तुम कितने पास आ गये हों
तुम्हारी निकटता में
जितना उत्कृष्ट
निश्छल
प्रेम का अभाव हो रहा है
तुम प्रेम हों कि परमात्मा
योगी हों कि भोगी हो
नर हो कि नारायण हों
क्या हो तुम मेरी
समझ में नहीं आता
यह समझ
हर पल धोखा देने को
तत्पर है
फिर भी तुमने
इस समझ कि कमजोरी को जीत लिया है
समझ के भेद विलीन हो गए हैं
तुम जो हमारे
निकट आ गये हों
तुम्हारी नजरे हमें
कृपा दृष्टि बन
आनंदित करती है
तुम्हारी मुस्कान हमारे क्लेशों को
मृतवत करने का आवाहन हैं
तुम्हारी मधुर अमृत वाणी
हम पर वरसती है
तो हमारे कानों से
हमारे रोम रोम को
रोमांचित कर
सार्थकता का बोध देती है ।
तुम कोन हो कोन सी शक्ति से
कोन से अद्भुत सौंदर्य से
तुम सत्य कि परिभाषा
लिखनें को तत्पर हो
तुम हम जैसे अभागों के जीवन में
भाग्य बन उदय हो रहे हो
तुम्हारी निकटता का बोध
हमें एकान्त में रह
तुम्हारे उन सत्य पर
विचारने को कहता
जो तुमसे एकाकार हो गये है
तुम्हें अपनों पर
आंनद भरा गर्व है
तुम्हारी चाल में
अनोखी अल्हड़पन है
तुम्हारे स्वभाव में
मनमोहकता है
तुम्हारी दृष्टि से आंनद
बरसता है
वह आंनद तुम्हारे साथ
रह कर एकान्त में
एकला चलो रे का
गाना गाने को
गुनगुनाते को कहता हैं।।
Comments