जब कभी हवा के साथ सरसराहट
के साथ मेरे बदन को दुलारती है
जाने ऐसा क्यों लगता यह तेरा सिर्फ
तेरा संदेश सुनाती है
तेरी सांसों कि खुशबू
हवा में आ आत्मा को नवगीत सुनाती है
मेरे मायूस चेहरे को
खुशी से भर
दूर कहीं दूर चली जाती है
शान्त सा एकान्त पा
हवा फिर गले लग जाती है
बालों में ख्यालों में उलझ उलझ
हमें सब समझातीं है
प्रीत का ऐ गीत ये हवा हमें
गंवाती है
तेरे ख्यालों में मुझे देख
पेड़ो के साथ मचल मचल जाती है।
जैसे कि पेड़ों कि डलिया
तेरी बालों कि लटो हों जैसे कि पेड़ों कि
पत्तियां हबा में झूल झूल कर
मुस्कुराते हुए कुछ संदेश दें रही हों
जैसे कि पेड़ों का तन कुछ कह रहा हों जैसे कि
पेड़ों कि जड़ें कह रहीं हों
कि जब तक हम हैं तब तक तुम हों हम
ही हबा में हटखेलिया खेलते पत्ते हैं
हम ही साखाऐ है
हम ही तना हैं और हम ही जड़ हैं
अगर हम नहीं हैं
तब तुम भी नहीं हो
इसलिए हमारा तुम्हारा होना
जगत के लिए शाश्वत सत्य है ।।
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