प़भु तेरी प़ेम भरी
मुस्कान से
तेरी प़ेम से भरी जवान से
में हृदय से धन्य हो गया
चाहें जब चाहे जहां
सुन्दर सुहावने स्वप्न में खो गया
यदि तू नहीं होता
ये तेरा स्नेह नही होता
कब का हार गया होता
कब का इस नश्वर संसार से
मुंह मोड़ कर चला गया होता
ओ प़भु यहां तो सब कुछ धोखा हैं
सारे संबंधों ने जबरदस्ती
किन्हीं स्वार्थों के खातिर
रोका हैं
में इन सब को तेरे कारण जान गया
पहचान गया ।
और सिर्फ सिर्फ तुझे अन्तर मन से मान गया
क्यों कि तूं ही
इन सभी में यत्र तत्र आकर
कभी परेशान कर
कभी संतावना दे शब्दों
से तसल्ली बांधता है
कभी दोस्त बन सारे जीवन
साथ देने का यकीन दिलाता है
कभी कहीं कमी नहीं
तू ही जब चाहे किसी भी रूप में
मिल कर मुझे मेरी राह में
नित नूतन आंनद बिखेर चल देता
कभी मुझे तू रोकता नहीं
कभी मुझे तू टोकता नहीं
कभी मुझे तू बांधता नहीं
हमेशा स्वतंत्र
रखें हैं
और हमेशा तूं हमारे लिए पलकें
बिछाए
इन्तजार करता है
में जान गया पहचान गया कि
तू और मेरी आत्मा
मेरा अन्तर मन ऐक ही है
और तू ही केवल तू ही
मुझे अनोखा प्यार करता है
तूं ही तो मेरे दुःख सुख का
अकेला साथी है
हे साथी ऐसे ही सारे जीवन
साथ साथ चलना
और मुझे अंत समय में
अपने आप में एकाकार कर लेना ।।