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सेठजी यूं तो पचपन साल कि उम्र के थें दांडी बाल सब सफेद हो गये थें फिर भी वे काली डाई कर कर बाल काले रखतें थें और नियमित योगासन करके या फिर जिम में जाकर अपने आप को फिट रखने को तत्पर रहते थे हालांकि लाख कोशिश के बाद भी उनका पेट बड़ा हुआ ही था कर्मचारियों से मित्रों से अपने शरीर के फिटनेस के लिए पूछते तब मुस्कुरा कर उन्हें जबाब मिलता था कि अजी आप तो अभी जवान हैं इस उम्र में एसी फिटनेस हजारों में से एक ही व्यक्ति को मिलती हैं भाई साहब इस समय में अनाज और सब्जियां कहां असली खाने को मिलती हैं आप के पास तो सैकड़ों एकड़ जमीन हैं आम अमरूद जामुन के बाग हैं और कुछ एकड़ में तों देशी गोबर डालकर खेती करवाते हैं साथ ही आर्गेनिक सब्जियां भी उगाते हैं सबसे बढ़िया खुद और अपने आस पास के रिश्तेदार मित्रों को भी भेंट करते हैं इसलिए आप इस उम्र में भी एकदम जवान लगते हैं कुछ चाटुकार कहते सेठजी कसम से अभी भी आप से कोई भी वयस्क लड़की खुशी-खुशी शादी करने के लिए हामी भर देगी और कुछ चाटुकार कहते क्यों नहीं क्यों नहीं यह गोरा रंग लाल गुलाब के फूल जैसा मुंह और लम्बा कसरती शरीर ऐसे शरीर को देखकर अप्सराओं का भी मन डोल

मन का ख़्याल कहानी


 कुछ दिनों से अजीत को मन में ख्याल आ रहा था कि कुत्ता पालू पर क्यों उसे समझ में नहीं आ रहा था वह बार बार ख्याल को दिमाग से वाहर कर रहा था पर वह वापिस अलादीन के चिराग जैसा समां जाता उस ख्याल ने उसकी रातों कि नींद हराम कर दी थी स्वप्न भी उसे वार वार वही ख्याल याद दिलाता और तो और जब भी वह पाखाने में पेट साफ करने के बैठता तब भी उसे वहीं ख्याल आ जाता जब वह सीसे के सामने दांतों कि सफाई करता तब भी उसे ख्याल आ जाता वह कार ड्राइव करता या मोटरसाइकिल दफ्तर हर समय ख्याल पीछा नहीं छोड़ता वह परेशान हो गया था इस विषय पर उसने पत्नी से भी सलाह ली थी कि क्यों न हम कुत्ते के बच्चे को पाल लूं परन्तु पत्नी ने यूं कह कर पल्ला झाड़ लिया था कि रहने दिजिए खुद तो सुबह जल्दी दफ्तर चलें जातें हैं और देर रात वापिस आते हैं कौन उसे वाह्य घुमाएगा कौन उसकी टटटी पेशाब साफ करेगा न बाबा न बढ़े सवेरे जागकर आपके लिए चाय नाश्ता लंच बॉक्स, बाद में बच्चों को नहलाना उन्हें स्कूल के लिए तैयार करना फिर स्कूल बस तक छोड़ना बीच के समय में घर के काम निपटाना जो भी समय बचता है दोपहर में थोड़ा आराम करना फिर बच्चों को स्कूल बस से वापस लाना।

अजीत को पत्नी कि मजबूरी समझ में आ गई थी लेकिन विचार क्यूं न कुत्ता पालू वहां आ कर अटक जाता उसने इस विषय पर मित्रों से भी बात कि थी कुछ ने कहा बहुत अच्छा पालना चाहिए कुछ ने कहा भाई कहां उलझ रहा है तू फ्लेट में रहता है तेरा फ्लेट दसवें माले पर हैं भाभी बच्चों के साथ और तूं आफिस मे ऐसे में कोन उसकी सेवा करेगा मित्रो का कहना भी ठीक था परन्तु मन का ख्याल बाहर नही निकल रहा था वह परेशान हो गया ।

अब वह अपने आसपास सहकर्मी में कुत्ते का गुण देखने कि चेष्टा करने लगे थे जैसे कि कुत्ता मालिक के   परिवार का संगे संबंधियों का वफादार रहता है वह गुण  सहकर्मी मे दिखाई नही देते  थे वह परेशान होकर डाक्टर के पास गए थे   !

परन्तु डाक्टर नै यू कहकर उन्हें कि आप अवसाद मै हैं  मै कुछ दबाई लिख  दैता हूँ आप  मैडिकल सै लै कर  खाना  पदो सप्ताह बाद फिर सै आना ।

मैडिकल स्टोर सै दवाई लेकर जैसे हि वह वाहर आऐ थै खयाल आया क्यो न मै कुत्ता पालू  कुत्ता कै विना  मेरि जिदंगी  अधूरी हैं  देखो तो छोटे छोटे बच्चे भि कितने  वफादार होते है  मालिक को दैखतै हि कू कू कर  पूछ  हिलाकर  तलुऐ  चाटने  लगता हे  भला  यह गुण किसी ओर  जानवर  में  देखने को कभी मिलता  हैं  सहसा उन्हें ख्याल आया कि में तो शुबह सै हि डयूटी कै लिए  घर सै वाहर  निकल आता हू  बच्चे  स्कूल  चले  जाते है  श्रीमति अकेली रहती हैं  जमाना  बुरा हैँ  आजकल किसी पर भरोसा करना  अपने पांव पर कटार मारने  जैसा हैँ  पड़ोस कि याद आते हि खयाल आया  बगल के फ्लैट मे  कैसा  बाका जवान   रहने आया है  कही. ... वह तो  दोपहर में  ..... फ्लैट ....में ....पलंग पर  आह  आह  आ  आ  तो नहीं  करता  होगा  कही पलंग चर चर तो नही बोलता   होगा अब  समस्या का निदान मिल गया  शायद इसलिए  श्री मति  जि कुत्ता को घर पर रखने को मना कर  रही है  यह विचार  मन मै आतै हि वह  और  परेशान हो  गऐ थे यही सब सोचते हुए वह  घर आ गए  थे  उनके घर आने पर  पत्नि आश्चयर्जनक रह गई थी खुश हो कर गलै लग गई थी  मन हि मन में मिथ्य हि शंका कर रहा था ठीक है फिर में क्यू न कुत्ता पालू ।

दवाई लेने पर भी उनका अवसाद कम नहीं हुआ  था अब वह घर से बाहर निकल कर कुत्तों को दैखतै हुए खुशी जाहिर करने लगा था  वह भोकता, कू कू करता आदि 

आखिर उस से रहा नही गया ऐक दिन वह बाजार से  विदेशी नसल का कुत्ता का बच्चा खरीद लाया था  उस को दैखतै हि बच्चे बहुत खुशी जाहिर कर ‌देते थे भाई क्यो न हो  वह  कुत्ता का बच्चा  था  हि बहुत समझदार, वफादार  दिन भर वह  बच्चों के साथ खेलता रहता  शाम को जब वह दफ्तर से घर आता  तब वह भोकता हुआ  फिर कू कू कर के  आगे पीछे  घूमने  लगता  था  उस कि वफादारी पर अजीत बहुत खुश  हो जाता उस को गोद में ले कर प्यार करने लगता ।

समय के साथ कुछ महीने में हि वह बडा हो गया था  बालकनी मे  खड़े होकर जब वह भोकता  तब  उसकि  दूर  दूर तक  आवाज  सुनाई  दे रही थी  घर पर  मेहमानों को भि नही आने  दे रहा था  पहले से ही उस को  जंजीर में  बाध कर  रखना  होता  परन्तु फिर भी वह  भोकता रहता  उसकि  इस  हरकत पर  श्री मति अजीत गुस्सा हो कर  पति को चार  बातें  सुनाती थी  आखिर में उन्होंने  उस को  अपने भाई को दान में  दे  दिया था  ।

अब अजीत फिर से परेशान रहने  लगा  था  वह  सोचता  आखिर भाई को श्री मति दिया  तब  इसके  कारण को खोजना  होगा  ऐसे  ही  वह  ऐक  दोपहर  अचानक  घर पहुंच गया  था  चूंकि  बच्चे  स्कूल में  थे  श्री मति  जी  दोपहर को आराम कर रही होगी  तभी तो उसने  दूसरि  चाबी से  मुख्य  दरवाजा खोल दिया था  हाल में  वह  पहुंच गया था  शयन कक्ष से आवाज निकल  रही थी  जो कि आह आह  हा हा शि शि कौतूहल वस  उसने  दरवाजे को हल्का सा  खोल  दिया था  अंदर  वह  बाका  जवान  श्री मति को   अनजान  लोक कि यात्रा करा रहा  था श्री मति  इस अद्भुत यात्रा का आखं बंद कर  मुंह से  जरा  ओर  जहाज कि गति  बडा  दिजिएगा  बस बस ऐसे हि आह आह  ।

आज उसके मन का ख्याल का  जवाब  मिल गया था  वह वापिस  लोट गया  था  अब वह खुश था अवसाद  निकल गया था ।





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तुम कहां हो

 तुम कहां हो? कहां नहीं हों ? दोनों अनंत काल से चले आ रहें शाश्वत प़शन है इनके उत्तर भी अनंत काल से  शाश्वत हैं। प़भु के बगैर होना तो दूर कल्पना भी संभव नहीं तुम सर्वत्र हो प़भु कण कण में समाए हों प़भु तुम यहां भी हों वहां भी हों आपके बिना कहते हैं कि  पत्ता भी नहीं हिल सकता मंद मंद शीतल पवन नहीं वह सकतीं कल कल करती नदियां नही बह सकतीं हिलोरें मारकर विशाल सागर  अपनी सीमा में नहीं रहता न ही सूर्य अपनी तपिश बिखेर कर हमें रोशनी देता न ही चांद दीए जैसी रोशनी से हमें  शीतलता देता  पूछता हूं प़भु तुम कहां हो। हे प्रभु जब से हम मानव कि अगली पीढ़ी से लेकर  आखिर पीढ़ी तक यह प़शन हमें तबाह किये हुए हैं  बर्बादी के द्वार पर खड़ा किए हुए हैं हे प्रभु प़शन अटपटा सा है पर शब्दों कि गूंज उत्तर के रूप में होती है पर परतीत नहीं होती  हे प्रभु कभी कभी लगता है कि आप हमारे अन्तर मन में हों  तब कभी कभी लगता है कि आप कण कण में हों  तब कभी कभी लगता है कि दीन हीन लाचार अपाहिज मानव  पशु पंछी कि देखभाल करने में  हमें भूल गए हों  लेकिन यह सच है कि प़भु आप तो हो  पर आप कहां हो,??

बड़ा दिन कविता

 आज तो बड़ा दिन था  पर पता नहीं चला बिना हलचल के ही गुजर गया रोज कि भाती सूरज उषा के साथ फाग खेलता आया संध्या के साथ आंख मिचौली करता चला गया चतुर्थी का चंद्रमा उभरा अपना शीतल प्रकाश बिखेर चल दिया तारों कि बारात आकाश में उतर मोन दर्शक बन चहुं ओर बिखर गई रोज कि भाती लोगों कि भीड़ अपना अपना कर्म कर सो गई पंछियों के समूह प्रभात के साथ कलरव का गान कर संध्या आते गुनगुनाते चहचहाते पंखों को फड़फड़ाते घोंसलों में चलें गये  हर दिन बड़ा दिन ऐसा कहते हमें समझाते गये।।

दलदल एक युवा लड़के कि कहानी

वह एक वर्षांत कि रात्रि थी मेघ गर्जन करते हुए कड़कती बिजली के साथ घनघोर वर्षा कर रहे थे ऐसे ही रात्रि में परेश होटल के कमरे में एक युवा शादी शुदा महिला के साथ लिपटा हुआ था  महिला के कठोर नग्न स्तनों का नुकिला हिस्सा उसकी छाती पर गढ़ रहा था वातावरण में गर्म सांसें के साथ तेज सिसकारियां निकल रही थी सांगवान का डबल बैड पलंग पर मोंटे मोंटे गद्दे कांप रहे थे पलंग का शायद किसी हिस्से का नट बोल्ट ढीला था तभी तो कि कुछ चरमरा ने कि आवाज आ रही थी  साथ ही महिला के मुख से और तेज हा ओर तेज शाबाश ऐसे ही ... .. आह आह सी सी बस बस अब नहीं छोड़ो टांग दर्द  कर रही है बस बस  पर परेश  धक्के पर धक्का दे रहा था फिर वह भी थम गया था अपनी उखड़ी सांसों के साथ चूंकि परेश पुरूष वैश्या था उसकी अमीर हर उम्र कि महिला थी वह इस धंधे में नया नया आया था  पर जल्दी ही अमीर महिलाओं के बीच फेमस हो गया था उसका कारण था उसका सुंदर सुडौल शरीर और बात करने का सभ्य।  ढग फिर वह अपने काम को पूरी इमानदारी से निर्वाह करता था मतलब उसकी ग़ाहक को किसी भी प्रकार कि शिक़ायत नहीं रहती थी । खैर सांसें थमते ही दोनों अलग हो गए थे महिला ने मद्धम