांटे उनके मन पर गाल पर जड़ दिए थे ।
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