अरे ओ विधाता
अरे ओ दाता
अरे ओ मेरे जीवन के
श्रेष्ठ अनमोल रत्न
जरा सुन
क्या कह रहा मेरा
यह मन
कल तेरी अचानक
बगैर किसी आभास के
एक अनजानी अनदेखी अनसुनी
हृदय को तार तार कर
झनझना देने वाली
तेरी संगीत मय
अति सुरेली अति पावन
आवाज
जो औरों कि चीख सी
लगी
पर तुम्हारी चीख मय
न...ही
मेरे मन मेरे तन
मेरी आत्मा को
इस प्रकार तृप्त कर दिया
मानों सदियों का
प्यासा पपीहा
स्वाति नक्षत्र में
अपनी प्यास बुझा पाया।
हारा थका सा मन
दिन भर का भूखा-प्यासा तन
ऐसे शान्त हो गया
ऐसे भर गया
जैसे अब कुछ आवश्यकता ही न रही हो
जाने आज पराये नव घर में
तेरी उपस्थिति पा
तेरा आदर देख
में ऐसे भागा
मैंने सब वह किया जो में नहीं कर सकता
था तेरे कारण वहां लोगों ने
ज्यादा जाना ज्यादा पूछा
तो वो में था
क्यों कि उस दिन में
भूल गया था कि मैं हूं भी
मुझे सिर्फ तेरा हा तेरा ही ध्यान रहा
वहां सैकड़ों आए गये
पर तेरे अलावा वहां कोई नहीं दिखा
न जाने कितनी बातें वहां होई होंगी
कितनी बातें उठी होगी
पर तेरे मुखारविंद से निकली
न....ही के अलावा मैने कुछ नहीं सुना
जब वहां से चला तब तेरे अंतर में बसी
तेरे मुख से निकली
न...ही
ऐक अनजानी अनदेखी
शान्ति इस हृदय को दें
ऐक अनोखी छाप इस जीवन में लगा
बस गई सदा के लिए
हृदय में जो उस छड़ को लेकर
मुस्कुराती रहेंगी।
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