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Showing posts from October, 2023

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सूर्य का प्यार चांदनी से कहानी

 बात लगभग लगभग पांच साल पुरानी है ऐक दिन मेरी साइट पर मेरा रोलर आपरेटर जों कि कंपनी से दस दिन कि छुट्टी लेकर गया था छुट्टी से आने के बाद मुझे अपने किराए के घर में चाय के लिए बुलाया चलिए पहले में अपना परिचय दे दूं मेरा नाम प्रेम कुमार हैं में मल्टीनेशनल कंटैकसन कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर कार्यरत हूं चूंकि मैं टीम लीडर हूं ऐसे में टीम के सभी सदस्यों से काम के बाद भी उनसे मेल मिलाप उनके दुख सुख का ख्याल रखना मेरी जुम्मे दारी बनतीं है या यूं कहें कि मेरी ड्यूटी हैं  ठंड का समय था वातावरण में सर्द हवाएं के साथ  हल्की हल्की ओस कि बूंदें भी आ रही थी कुलमिलाकर हड्डियों को हिलाने वाली सर्दी थी ऐसे मौसम में भी साइट पर मेहनत कश मजदूर गर्म कपड़े पहनकर काम कर रहे थे में और मेरे मातहत टेक्निकल उनका सहयोग कर रहे थे तभी सूर्य का फोन आया था सर क्या आप साइट पर हैं  मैंने कहा जी  तब सर को आप मेरे घर आ जाईए  चाय पीते हैं  मैंने कहा सूर्य आप कि छुट्टी तों दस दिन कि थी फिर दो दिन पहले  उसने कहा सर मै अपनी पत्नी को लेने गया था जैसे कि हमारे समाज में शादी के चार...

पहचान कविता

 सूर्य दिशा कि पहचान क्या  सूर्य उदय से है सूरज नहीं निकलता नहीं आता चांद का ही राज रहता तब क्या सूर्य दिशा कि पहचान नहीं हो पाती। प्रश्न है यह  तुम्हारे अतीत से तुम्हारे वर्तमान से तुम्हारे भविष्य से क्यों कि इसका उत्तर सर्वत्र फूलों में हैं फूलों का पराग लेते भंवरों से है कल कल बहती नदी ऐक असान लगा समाधि में बैठे पहाड़ पर है सर सर बहती हबा धक धक जलती अग्नि तारों के साथ खेलता कूदता चांद चांद के साथ आंख मिचौली खेलता आकाश नदियों कि राहें बनाने वाली पर्वत को पेड़े को हमको तुमको जो हैं सभी को अपनी छाती से चिपकाने वाली चुपचाप फूलों के बागों कि बहारों से हर्षित होने वाली वह धरती मां यह सब साछी है हमारे प्रश्न के भी उत्तर के भी  साछी यही होंगे।

प़ेम के दो शब्द अध्यात्म कविता

 प्रभु कब करोगे कृपा मुझ पर कब कब तड़पा तड़पा मेरी भावनाओं को तपायोगे झुलाते जाओगे कब तक मेरे नयन को रोज अपनी तरफ अपने दर कि तरफ शुवह शाम दोपहर  आधी रात तुम रहो या न रहो  फिर भी देखने को वाट जोहने को छटपटाहट को मजबूर करते रहोगे कब तक मुझे देख मेरी टेड़ी मेंडी पागलों सी सूरत देख  दिवानगी देख  मुसकुरा मुसकुरा कब तक भ़मओ को भंवर में बहायेंगे आसमान देख देख  और आसमान पर तुम्हें देख देख बहुत वक्त हो गया प्रभु यह जर जर शरीर इन्तजार कर थका थका सा न जाने कब से  तुम्हें तुम्हारे भक्तों कि आवाजें मुस्कुराहटों को देखकर उबा नहीं आशा विश्वास के बादल मन में तन में छाए हैं जा रहें हैं जी चाहता है मन चाहता है और आत्मा चाहतीं हैं कि सिर्फ ऐक बार उपर से अपने आसमान से नीचे आओ करीब से देखो  इस दिल को इस शरीर को  इन भावनाओं को जो सिर्फ तुम्हारे लिए तुम्हारे दो शब्दों के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर करने को तत्पर है। उतरो प़भु थोड़ी देर को सही आओ मिलों बात करो और चल दो  बस दो शब्द ही आपके मेरी जिंदगी गुजारने केलिए पर्याप्त हों जाएंगे  इन दो शब्दों के बल पर में...