प़ेम के दो शब्द अध्यात्म कविता

 प्रभु कब करोगे

कृपा मुझ पर

कब कब तड़पा तड़पा

मेरी भावनाओं को

तपायोगे

झुलाते जाओगे

कब तक मेरे नयन को

रोज अपनी तरफ

अपने दर कि तरफ

शुवह शाम दोपहर 

आधी रात तुम रहो या न रहो 

फिर भी देखने को वाट जोहने को

छटपटाहट को मजबूर करते रहोगे

कब तक मुझे देख मेरी टेड़ी मेंडी

पागलों सी सूरत देख 

दिवानगी देख 

मुसकुरा मुसकुरा

कब तक भ़मओ को

भंवर में बहायेंगे

आसमान देख देख 

और आसमान पर तुम्हें देख देख

बहुत वक्त हो गया प्रभु

यह जर जर शरीर इन्तजार कर

थका थका सा न

जाने कब से 

तुम्हें तुम्हारे भक्तों कि

आवाजें मुस्कुराहटों

को देखकर उबा नहीं

आशा विश्वास के बादल

मन में तन में छाए हैं

जा रहें हैं

जी चाहता है मन चाहता है

और आत्मा चाहतीं हैं

कि सिर्फ ऐक बार

उपर से अपने आसमान से

नीचे आओ

करीब से देखो 

इस दिल को

इस शरीर को 

इन भावनाओं को

जो सिर्फ तुम्हारे लिए

तुम्हारे दो शब्दों के लिए

अपना सबकुछ न्यौछावर करने को

तत्पर है।

उतरो प़भु थोड़ी देर को सही

आओ मिलों

बात करो

और चल दो 

बस दो शब्द ही आपके

मेरी जिंदगी गुजारने केलिए पर्याप्त हों जाएंगे 

इन दो शब्दों के

बल पर

में हंसते हंसते न जाने कितनी बाधाऐं

पार कर

एक सफल नाविक बन

जग के समछ

उबरूंगा

आपके दो शब्द मुझे लोहे से

सोना बना देंगे

चमका देंगे

आपके दो शब्द

मुझे और तुझे

इतिहास पुरुष बना देंगे

मत कंजूसी करो

मत दूर ही दूर जाओ

मत भागो मुझसे दूर

विश्वास करो प़भु

में सिर्फ आप का हूं

इससे कैसी देर

कैसा अंधेर

उत्तरों सिंहासन से नीचे आओ

देखो मुझे

अपनी स्नेह पूरत

दृष्टी डाल

आत्मीय समझ

आत्मीय बना

आत्मीय कह कर चलें जाओ

विश्वास करो प़भु

रोकूंगा नहीं 

देखूंगा नहीं

हां याद करूंगा कब तक

जब तक यह जीवन चलेगा

जीवन का यह सरगम बजेगा

जीवन के सितार के तार 

जब तक थुन छेड़ेंगे

जब तार टूट कर बिखरने लगगे

तब भी तुम्हारी याद तुम्हारे दो शब्द

मेरी और मेरी आत्मा के साथ

यादगार बन जाएंगे

और अगले जन्म में भटक भटक कर

तुम्हें खोजेंगे

या फिर तुम्हें प़भु तुम्हारे दर्शन के साथ 

दो शब्दों के लिए।।

आत्मीय स

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Mahendra Singh s/o shree Babu Singh Kushwaha gram Panchayat chouka DIST chhatarpur m.p India

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